हिन्दी बोल India ई-पत्रिका

Saturday, 23 September 2023

  1. एयरफोर्स के जवान
  2. बेजान
  3. कोरा-कागज
  4. बेटियों को भरने दो उड़ान
  5. महाराणा का शौर्य
  6. दिल की अभिलाषा

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आसमानों में लहराते 

पर धरा से जुड़े

 आते मिलकर बादलों से

 पर भूलते नहीं देश को

 चांद तारों में जाते 

 पर मिट्टी को चूमना न भूलते

 उड़ते गुरुड़ संग 

 दाना डालना भूलते ना चिड़िया को

 उड़ाते जहाज है

 पर चलना भूलते नहीं 

छूते गगन को 

पर मां के पैरों को छूना ना भूलते

 दुश्मनों पर रखते निगाहें आसमान से

 पर मिल जाए जमीन पर जिंदा ना छोड़ते

 गरजते हैं नभ पर

 दौड़ते धरा पर

  दुश्मन इनकी बहादुरी से कांपते 

सलाम सीमा

रंगा का इन्हें 

Written By Seema Ranga, Posted on 21.08.2023

बेजान

23SAT08938

Priti Sharma
~ प्रीति शर्मा- मधु

आज की पोस्ट: 23 September 2023

हाशिया  बनाकर खुद खैर बनकर पूछना
खुश्क सा होकर खस्ता करना
देह स्वतंत्र सी लगे 
और मन को कहीं कफस ने जकड़ा।
लफ्ज़ खामोश हो गए
 मानो गहरी निद्रा में सो गए
गुमनाम सा कुछ हो रहा था
 बवंडरों में अब खो गया था।
गवारा  नहीं था हृदय को
और हृदय ही गवाही दे रहा था
गश में पड़े हैं पन्नो की तरह
नार्तस का नाम देकर
गैर सा बनकर 
नालिशों में ही तो है जकड़ा।

Written By Priti Sharma, Posted on 02.09.2023

कोरा-कागज

23SUN08942

Dumar Kumar Singh
~ डुमर कुमार सिंह

आज की पोस्ट: 23 September 2023

लोग कई आये और चले गये आजमाकर
हम ठहरे कोरा कागज लोग स्याही की
आखिरी बूंद तक लिखते रहे।
समझ जिनमे जितनी उतनी ही समझ पाये हमें
लोग आते गए पसंद के सारे पन्ने पलटते गए
काश! पढ़ते पूरी किताब कोई
अफ़सोस ऐसा मिला नहीं अभी कोई
लोग अपनी चित्रकारी लगे करने
समझकर रद्दी का पन्ना
कश्तियां बनाकर लोग खेलने लगे।
हम ठहरे कोरा कागज लोग
स्याही की आखिरी बूंद तक लिखते रहे।
​वो अटखेलिया करती अकृतज्ञों की भीड़
पहचान छुपाये अपनी अभिमान से भरी
टूटना बिखरना खिलौनों के जैसे
चले भी कितना कोई संभलकर पग-पग में
​हर ठौर पर दवात लिए बैठा रहता
कोई अकृतज्ञ
देखकर रचना हमारा
अंदाजा ना लगा बैठना कोई
कोरा कागज सा है डुमर
समझ आये जैसा तैसा रंग भरना
तब तक ही अनमोल है कोई
जब तक ना परे छीटें स्याही के
बेमोल सा लगता है वो पन्ना जो भरे हो
कोई लिखावट या अहसास से।
हम ठहरे कोरा कागज लोग
स्याही की आखिरी बूंद तक लिखते रहे।

Written By Dumar Kumar Singh, Posted on 03.09.2023

बेटियों को भरने दो उड़ान
उड़ने दो बीच खुले आसमान
रोशनी तभी बिखेरेंगी अपनी
चमकेगा फिर यह जहान


बेटे और बेटी में मत फर्क करो
खूब पढ़ाओ इनको खूब लिखाओ
बहती धारा हैं ज़माने में बेटियां
इनके रास्ते में कांटे मत बिछाओ


बेटी बरगद के पेड़ की तरह है
जो सूखता नहीं कभी जीवन पर्यंत
प्यार और त्याग की देवी है
सहनशीलता है जिसमें अनंत


बेटियों से घर में रहती है रौनक
जीवन में आ जाती है बहार
महक उठती है जीवन की फुलवारी
रौशन हो जाते हैं घर बार


बेटियां रत्नों का वह अनमोल खजाना है
जो हर किसी को नहीं मिलता है
यह वह फूल है पारिजात का
जो बहुत किस्मत वालों को मिलता है


पंख देंगे अपनी बेटियों की उड़ान को
आओ प्रण लें बेटियों का रखेंगे ख्याल
बहु बेटियों को यदि मानेंगे एक समान
तभी तो होगा हमारा भारत खुशहाल

Written By Ravinder Kumar Sharma, Posted on 31.01.2022

मेवाड़ की मिट्टी से आज भी खुशबू आती है
हल्दीघाटी आज भी उसकी वीरता के किस्से सुनाती है

मुगलों ने जिसके आगे सर झुकाया
 महाराणा का नाम सुन  अकबर भी ना सो पाया

रणभूमि में बहलोल को काटकर
मेवाड़ का शान से परचम फहराया

घायल चेतक की बहादुरी मेवाड़ भुला ना पाएगा
इस दौर में चेतक जैसा मित्र कहां से आएगा

रणभूमि में सौर्य दिखा राणा कहलाए
मेवाड़ की माटी से खुशबू आज भी वीरों की आए

घास की रोटी खाकर चैन से जो सो जाते थे
सपने भी उनको मेवाड़ के ही आते थे

Written By Kamal Rathore, Posted on 26.05.2022

चाह नहीं मैं चाहत बनकर
प्रेमी-युगल को तड़पाऊं
चाह नहीं, खिलौना बनकर
टूटू और बिखर जाऊं
चाह नहीं, पत्थर बनकर
निर्मम,निष्ठुर कहलाऊं
चाह नहीं, बंधन में पड़कर
स्पंदन की प्रीत जगाऊं
चाह मेरी है धड़कन बनकर
रहूं सदा कुर्बान
और तिरंगे में लिपट कर
हो जाऊं मैं हिंदुस्तान।

Written By Narendra Sonkar, Posted on 23.09.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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