जन-मन की भाषा है हिंदी,
करे पूर्ण हर आशा है हिंदी।
लिखें-पढ़ें सब हिंदी में अब,
मनभावन वतासा है हिंदी।।
तुलसी-सूर,निराला ने पढ़ा है,
प्रसाद,जायसी,मीरा ने गढ़ा है।
संस्कृत के दामन में फली-फूली,
बावन वर्णों का भुवन खड़ा है।।
लिए हुए है लिपि देवनागरी,
साग़र-सी गहरी शब्द गागरी।
विस्मयी है व्याकरण हिंदी का,
हैं सरल,सुबोध,सुगम भाव री।।
अतुलित दोहा, सोरठा,चौपाई,
मुदित करे मन गीत-गीतिकाई।
नाटक,निबंध,कविता, कहानी
पढ़,भावों की बगिया हरसाई।।
निज भाषा नही संभव उत्थान,
छोड़ दो कहना भारत है महान।
हों काज सभी हिंदी में ही अब,
खगोल, गणित या हो विज्ञान।।
अब ओर नही अंग्रेजी पढ़ेंगे,
मन के उदगार हिंदी में गढ़ेंगे।
आओ हिंदी के दीवानों आओ,
हिंदी-ध्वज लिए आगे को बढ़ेंगे।।
मन के विचार जब करते नाद
शब्दों का जब होता आपसी संवाद
समझने में जो आसान लगे हमें
फिर भाषाओं की दुनिया का कैसा विवाद ?
मन को जीत लेते हैं शब्द सारे
हिन्दी वर्णमाला का कुछ ऐसा स्वाद
राग- रागनी जीवन उतारू
हिन्दी बोली को और कितना संवारूं
बोल हिन्दी चाल हिन्दी
फिर कैसी निज भाषा बोलने में शर्मिंदगी
गर्व है इसके स्वर- व्यंजनों पर
वार दूँ इसके प्रचार- पसार में ज़िन्दगी
समझने में आसान लगे लिखने में होती कोई कठिनाई नहीं
सब भाषाएँ अपनी है कोई किसी से पराई नहीं
वेद पढूं, पुराण पढूं, उपनिषद
और रामायण- गीता का सार जानूं
हिन्दी है भाषा प्यारी इसका ही उपकार मानूं
आसान लगे हर साहित्य विधा हमें
कुछ पंक्तियाँ लिखने की जब ठानूं
राह काव्य की जब चुनता हूँ
हिन्दी में गीत बुनता हूँ
संशय मिटे मन के सारे
सब भाषाओं का उत्तर भी हिन्दी में सुनता हूँ
बदल जाए वाक्य यहाँ
जब हिन्दी के रस में डूबता हूँ
विश्व पटल पर अपनी चमक बिखेरने
वर्ण लगे जब भाव मोती उकेरने
हिन्दी की दशा तुम भी सुधारो
हिन्दी बोलने वालों को अनपढ़ ना पुकारो
कैसी शर्म ये इसके उद्घोष में ?
ज्ञान की गंगा बहती इसके शब्दकोष में
हर वाक्य को आसान बनाती
मातृभाषा की पहचान कराती
शब्द इसके, वाक्य इसके, वर्ण इसके, भेद इसके
कभी झूमती कभी इठलाती
सभी करो अपनी भाषा से प्रेम- प्यार
ताकि और विस्तृत हो हिन्दी का प्रसार
लिपि इसकी बेहद पुरानी
रचे इतिहास इसमें ज्ञानी
फूटती रहे इसके व्याकरण की जवानी
हिन्दी है सब भाषाओं की खानदानी
झिझक मिटाओ, ऊँचे स्वर में गाओ
क्यूँ होती है तुम्हें हैरानी
जैसे चमकता सुहागन का हार- श्रृंगार
जैसे सुसज्जित लगता गले में हार
जैसे कोयल की मिट्ठी वाणी
वैसा है इसका व्यवहार
बोल हिन्द हिन्दी की जय जयकार
बोल हिन्दी की जय जयकार
है दिवस आज, हिंदी का
हिंदी दिवस मनाएंगे हम
है एकता की भाषा यह
समझेंगे, समझाएंगे हम।
देश मे कितनी ही भाषाएं
लिखी-बोली जातीं है
हिंदी वो भाषा है जिससे
सबको जोड़ी जा सकती है।
राजभाषा के रूप में चिन्हित
संविधान में यह अंकित हैं
मातृभाषा के रूप में हिंदी
हर दिल मे भी संचित है।
अपनी संस्कृति का मूल स्वरूप
हम हिंदी में पाते है
पराधीन की भाव से परे
स्वाभिमान जगा देती है।
सन उनचास सितंबर चौदह
लिया गया निर्णय यह
संविधान सभा में सभी के मत से
भाषाओं का मुकुट बना यह।
राजभाषा का दर्जा पाकर
अब थी प्रसार की बारी
तिरपन में आज ही पहली बार
हिंदी दिवस प्रकाश में आई।
तब से अबतक अनवरत प्रयासों से
विविधता में एकता आई
पूरे भारतवर्ष तो क्या
यह अब पूरी दुनिया मे है छाई।
अंग्रेजी, मंदारिन के बाद ये भाषा
है तृतीय स्थल पर
पर पहला स्थान यह रखता
हर हिन्दुस्तानी के दिल पर।
फिजी नामक द्वीप देश मे
आधिकारिक भाषा है यह
मॉरीशस, नेपाल, सूरीनाम, गुयाना
में भी बोली जाती यह।
प्रेम की अपनी बोली हिंदी
ह्रदय की यह वाणी है
नहीं सितंबर चौदह केवल
इसे हर दिन अपनानी है।।
कभी लोरी कभी कजली, कभी निर्गुण वो गाती है,
कभी एकान्त में होती है माँ, तो गुनगुनाती है।
भले ही ख़ूबसूरत हो नहीं बेटा, पर उसकी माँ,
बुरी नज़रों से बचने को उसे टीका लगाती है।
कोई सीखे, तो सीखे माँ से बच्चा पालने का गुर,
कभी नखरे उठाती है, कभी चाँटा लगाती है।
ये माँ ही है जो रह जाती है बस दो टूक रोटी पर,
मगर बच्चों को अपने पेट-भर रोटी खिलाती है।
रहे जब से नहीं पापा, हुई माँ नौकरानी-सी,
सभी की आँख से बचकर वो चुप आँसू बहाती है।
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