भारत माता के रखवाले
भारत माँ पर मिटने वाले
अपनी धुन के पक्के सिपाही
काम जो कर गए अजब निराले
गुलामी भारत माता की देखकर
उनके मन में कुछ खटक रहा था
अत्याचार भारतीयों पर देखकर
मन द्रवित होकर भटक रहा था
आज़ादी की कसम थी खाई
आज़ाद हिंद फौज थी बनाई
अंग्रेजों से लोहा लेकर
आज़ादी की लड़ी लड़ाई
जलाकर ज्योति देश प्रेम की
अमर हो गए वह बलिदानी
भारत माता को जंजीरों से
आज़ाद करने की थी जिसने ठानी
देशभक्ति का जज़्बा जागा युवा बहुत आगे आये
आगे बढ़ते गए सब मिल कर कन्धे से कन्धा मिलाए
अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर सबने मजबूर किया
आज़ाद हिंदियों ने दिन में तारे उनको दिखलाए
गर्म खून के थे नेताजी अत्याचार नहीं सहते थे
डरतें नहीं किसी से जो कहना मुंह पर कहते थे
एक ही मकसद था उनका बस आज़ादी मिल जाये
उठते बैठते चलते फिरते यही सोचते रहते थे
तुम मुझे खून दो मैं तुमको आज़ादी दूंगा
भारतमाता का शीश कभी झुकने न दूंगा
सोने की चिड़िया को मिलकर बहुत लूट चुके हैं सारे
गिन गिन कर बदला लूंगा अब और नहीं लुटने दूंगा
हार-थक कर उसने कॉन्ट्रैक्टरी करने की ही विचार मन में ठानी। किसी प्रकार मंत्री जी के सिफारिश पर इंजिनियर राजी हो गया। एक रिपेयरिंग वर्क भी मिल गया। काम समाप्त होने पर उसने हिसाब लगाया, लागत घटा कर साढ़े आठ हजार ज्यादा निकले थे, पिछले छः माह के परिश्रम की कहानी, पान की दुकान पर खड़े-खड़े उसके स्मृतियों को ताजा कर रहा था। इन स्मृतियों में वह अपने जीवन की मूर्ति उकेर रहा था कि अचानक किसी ने उसकी तंद्रा भंग की,
``सा`ब, आपको बड़े साहब ने याद किया है, कल अॉफिस में ही मिल लीजिएगा।``
``अच्छा ठीक है।`` उसने पीछे मुड़ कर देखा और बोला, फिर पुन: सामने घुम कर पानवाले के हाथ से पान लेकर जबड़े में डाला और जर्दा फांक गया।
`` नमस्कार सर !``
`` नमस्कार, आओ जी बैठो !``
`` सर,आपने मुझे याद किया था ! कल नारायन, चौक के पान दुकान पर मिला था,बता रहा था।``
`` हां, ऐसा है ग्यारह फरवरी को आपके मंत्री जी अपने क्षेत्र में जा रहे हैं। शाम में सुरतपुरा-सरयुडीह सड़क का शिलान्यास करेंगे और रात्रि में सुरतपुरा में ही विश्राम करेंगे. सारी व्यवस्था की जिम्मेवारी आप ही पर सौंप रहा हूं, साथ में मैं भी रहुंगा।``
``सर! लेकिन! कितने लोग होंगे, लगभग सर ?``
``यही लगभग पचास-साठ लोग वीआईपी और तीस-चालिस लोग क्लास टू वाले।जरा बढ़िया व्यवस्था करना, मंत्री जी आशीर्वाद देंगे, क्लास टू वालों में तो साधारण शाकाहारी भी चलेगा।``
``लेकिन मैं सर अभी इतने पैसे !``
``क्या कहा ? चले जाओ यहां से हट जाओ मेरे सामने से!``
``लेकिन सर!``
``गेटाउट गे ट आउट फ्रौम हियर ।``
दुसरे दिन वह पुनः हिम्मत कर के गया।
``नमस्कार सर !`` वह सहमते हुए कहा।
``तुम फिर आ गये ? तुम्हारे जैसे लोग ही तो सारे सत्यानाश के जड़ हैं। विभाग की बदनामी मंत्रालय तक कराते हैं। फिर अपना मुंह दिखाने आये हो ?
