कुछ खट्टी कुछ मीठी
अनुभव है अकेलापन
हर हाल में खुश रहने की
मज़बूरी है अकेलापन।
क्या करना क्या नहीं करना
चुनाव भी खुद ही करना पड़ता है
जैसे भी हो हालात मुस्कुराते रहना पड़ता है
कोई पास नहीं होता दुखी होते जब हम
यहाँ ढांढस भी खुद ही खुद को देना पड़ता है
सुख में सब घिरे रहेंगे ये नियम तो सांसारिक है।
तकलीफे भी अपना हम साझा ना कर पाये
बात भी दिल का किसी से ना कह पाये
अकेलापन अभिशाप है, शायद
परिस्थिति चाहे जैसा भी हो
साझा ना कर पाने की मज़बूरी है, शायद।
आशा और उम्मीद सा कुछ नहीं यहाँ
कहने के बस रिश्ते-नाते अपने पराये
गर हम देखे गौर से जग में कोई नहीं हमारे
हर सुख-दुख यहाँ साझा
खुद से ही करना पड़ता है
अकेलापन, शायद कुछ ऐसा ही होता है।
खुद ही टूटना खुद ही बिखरना
और खुद ही संभलना पड़ता है
बता भी दे गर हाल ए दिल अपना हम
डुमर यहाँ कौन बाँटने आता है।।
कुछ खट्टी कुछ मीठी...
Written By Dumar Kumar Singh, Posted on 30.08.2023शिव शंकर हम भक्त तुम्हारे बेआस-बेसहारे
लो हम तो आ गए अब शरण में तुम्हारे
शिव शंकर हम भक्त तुम्हारे।
मुफलिस गरीब हम हैं औकात क्या हमारी
आन पड़ी है हम पर आज विपदा भारी
मझधार में फंसे हैं मिलते नहीं किनारे
शिव शंकर हम भक्त तुम्हारे।
तेरी दया से चलती है दुनिया सारी
इक तुम ही हो दाता सारा जग है भिखारी
हम पर दया जो कर दो
बन जाए बिगड़ी हमारी।
शिव शंकर हम भक्त तुम्हारे बेआस-बेसहारे
लो हम तो आ गए अब शरण में तुम्हारे
शिव शंकर हम भक्त तुम्हारे।
दर से न तेरे लौटा कोई लेकर झोली खाली
हम पर दया जो कर दो बन जाए बिगड़ी हमारी
विनती मेरी भी सुन लो बस इतनी अरज हमारी
दर पर तेरे खड़ा हूं लेकर झोली खाली
झोली मेरी भी भर दो हे त्रिनेत्र धारी।
सांझ ढले
खुले आसमान में
खिलने की प्रतिक्षा रत
तारे
देख रहें हैं राह
दिनकर के जाने की
क्योंकि
उनके जाने के बाद ही
आसमां में नजर आएंगे
चांद सितारे
जो करेंगे हमें
अंधकार से लड़ने के लिए
प्रेरित।।
Written By Manoj Bathre , Posted on 03.06.2021
निश्चित ही जीवन लाजबाब है और हममें से ज्यादातर लोग इसे स्वीकार भी कर लेते हैं तभी तो कुछ भी दिक्कत या कठिनाई आये, लोग अपने आपको सकारात्मक बनायें रखते हैं। अपने से जुड़े लोगों के जीवन में कोई भी दिक्कत आये तो लोग ढाढस बंधाने अक्सर पहुँच जाते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि शायद इस कठिनाई में इसका धैर्य अचानक कभी जबाब न दे जाये,इसलिए हमारा पहुँचना जरूरी है। शायद हमारे मुहँ से अनायास ही कुछ ऐसे शब्द निकल जायें जो उसको धैर्य रखने के लिये प्रेरित कर सकें। यही तो जीवन की सक्रियता है कि हम चाहते हैं कि हमसे जुड़े लोग हमेशा एक स्वस्थ व सक्रिय जीवन जियें।
पिछले दिनों जब में दुर्घटनाग्रस्त था तब ज्यादातर मेरा समय कवितायें,कहानी और उपन्यास लिखने में गया। एक दिन जब मैं सुबह उठा तो मैंनें अपने फोन को देखा तो अनायास ही एक बात जेहन में आयी कि मेरे पास पिछले दो दिन से कोई भी फोन नहीं आया था। तब मैंनें इस बात पर विचार करना प्रारंभ किया तो बहुत कुछ समझ आया। मैंनें गौर किया कि प्रारंभ के दो हफ्ते तो इतने कॉल थे कि मैं फोन उठा भी नहीं पा रहा था क्योंकि चिकित्सक महोदय ने आराम की सलाह दी थी तो पत्नी श्री फोन को साइलेंट पर लगा देती थी। मगर जब भी मैं जगता तो सबको कॉल करता। धीरे-धीरे ये सिलसिला एक माह तक चला और कम होता गया। अगले पन्द्रह दिनों में तो लोगों ने मुझे भुला ही दिया था।
