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Tuesday, 05 September 2023

  1. संवदिया सावन
  2. उधार की रियायत
  3. जिसकी जैसी आस्था
  4. अलविदा चैन्नई
  5. समय के खेल में
  6. यह जिंदगी भी न

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माह साकने के आते ही,

बढ़ जाती है सबकी चिन्ता,

जिस बहना को न भाई अपना,

जिस भाई को न बहना अपना।

उनके मन आता हरदम,

सावन में होता है झूलन।

साथ ही भाई-बहन का रक्षाबंधन।

रक्षाबंधन के नाम को सुनकर,

नैन अश्रु से भर जाता है।

और मन ही मन गुदगुदाने लगता,

कब जाएगा?

त्यौहारों का संवदिया सावन,

साथ रक्षाबन्धन को लेकर।

पवित्र त्योहारों में से एक है,

भाई-बहन का ये प्यारा बन्धन।

फिर भी ये बन्धन नहीं भाता उनको,

जिस भाई को ना बहना अपना,

चाँदी सोने का ना होकर,

और-

जिस बहना को ना भाई अपना।

उनका मन सदा-सर्वदा कहते रहता,

ईश्वर तो कितने निर्दयी हुए।

मुझको ना दिए कोई बहना अपना।

ना ही आभागिन को कोई भाई अपना।।

हाथ में संजाने सजवाने गहना,

वह गहना तो

होता कच्चे धागों का है।

नहीं चाहिए हमको,

यह उच्चेधागों का त्योहार।

यह सदा ही कहते रहता,

जिस बहन को ना भाई अपना।

और-

जिस भाई को ना बहन अपना।।

उसका मन सदा ही कहते रहता।

क्यों आते तू संवदिया सावन,

वर्षों से रूलाने हमको।

विनती हमेशा करते रहता,

मत आ संवदिया सावन,

संग रक्षाबंधन को लेकर।

संवदिया सावन कह जाता उनसे,

जिनको नहीं है कोई बहना।

और जिनको नहीं है भाई अपना।

हम तो आते खुशियों का संदेशा देने,

ना कि तुझे रुलाने।

बस, तुझको नहीं है भाई तो क्या,

तो समझ ले औरों को ही भाई अपना।

तुझको नहीं है बहना तो क्या?

औरों को ही समझ ले बहना अपना।

अब दे आज्ञा अभागिन बहना,

और दे अभागा भाई।

जा रे निर्मोही संवदिया सावन,

अब कभी मत आना तू।

यही तो इच्छा रखते सदा ही,

जिस भाई को ना बहना अपना,

और-

जिस बहना को ना भाई अपना।

Written By Subhash Kumar Kushwaha, Posted on 16.06.2022

उधार की रियायत

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Lalan Singh
~ ललन प्रसाद सिंह

आज की पोस्ट: 05 September 2023

सेठ उसे देखते ही बिक्री काउन्टर को एक पुराने कपड़े से पोंछते हुए, सामने की पड़ी बेंच की और इशारा कर,अपने मुसकुराते चेहरे से बोल पड़ा, 

  “आइए साब! पधारिए साब! क्या सेवा करूँ?” 

  “बस कुछ नहीं, केवल छत्तीस नंबर का एक बानियान और एक पहनने लायक हल्के दाम का तौलिया चाहिए।”

 “अभी दिखलाया!” कहकर सेठ फटाफट उसकी सेवा में लग गया। उसने अपनी पसंद की एक बनियान और तौलिया का कीमत क्रमशः एक सौ पांच और नब्बे रुपये चुकाया और चला गया। 

  एक चिरस्थायी, उधार खाता वाले ग्राहक को आता देख, सेठ ने पुनः एक बदले हुए अभिवादन में उसका स्वागत किया। उसे भी बनियान खरीदनी थी। सेठ जी ने दिखाना शुरू किया। 

  “इसका प्राइस बताओ सेठ जी?” 

  “यही लगभग एक सौ पचपन रुपये।”

  “अरे, ये पचास-पचपन क्या लगा रखा है,एक सौ पच्चीस रख लो ?”

  “बाप रे! इतना मार्जिन कहाँ आता है इस होजियरी के सामानों में हुजूर!पांच परसेंट के फिक्सड कमीशन पर ही यह धंधा टीका है”। 

  “अरे छोड़ो भाई, फिक्सड कमीशन की बात! बेचने वाले भाव की बात करो, आखिर परमानेन्ट ग्राहक होने के नाते कुछ मेरा भी तो रियायत का हक है?”

  “भला मैंने कब कही रियायत न देने की बात! जहाँ तक मेरी गुंजाइश है उससे एक नया भी ज्यादा लेने की बात मैंने आप से कभी की है? अरे, नफे के लिए सारा संसार पड़ा है, आपसे ही नफा लेने की कसम थोड़े खाई है मैंने! -------------छोड़िए दस प्रतिशत बाद(घटाना)करके बीस रुपये कम लगा देते हैं। -------कितने पीस (नग) दूँ?”

