आसमानों में लहराते
पर धरा से जुड़े
आते मिलकर बादलों से
पर भूलते नहीं देश को
चांद तारों में जाते
पर मिट्टी को चूमना न भूलते
उड़ते गुरुड़ संग
दाना डालना भूलते ना चिड़िया को
उड़ाते जहाज है
पर चलना भूलते नहीं
छूते गगन को
पर मां के पैरों को छूना ना भूलते
दुश्मनों पर रखते निगाहें आसमान से
पर मिल जाए जमीन पर जिंदा ना छोड़ते
गरजते हैं नभ पर
दौड़ते धरा पर
दुश्मन इनकी बहादुरी से कांपते
सलाम सीमा
रंगा का इन्हें
Written By Seema Ranga, Posted on 21.08.2023हाशिया बनाकर खुद खैर बनकर पूछना
खुश्क सा होकर खस्ता करना
देह स्वतंत्र सी लगे
और मन को कहीं कफस ने जकड़ा।
लफ्ज़ खामोश हो गए
मानो गहरी निद्रा में सो गए
गुमनाम सा कुछ हो रहा था
बवंडरों में अब खो गया था।
गवारा नहीं था हृदय को
और हृदय ही गवाही दे रहा था
गश में पड़े हैं पन्नो की तरह
नार्तस का नाम देकर
गैर सा बनकर
नालिशों में ही तो है जकड़ा।
लोग कई आये और चले गये आजमाकर
हम ठहरे कोरा कागज लोग स्याही की
आखिरी बूंद तक लिखते रहे।
समझ जिनमे जितनी उतनी ही समझ पाये हमें
लोग आते गए पसंद के सारे पन्ने पलटते गए
काश! पढ़ते पूरी किताब कोई
अफ़सोस ऐसा मिला नहीं अभी कोई
लोग अपनी चित्रकारी लगे करने
समझकर रद्दी का पन्ना
कश्तियां बनाकर लोग खेलने लगे।
हम ठहरे कोरा कागज लोग
स्याही की आखिरी बूंद तक लिखते रहे।
वो अटखेलिया करती अकृतज्ञों की भीड़
पहचान छुपाये अपनी अभिमान से भरी
टूटना बिखरना खिलौनों के जैसे
चले भी कितना कोई संभलकर पग-पग में
हर ठौर पर दवात लिए बैठा रहता
कोई अकृतज्ञ
देखकर रचना हमारा
अंदाजा ना लगा बैठना कोई
कोरा कागज सा है डुमर
समझ आये जैसा तैसा रंग भरना
तब तक ही अनमोल है कोई
जब तक ना परे छीटें स्याही के
बेमोल सा लगता है वो पन्ना जो भरे हो
कोई लिखावट या अहसास से।
हम ठहरे कोरा कागज लोग
स्याही की आखिरी बूंद तक लिखते रहे।
बेटियों को भरने दो उड़ान
उड़ने दो बीच खुले आसमान
रोशनी तभी बिखेरेंगी अपनी
चमकेगा फिर यह जहान
बेटे और बेटी में मत फर्क करो
खूब पढ़ाओ इनको खूब लिखाओ
बहती धारा हैं ज़माने में बेटियां
इनके रास्ते में कांटे मत बिछाओ
बेटी बरगद के पेड़ की तरह है
जो सूखता नहीं कभी जीवन पर्यंत
प्यार और त्याग की देवी है
सहनशीलता है जिसमें अनंत
बेटियों से घर में रहती है रौनक
जीवन में आ जाती है बहार
महक उठती है जीवन की फुलवारी
रौशन हो जाते हैं घर बार
बेटियां रत्नों का वह अनमोल खजाना है
जो हर किसी को नहीं मिलता है
यह वह फूल है पारिजात का
जो बहुत किस्मत वालों को मिलता है
पंख देंगे अपनी बेटियों की उड़ान को
आओ प्रण लें बेटियों का रखेंगे ख्याल
बहु बेटियों को यदि मानेंगे एक समान
तभी तो होगा हमारा भारत खुशहाल
मेवाड़ की मिट्टी से आज भी खुशबू आती है
हल्दीघाटी आज भी उसकी वीरता के किस्से सुनाती है
मुगलों ने जिसके आगे सर झुकाया
महाराणा का नाम सुन अकबर भी ना सो पाया
रणभूमि में बहलोल को काटकर
मेवाड़ का शान से परचम फहराया
घायल चेतक की बहादुरी मेवाड़ भुला ना पाएगा
इस दौर में चेतक जैसा मित्र कहां से आएगा
रणभूमि में सौर्य दिखा राणा कहलाए
मेवाड़ की माटी से खुशबू आज भी वीरों की आए
घास की रोटी खाकर चैन से जो सो जाते थे
सपने भी उनको मेवाड़ के ही आते थे
चाह नहीं मैं चाहत बनकर
प्रेमी-युगल को तड़पाऊं
चाह नहीं, खिलौना बनकर
टूटू और बिखर जाऊं
चाह नहीं, पत्थर बनकर
निर्मम,निष्ठुर कहलाऊं
चाह नहीं, बंधन में पड़कर
स्पंदन की प्रीत जगाऊं
चाह मेरी है धड़कन बनकर
रहूं सदा कुर्बान
और तिरंगे में लिपट कर
हो जाऊं मैं हिंदुस्तान।
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