तीस साल का जीवन, साठ से भी ज्यादा दोस्त, अनगिनत रिश्तेदार और हजारों विभागीय मित्र मगर डेढ़ महिने बाद सब एक-एक कर गायब हो गये। आगे का समय और भी वीभत्स था। जैसे-जैसे दो माह गुजरे तो मेरे परिवार के लोग जिनमें मम्मी-पापा,दोनों बडे भाई-भाभीयाँ, पत्नी,भतीजे-भतीजी, ससुराल पक्ष के कुछ लोग और तीन मित्र ही थे जो लगातार सम्पर्क में थे। बाकि जो दुनियाभर का आडम्बर मैं ढोकर चल रहा था, हौले-हौले सब विलुप्त हो गया। ये सब मुझे उस वक्त इसीलिए भी बहुत अजीब लग रहा था कि जैसे ही मैं अपने काम में निष्क्रिय हुआ तो मेरी पीठ थपथपाने वाले बरसाती मेंढक मेरे मित्र और चहेते लोग भी कन्नी काट गये। मेरा जीवन ही नहीं, मेरा अस्तित्व ही निष्क्रिय सा हो गया। जिस व्यक्ति के पास कम से कम तीस कॉल रोज आती हों अलग-अलग समस्यायों को लेकर, अगले तीन माह वो फोन का उपयोग बस एक गेम खेलने के डिब्बे की तरह कर रहा था।
मैं यहाँ बस इतना कहना चाह रहा हूँ, कि लोगों कि नजर में आपकी अहमियत सिर्फ और सिर्फ आपके काम की वजह से है। कुछ चंद लोग ही हैं जो आपको हर परिस्थिति में स्वीकार लेते हैं। बाकि सब मिथ्या ही है। जैसे ही आपके जीवन में कोई भी कष्ट आया, ये पहले काफूर हो जाते हैं। बात सिर्फ और सिर्फ सक्रिय जीवन जीने की है। अगर आप लगातार काम कर रहे हो, सक्रिय हो। तो लोग आपसे जुड़े रहेंगें, आपमें दिलचस्पी लेंगें। मगर जैसे ही आप निष्क्रिय हुये वो आपको उसी हालत में छोड़कर आगे बढ़ जायेंगें। और कमाल की बात ये है कि जब आप अपने काम में बापस लौटेंगे तो ये लोग भी हौले से बापस आ जायेंगें, अपनी बनावटी अपनत्व की बाहें फैलाये हुये। मगर अब आप सावधान हो चुके हो, आप भी इनका मुस्कुराकर स्वागत कीजिये और ईश्वर का धन्यवाद दीजिये कि समय रहते इन लोगों के असली चेहरे सामने आ गये। स्वीकारिये सबको मगर अपनाईये उन्हें ही जो मुसीबत में आपके साथ बिना लोभ के खड़े थे। अपने सक्रिय जीवन का लाभ उन्हें दीजिये जिन्हें आपकी निष्क्रियता से कभी फर्क ही नहीं पड़ा।
Written By Sumit Singh Pawar, Posted on 04.02.2022
भला भी कहा है, बुरा भी कहा है,
वही तो कहा है, जो देखा-सुना है।
सुना है कि तू है अमन का मसीहा,
मगर तेरे घर से धुआँ क्यों उठा है?
उठा है धुआँ तो तनिक झाँक भीतर
कि दुश्मन न जाने कहाँ जा छुपा है!
छुपा है जो दुश्मन, तो छुपने दे लेकिन,
ख़बरदार हो जा, इसी में भला है।
भला है वही, जो करे है भलाई,
भले के लिए तो बुरा भी भला है।
नृत्य सदा करता है, मन के भावों का सुन्दर अभिव्यंजन।
कभी देवलोक की सभा तो कभी दैत्य सम्मुख मनोरंजन।
नृत्य मोहिनी रूप में कर, सब दैत्यों को विष पिलाया था।
कभी शिव के घोर तांडव से, तीनों लोकों को हिलाया था।
नृत्य कला को पवित्र कर शिव ने, नटराज रूप धारा था।
कृष्ण ने नृत्य किया नाग के फन पर, पूरा पाप उतारा था।
अधर्म का नृत्य हुआ था जब, तब स्वर्ग के देव भी हारे थे।
मां काली ने क्रोध में नृत्य कर, सारे असुर-दैत्य संहारे थे।
नृत्य, गायन, लेखन को सदा, मां शारदे का प्यार मिला।
सभी साधना सिद्ध हुईं, न मार्ग में कभी प्रतिकार मिला।
नृत्य-शास्त्र में क्या देखें भला, हम दिशा-दशा का खेल।
इस कला में रचा-बसा है, मात्र साधना-साधक का मेल।
चलो उत्तर से करें प्रारंभ, हम इस नृत्य-कला का सफ़र।
चौंफला, गरबा, गिद्दा, भांगड़ा करते हुए पहुंचे हम घूमर।
अब यह नृत्यकला यात्रा, है दक्षिण भारत की ओर चली।
भरतनाट्यम, कुचिपुड़ी, थेय्यम, ओडिसी संग कथकली।
सूर्योदय की दिशा की ओर, दिखें नृत्य के चहचहाते पिहु।
चांग लो, मणिपुरी, चेरो, होजागिरी संग में थिरकता बिहु।
पश्चिम दिशा में जाते ही हमें, दिखी कई नर्तकों की टोली।
डांडिया, लेज़िम, फुगड़ी, तर्पा, लावणी, हूडो संग में कोली।
कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।