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Monday, 11 September 2023

  1. आ गए वो नेकियाँ अपनी गिनाने के लिए
  2. रगों में दौड़ता अंधविश्वास
  3. वो एक क़िताब
  4. जिसकी जैसी भावना
  5. सच्चाई का सार देखिए
  6. ज़िंदगी उनके नाम

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आ गए वो नेकियाँ अपनी गिनाने के लिए!
यानी नज़रों में बड़ी की़मत बढ़ाने के लिए!

मौत ने आकर के ऐसे मुझको बेबस कर दिया, 
चार काँधों की ज़रूरत थी उठाने के लिए!

इतनी छोटी बात पर क्यों चल दिए हैं रूठकर,
इक गुज़ारिश ही तो की थी मुस्कुराने के लिए!

बात ऐसी थी तो बतलाना तो भाई फर्ज़ था,
कुछ रुकावट तो नहीं थी आने जाने के लिए!

ढ़ूँढ़ता वो फिर रहा था काम को चारों तरफ,
आज़माईश होरही थी ज़र कमाने के लिए!

एक मुद्दत हो गई देखे हुए तुझको सनम,
याद तेरी आ गई मुझको सताने के लिए!

धीरे धीरे रोज़ पारा नीचे गिरता जा रहा,
बढ़ रही है रोज़ सर्दी कँपकँपाने के लिए!

देशभक्ति का हो पुट सुर भी हो उसमें ताल हो,
हमने गीत ऐसा लिखा है गुनगुनाने के लिए!

मुस्कराहट ही हमें काफी थी जानम आपकी,
आप तो गुलशन उठालाए सजाने के लिए!``

ऐ लकी हरगिज़ न तेरे घर वो आएँगे कभी,
वो कमरबस्ता थे बैठे इस बहाने के लिए!

Written By Mohammad Sagheer, Posted on 20.02.2022

आंखें बंद करके जिसका विश्वास कर लिया जाता है।  वही तो अंधविश्वास होता है इसमें हमारे भारतीय नंबर एक पर हैं।  यह कहूं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।  आए दिन पत्र-पत्रिकाओं टीवी न्यूज़ चैनल वाले अंधविश्वास को बढ़ावा देती खबरें आती रहती है यह सब अपने चैनलों की टीआरपी बढ़ाने के लिए इस समाज को अंधविश्वास के दलदल से निकालने के बजाय और गहरे दलदल में डालते जा रहे हैं।
 
कई बार आपने भी इस तरह की खबरें पढ़ी और सुनी होगी।  कई जगह पर शारीरिक विकृति होने के कारण जन्म के समय किसी बच्चे के 6 उंगली आ जाती है या कान बड़े आ जाते हैं या दो सिर आ जाते हैं या पूछ आ जाती है।  तो हमारे समाज में इसको शारीरिक विकृति न मानकर उस बच्चे को किसी ना किसी देवता का रूप बताकर उसकी पूजा अर्चना चालू कर दी जाती है।  यही वाक्या कई बार जानवरों के साथ भी होता है जन्म के समय उनमें कोई विकृति होने पर उसकी पूजा अर्चना कर दी जाती है। और फिर सिलसिला चालू होता है धर्म के नाम पर लोगों को ठगने का, लूटने का और जगह जगह यह खबर फेलती है तो अंधविश्वास से भरे पड़े लोग, आंख बंद करके उस जगह पर पहुंच जाते हैं। और एक मेला लगवा दिया जाता है और आम लोगों को ठगने का एक लंबा सिलसिला चालू हो जाता है।

अभी कुछ दिनों पहले हमारे शहर के समीप एक गांव में एक सांप अपने बिल से रोज बाहर आता, कुछ देर रुकता और वापस बिल में चला जाता था।  यह सिलसिला पाँच-छ:  दिन से लगातार चलता रहा,  गांव वालों की उस पर नजर गई तो गांव वालों ने उसके लिए दूध रख दिया और धीरे-धीरे लोगों का हुजूम उमड़ने लगा आस-पास के गांव में यह बात जंगल में आग की तरह फैल गई की फलाने गांव में एक देवता सांप बनकर रोज लोगों को दर्शन देने आता है तो सभी लोग आसपास के गांव के लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा और लोग  उस से आशीर्वाद लेने लगे,  चढ़ावा चढ़ाने लगे और गांव के ही कुछ लोग इकट्ठा होकर चढ़ावे को आपस में बैठकर खाने लगे।  एक साधारण सी घटना को धर्म के नाम पर अंधविश्वास के नाम पर लोगों को ठगने का सिलसिला चालू ही हुआ था की एक दिन वह सांप मर गया और गांव वालों के पास जो हजारों में चंदा रोजाना का आ रहा था वह बंद हो गया। 