वह नोटों की एक गड्डी निकाल चरणों में अर्पित करते हुए, गिड़गिड़ाने लगा।
``जो कहिए हुजूर, मैं तैयार हूं। रात भर नींद नहीं आई है। मेरी कल मति मारी गयी थी, जो आपसे वैसा बोला था।``
`` आ गये होश ठीकाने !और इन्हें लेकर चबाऊंगा मैं ?अरे उनकी सोच जिनके बदौलत तूं यहां पहुंचा है !गधे बिना दुलत्ती झाड़े नहीं रहते। मैं जानता था, ये सब तुझे ही करना है करोगे भी, फिर ये रोना कैसा ? सुबह-सुबह मूड खराब कर देते हो।`` इंजिनियर अब नम्र होते जा रहा था।
नोटों की गड्डी लेकर ब्रीफकेस में डालते हुए बोला, ``अच्छा दे दो इसे रख लेता हूं, रास्ते में कंगालों को पेट्रोल भरवाने के काम आएंगे।``
`` हुजूर नया आदमी हूं।अभी सबकुछ मेरी समझ में नहीं आता ! कहीं नासमझी हो जाए तो बूरा न मानेगें ?``
``अरे भाई हम बूरा काहे का मानेंगे। अपना समझ कर तुम्हारे लिए ही कहता हूं,मार्च के अंतिम की ही तो बात है।जो खर्च होगा उसमें चार से गुणा कर के निकाल लेना। इस प्रकार के यज्ञ में किये गये दान-पूण्य ही तो आदमी के भविष्य सुधारते हैं। तुम्हारे भविष्य भी।``
वह नत्तमस्तक सब सुनता जा रहा था।
वो अब मन-ही-मन गुणा सीखने लगा था।उसकी बाछें खिल उठी थीं। उसे आज पहली बार व्यवस्था के नसों की पकड़ की अनुभूति हो रही थी।
प्रिये तुमने झकझोरा अंतर्मन को,
सपनों में बसाये तेरे दिल को।
एक मेला लगाया नैनन में,
तेरा प्यार चुराया चितवन में।
प्रिये तुम ख्वाब बन जाओ मेरे,
मैं आवाज बन जाऊं तेरे दिल के।
ना मैं रहूं अकेला हर एक मोड़ पे,
ना तुम रहो अकेली किसी मोड़ पे।
प्रिये तुम सज लो मेरे नाम पे,
ना दवाओ खुशियाँ किसी हाल पे।
तुम बटोर लो खुशियां मेरे नाम के,
हम समेट लें गम सारे तेरे नाम के।
सावन के बूँदों को रिमझिम बरसने दे,
गुलाब की महक को यूं ही महकने दे।
प्रिये तुम बन जाओ अजब जहान मेरे,
मैं संभाल लूं हर कमान तेरे।
तुम हो सुन्दरतम प्यार का एहसास मेरे।
बोलते रहो यूं ही प्यार के वचन अनमोल प्रिये।
प्रिये हर समय हर घड़ी अब आस है तेरी,
तुम मिलो ना मिलो मैं ढूंढू आस लिए बड़ी।
Written By Subhash Kumar Kushwaha, Posted on 16.06.2022देख कैसे- कैसे मेरी लाश को संवारा जा रहा है
जो पसंद था उसको कमीज़ मेरा सफ़ेद
उसको भी अब मेरे बदन से उतारा जा रहा है
कैसे सम्भालोगी तुम खुदको मुझे मालूम नहीं
जिससे हंसती थी लड़ती थी रूठती थी वो
उस बाग़ का रूठकर नज़ारा जा रहा है
किसी ने समझा नहीं मुझे जब ज़िंदा था उनके बीच में
आज रो- रो कर ज़ोर- ज़ोर से पुकारा जा रहा है
बन्द ना होने देना आँखें उसकी जो मुझे चाहती थी सिंदूर से ज्यादा
आँसुओं की सरिता में बहाकर मुझे निहारा जा रहा है
सम्भलना सिखाना पड़ेगा उसे मेरे बाद
जब मैं ना रहूँगा
देखना आसमां का बादल भी रो पड़ेगा ये देखकर
कि देखो आज उसका सहारा जा रहा है
जब निकल ही पड़े हो मोतियों की तलाश में
तो ढूंढो गहराई में जाकर
तुम ये ना कहना आईने को दिखाकर
देखो एक कश्ती से दूर उसका किनारा जा रहा है
पता है मुझे वो रोती बहुत है
एक औरत है ना, घर सम्भालना जानती है
पर आज उसका एक नाता जा रहा है उसे छोड़कर
देखो उसकी आँखों से खुशियों सा प्यारा जा रहा है कोई
उसे एक चश्मा पहना देना, कहीं फिर वो ये ना कहे
मेरी चिता को देखकर कि
मेरी आँखों का अब उजियारा जा रहा है
कौआरोर मची पंचों में,
सच की कौन सुने ?
लाठी की ताक़त को बापू
समझ नहीं पाये,
गये गवाही देने,
वापस कंधों पर आये,
दुश्मन जीवित देख दुश्मनी
फुला रही नथुने।
बेटे को ख़तरा था,
किन्तु सुरक्षा नहीं मिली,
अम्मा दौड़ीं बहुत,
व्यवस्था लेकिन नहीं हिली,
कुलदीपक बुझ गया,
न्याय की देवी शीश धुने।
सत्य-अहिंसा के प्राणों को
पड़े हुए लाले,
झूठ और हिंसा सत्ता के
गलबहियाँ डाले,
सत्तासीन गोडसे हैं,
गाँधी को कौन गुने?
आजा...रे!
मेरी बहना, आज राखी का त्योहार है।
नदिया कलकल करके तुझे बुलाए
कलरव करके खगगण राह तुझे दिखाए
बहना रे! आज राखी का त्योहार है
भैया तुझे बुलाए, तेरे आने से घर-आँगन खुश हो जाए
मइया तोरे राह निहारे, बाबुल की अँखियन के हो तारे
बहना भैया के घर आए, भैया के तन-मन हर्षित हो जाए
बहना सावन का है महीना, मोर नाचै गाँव के खोरा रे
कच्चे धागे का बंधन है अनमोल रे,
बहना आजा, खुशी से बरसे बदरा रे
आजा रे...! राजा भाई तुझे बुलाए रे!
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