मैं हिंदी,भूखी थोड़ी हूं
सम्मान की
मैं तो मां हूं
इस भारत की।
न जाने क्यों लोग मुझे
आज कहने से डरते हैं
मुझे अपने ही बच्चों से दूर करते हैं।
क्या मैं इतनी बुरी हूं
जो मुझसे किनारा कर
मेरे ही घर में
मेरे स्थान पर
विदेशी भाषा को मेरा स्थान देते हैं।
अब के भी बहार आयी तो यूँ ही गुज़र गई,
घड़ियाँ ख़्वाबों की इंतेज़ार में ही गुज़र गई,
सफ़र सफ़र ही रहा में भी मंज़िलों से दूर,
संग ए गिरा थे ख़्वाब तिशनगी में गुज़र हुई,
चांद भी रफ़्ता रफ़्ताअब हुआ मद्धम सा,
जुस्तजू थी फ़ूलों की काँटों से उलझ गई,
उम्रे रवां थी रुकती भी किस तरह बोलो,
होंठ हुए गुलाब, आंखें तीरों में बदल गई,
कैसी अजीब प्यास थी,बेक़रारी लिये हुये,
फूलों से जले हाथ,मंज़िलें ही बदल गई,
दर्द की रहगुज़र, जिंदगी हक़ीकत बदली,
रफ़्ता रफ़्ता मुश्ताक़ इज़तराबों में घुल गई।
ऐ वतन वालो बचा लो
कर लो रक्षा सरजमीं की
बात रही ना अब तेरी ना मेरी
आ गई बात मातृभूमि पर
हवाएं चली जहरीली बड़ी
दुश्मन घोल रहा जहर
खोना चाहते देशद्रोही
साख को हमारी
घात लगाए बैठे जो
आकर आगे हो जाओ खड़े
उठो स्वदेश की जमीं कौन
उखाड़ रहा देख लो जरा
दिखला दो दमखम अपना
बतला दो तुम हो भारतवासी
ना सुनो ना आओ बहकावें में
देश हमारा हम देश के
Written By Seema Ranga, Posted on 21.08.2023मानवता का पाठ पढ़ाकर
जीवन क्या है दिखलाया
क,ख,ग,घ और ककहरा
तूने मुझको सिखलाया
आज बना बलबूते तेरे
अध्यापक सरकारी हूॅं
हिन्दी मैं आभारी हूॅं
हिन्दी मैं आभारी हूॅं...
निरक्षर से साक्षर बनाकर
जग में मेरा मान बढ़ाया
दया-धर्म,सद्भाव,प्रेम का
तूने मुझको पाठ पढ़ाया
आज बना बलबूते तेरे
भाषा का अधिकारी हूॅं
हिन्दी मैं आभारी हूॅं
हिन्दी मैं आभारी हूॅं...
निराला,वर्मा,प्रसाद और
दिनकर,पंत,सुभद्रा देवी
कितने नाम गिनाऊं रे
हैं इतने असंख्य सेवी
वंशज हूॅं मैं संत कबीर का
और तेरा दरबारी हूॅं
हिन्दी मैं आभारी हूॅं
हिन्दी मैं आभारी हूॅं...
लिख्खा,पढ़ा,कहा,सुना
रोया-धोया,चीखा खूब
आंचल में तेरे सवंरकर
पला,बढ़ा मैं सीखा खूब
तूं है मेरी प्राण-प्रतिष्ठा
मैं तेरा कर्मचारी हूॅं
हिन्दी मैं आभारी हूॅं
हिन्दी मैं आभारी हूॅं...
चाहे लगा लो पहरे हज़ार,
फिर भी अलग से पहचानी जाऊँगी,
क्योंकि मुझे समझने वाले,
कोई और नहीं भारत के हैं बंदे अनेक,
मैं हिंदी सब भाषाओं पर भारी हूँ.
सीधी, सरस और सहज हूँ मैं,
शीघ्र ह्रदयतल में बस जाती हूँ,
किसी भाषा से न कोई बैर-भाव मुझे,
चाहे कोई भी राज्य की भाषा हो,
मैं हिंदी सब भाषाओं पर भारी हूँ.
कुछ लोग करते हैं अपमान मेरा,
पर पार्टियों की शोभा भी बनती मैं ही हूँ,
साहित्य भी मुझसे ही पहचाना जाता है,
गीत, ग़ज़ल और काव्यपाठ का आधार हूँ मैं,
मैं हिंदी सब भाषाओं पर भारी हूँ.
शब्दों के तार से बंधी वींणा हूँ मैं,
हरदम रहती अपने में मस्त हूँ मैं,
और कोई नहीं जानी पहचानी भाषा हूँ मैं ,
अपने हिंदुस्तान की प्यारी हिंदी हूँ मैं,
मैं हिंदी सब भाषाओं पर भारी हूँ.
जय हिंदी! जय भारत!
Written By Nutan Garg, Posted on 16.09.2023शतरंज की बिसात बिछाई जाएं,
फैसले होगें हक में जिनके,
वो प्यादे, किले, वजीर, घोड़े,
सब दौलत लुटाई जाएं,
हार का तमगा मुझे पहना दो,
इसी बहाने
हकीकत दुनिया की जानी जाएं।।
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