हम भारतीयों में अंधविश्वास अपनी जड़ें इतनी गहरी तक जमा चुका है कि यह अंधविश्वास अब हमारी रगों में खून की तरह दौड़ता रहता है।  आजादी तो हमको 15 अगस्त 1947 में ही मिल गई मगर हम आज भी अंधविश्वास की बेड़ियोँ में जकड़े हुए हैं। हम आज भी सफर करते समय नदी में सिक्का उछालते हैं। बिना यह सोचे समझे कि उस जमाने में पीतल का सिक्का नदी में डालने से जल शुद्ध होता था मगर हम आज भी उसी धारणा में लिपटे हुए साधारण सिक्कों को पानी में डालते हैं।  हम आज भी मंदिरों में वीआईपी दर्शन करने के लिए हजारों रुपए आंख बंद करके खर्च कर देते हैं और बाहर बैठे हुए भिखारी को ₹10 देने में भी हिचकीचाते हैं। हम यह भी जानते हैं कि हमारे रुपयों का उपयोग यह संपन्न पंडित ही करेंगे फिर भी हम आंख बंद करके इनकी झोली भर देते हैं।। 

मानव सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है भगवान में आस्था रखना बहुत अच्छी बात है। यह हम में एक सकारात्मक ऊर्जा बनाता है मगर हमें अच्छे और बुरे परिणाम हमारे कर्मों के आधार पर ही मिलते हैं हम कितना ही मंदिरों में दान कर लें अगर हमारे कर्म अच्छे नहीं हैं तो उसका परिणाम हमें ही भुगतना पड़ेगा। 

आज भी हमारे गांव में देवी-देवताओं भूत प्रेतों को स्थान दिया जाता है कुछ सालों पहले तक गांव में चेचक की बीमारी को माता जी का अवतार मानकर उसका झाड़-फूंक करने की प्रथा जोरों पर थी।  आज भी गांव में किसी महिला को चुड़ैल घोषित कर,  उसको दर-दर भटकने के लिए व घुट घुट कर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।  यह काम समाज के वही ठेकेदार करते हैं जिनको इन घटनाओं से फायदा मिल रहा हो।  गांव के भोले भाले लोगों को पागल बना कर इस तरह का खेल रचा जाता है। आज सबसे ज्यादा जरूरत है खुद को जागरूक करने की, स्वयं को जानने की,  अंधविश्वास की बेड़ियों को हम स्वयं को ही समाज से दूर करना होगा।
तभी नई पीढ़ी एक स्वतंत्र भारत में और एक स्वतंत्र समाज में आगे चलकर प्रगति के सोपान लिख पायेगी।

Written By Kamal Rathore, Posted on 25.02.2022

वो एक क़िताब

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Ganpat Lal
~ गणपत लाल उदय

आज की पोस्ट: 11 September 2023

सम्पूर्ण इतिहास समेटकर रखतीं वो एक क़िताब,
देश और विदेशों में पहचान बढ़ाती यहीं क़िताब।
शक्ल सूरत से कैसे भी हो देती सबको यें सौगात,
हर प्रश्न का उत्तर है एवं श्रेष्ठ सलाहकार क़िताब।।

क़िताब पढ़कर आगें बढ़ता संसार का यें नर नार,
भरा पड़ा है ज्ञान-विज्ञान का खज़ाना अपरम्पार।
जो मन से पढ़ता है इसको खुल जातें उसके द्वार,
किस्मत खोल देती क़िताब ज्ञान का होती भंडार।।

गुल नये यह खिलाती है एवं सपने साकार करतीं,
उमंग-तरंग से जोश दिलाती जीवन में रंग भरती।
अस्वस्थ को स्वस्थ व रोगग्रस्त का ईलाज बताती,
मुश्किलों से लड़ना भी यह क़िताब हमें सिखाती।।