  उसके चेहरे पर रियायत ले लेने के भाव प्रगट होते हैं और वह स्वीकारोक्ति में सेठ को केवल ‘एक’ बनियान पैक करने की बात कहकर अपने उधार खाते वाली डायरी मँगवाता है। 

डायरी में एक सौ पांच रुपये के बजाय एक सौ पैंतीस अंकित करते हुए उसे उसकी हार में भी जीत की अनुभूति हो रही थी। और वह दुकान से प्रसन्नचीत एक कृत्रिम मुस्कान लिए, दुकान से गंजी लेकर शहर की भीड़ मे समा गया। 

Written By Lalan Singh, Posted on 05.06.2022

जिसकी जैसी आस्था

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Rupendra Gour
~ रूपेन्द्र गौर

आज की पोस्ट: 05 September 2023

जिसकी जैसी आस्था, वैसे ही व्यवहार।
कोई रक्खे मधुरता, कोई रखे कटार।।

जिसकी जैसी आस्था, वैसे बोले बोल।
कोई समझाए सहज, कोई गोलम गोल।।

जिसकी जैसी आस्था, वैसी रक्खे सोच।
कोई बोले सोचकर, कोई मारे चोंच।।

जिसकी जैसी आस्था, वैसा दे सम्मान।
कोई माने जानवर, कोई कहे इंसान।।

जिसकी जैसी आस्था, वैसी चले जुबान।
कोई कहता भीख तो, कोई कहता दान।।

जिसकी जैसी आस्था, उनके वैसे काम।
कहीं पुजे रावण बहुत, कहीं पूजें श्रीराम।।

जिसकी जैसी आस्था, वैसे मन के भाव।
कहीं लगाए लेप तो, कहीं बनाए घाव।।

जिसकी जैसी आस्था, जिसका जितना ज्ञान।
कोई देवे गालियाॅं, कोई करे बखान।।

जिसकी जैसी आस्था, वैसी दे सौगात।
कहीं करे दिल से मदद, कहीं कुठाराघात।।

Written By Rupendra Gour, Posted on 21.05.2022

अलविदा चैन्नई

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Ganpat Lal
~ गणपत लाल उदय

आज की पोस्ट: 05 September 2023

हम आज तक थें  महानगर चैन्नई, 
आज अलविदा हम कहते है भाई।
मिले सबकी शुभ कामनाएँ बधाई,
चलते है अन्ना अब कर दो विदाई।।

मुस्कराते  रहना चाहें  कैसा भी  हो पल,
खुशियाँ लेकर आऐ  आने वाला ये कल।
जीवन के इस सफर में स्नेह  मिलता रहें,
प्रेम भाव से सभी अपना काम करते रहें।। 
 
उलझी पड़ी है हमारी जिंदगी ऐसे,
इन रेलगाड़ी की पटरियो की जेसे। 
रास्ते बहुत देखे आने और जाने के, 
समझ नहीं पा रहें कहा जाऐ कैसे।। 

समय कभी किसी का भी बुरा नही होता, 
वही क्षण, समय हमें बहुत कुछ सिखाता। 
सिखलाई में कभी भी निराशा नही लाना,
चिंता इतनी ही करना कि काम हो जाना।।

आपका प्यार और  रहें आशीर्वाद, 
सभी साथियों का करता धन्यवाद।
मिलेंगे फिर जल्द मिलाऐगा ईश्वर, 
देखना कभी यू टयूब और ट्वीटर।। 

Written By Ganpat Lal, Posted on 17.05.2022

समय के खेल में

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Mulla Adam Ali
~ डॉ. मुल्ला आदम अली

आज की पोस्ट: 05 September 2023

समय के खेल में
कब हम उलझते चले जाते है।
हमें ये ज्ञात भी नहीं होता है,
और वो आगे कि ओर
बस बढ़ते चला जाता है।
हम उसके साथ चले तो ठीक है
वरना वो अपनी रफ्तार में चलते
चला जाता है।
वो जानता है बखूबी अकेले चलना
इसलिए अपने धुन में वो
मदमस्त सा रहता हैं।
वो जानता है अपनी कीमत
इसलिए खुद को क़ीमती समझता है।
जानता है लोगों को है,
उसकी जरूरत होती ही रहती
इसलिए इत्मिनान से वो बेधड़क
आगे की ओर
बस बढ़ता चला जाता हैं।
ना किसी के साथ की अरमान लगाए
बस अपने ही धुन में
मस्तमौला बनकर फिरते चला जाता हैं।

Written By Mulla Adam Ali, Posted on 05.09.2023

यह जिंदगी भी न

SWARACHIT6097

Hareram Singh
~ डॉ. हरेराम सिंह

आज की पोस्ट: 05 September 2023

कुछ खुश हुए
कुछ नाराज़ हुए
कुछ चुप हुए
कुछ आवाज दिए
कुछ छोड़ चले
कुछ साथ चले
कुछ बदनाम किए
कुछ पहचान दिए

कुछ गिराने में लगे
कुछ उठाने में लगे
कुछ बिठाने में लगे
कुछ पहचानने में लगे
कुछ हँसाने में लगे
कुछ रुलाने में लगे
कुछ वसाने में लगे
कुछ उजाड़ने में लगे

यह जिंदगी भोली कभी
यह जिंदगी डोली कभी
यह जिंदगी रेतीली कभी
यह जिंदगी पतीली कभी
यह जिंदगी हठीली कभी
यह जिंदगी रपटीली कभी
यह जिंदगी पीली कभी
यह जिंदगी खिली कभी

Written By Hareram Singh, Posted on 05.09.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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