चाहें धनवान चाहें निर्धन सबको समान समझती,
जो इससे दिल लगाता उसे झुकनें नहीं यह देती।
क्या होती है दुख की भाषा व सुख की परिभाषा,
बेजुबान होती है क़िताब पर सबको पाठ पढ़ाती।।

पायलेट डाॅक्टर इंजीनियर सब बनतें इसे पढ़कर,
मातृभूमि की सुरक्षा करतें यें जवान सर उठाकर।
दर बदर की ठोकरें ना खाते जो होते आत्मनिर्भर,
पाते है नाम शोहरत पढ़े इसे सरस्वती समझकर।।

Written By Ganpat Lal, Posted on 18.05.2022

जिसकी जैसी भावना

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Rupendra Gour
~ रूपेन्द्र गौर

आज की पोस्ट: 11 September 2023

जिसकी जैसी भावना, करता वैसी बात।
कोई ले पलकों बिठा, कोई मारे लात।।

जिसकी जैसी भावना, वैसे करता जाप।
कोई करता पुण्य है, कोई करता पाप।।

जिसकी जैसी भावना, वैसे ही अरमान।
कोई करता दुश्मनी, कोई बने मितान।।

जिसकी जैसी भावना, वैसा आता पेश।
कोई भरता घाव को, कोई देता ठेस।।

जिसकी जैसी भावना, वैसा चढ़े बुखार।
कोइ डुबाए कश्तियां, कोइ लगाए पार।।

जिसकी जैसी भावना, वैसा रखे विचार।
कोई बनता शेर है, कोई बने सियार।।

जिसकी जैसी भावना, वैसा करे विकास।
कोइ रखे माॅं बाप को, कोई बृद्ध निवास।।

जिसकी जैसी भावना, वैसे ही संबंध।
कोई खुशबू छोड़ता, कोई दे दुर्गंध।।

जिसकी जैसी भावना, वो वैसा गंभीर।
कोइ करे चमचागिरी, कोई रखे जमीर।।

Written By Rupendra Gour, Posted on 21.05.2022

नदी-नाला-नार देखिए
कूड़े का अंबार देखिए

कूड़े में कीड़ो-सा बझा
खंडहर परिवार देखिए

भूखे-प्यासे पेट के मारे
बच्चे को लाचार देखिए

कस्बा-कस्बा गली गली
गज्जर है सरकार देखिए

बज-बज बिजबिजाते हुए
गड़हे बद-बू-दार देखिए

भारत की तस्वीर असल
सच्चाई का सार देखिए

प्रकृति के प्रतिकूल नरेन्द्र
इंसा का व्यवहार देखिए

Written By Narendra Sonkar, Posted on 11.09.2023

प्रेम डगर पर चलते प्रेमी, आगाज़ को अंजाम कर देते हैं।
आज-कल, हर पल व पूरी ज़िंदगी उनके नाम कर देते हैं।
जिन्हें मिले साथी का साथ, वो कायम मुकाम कर लेते हैं।
शेष व्यर्थ ही झुंझलाकर, प्रेम-तप को बदनाम कर देते हैं।

वनवास में जीवित प्रीत की आस, सीता-राम कर लेते हैं।
अठखेलियों में अटूट प्रेम प्रतिज्ञा, राधा-श्याम कर लेते हैं।
आंसू तो होते हैं मोती, ये महंगा इश्क़ का दाम कर लेते हैं।
न रहे अंसुवन दूर हो उलझन, प्रेमी ऐसा काम कर लेते हैं।

स्वयं की हस्ती को ज़माने में, कुछ यूं गुमनाम कर लेते हैं।
कुछ प्रेमी अपने प्यार का इज़हार, यूं सरेआम कर लेते हैं।
नित हिलते-डुलते ज्वार भाटे को, कुछ लगाम कर लेते हैं।
कुछ तो व्यूह में फंसकर, ख़त्म ज़िंदगी तमाम कर लेते हैं।

हम अपनी जन्मभूमि को, कभी सादर प्रणाम कर देते हैं।
दिखाते हुए देश प्रेम, झंडे को झुककर सलाम कर देते हैं।
कभी याद में शहीदों की हम न्योंछावार पैग़ाम कर देते हैं।
सैन्य शहादत के सदके, हम कलम के कलाम कर देते हैं।

Written By Himanshu Badoni, Posted on 11.09.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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