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Friday, 01 September 2023

  1. कैसे रंग उड़ा तस्वीरों का
  2. जरूरी था सनम
  3. क्या है, चाय
  4. दर्द-ए-उल्फ़त की कहानी हो गयी 
  5. मेरी माँ
  6. मेरी पहली मुलाकात

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यादों से बांधा एक सिरा ज़न्जीरों का
जाने कैसे रंग उड़ा तस्वीरों का

नक्श इबारत ख़ूब लिखी थी चेहरे पर
जाने कैसे ख़ून हुआ तहरीरों का

जो महबूब निगाहों को, मन्ज़ूर नहीं 
खेल तमाशा ख़ूब है ये तकदीरों का

इश्क़ में हारे जीत उसी की होती है
इस में अक़्सर काम नहीं शमशीरों का

शाह मोहब्बत काम हुआ बदमाशों का
आग लगाना‌‌ काम हुआ दिलगीरों का

Written By Shahab Uddin, Posted on 26.08.2023

जरूरी था सनम

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Seema Ranga
~ सीमा रंगा इन्द्रा

आज की पोस्ट: 01 September 2023

तुमसे मेरा मिलन,आंखों से आंखें मिलना 

 तुम्हें ही देख जानना,जरूरी था सनम।

 

अंखियों में यू झांकना,चाहतों का यूं मिलना

मोहब्बत में खिलना,जरूरी था सनम।

 

 मिल खिलना तुमसे,आहें भरना मुझसे

 प्रेम करना मुझे से,जरूरी था सनम 

 

सबका यूं साथ देना, खुशी के फूल खिलना

 संग में मिल निभाना,जरूरी था सनम।

 

अश्रु की धार रोकना,विदाई ना होने देना

उम्र भर साथ देना,जरूरी था सनम।

Written By Seema Ranga, Posted on 21.08.2023

क्या है, चाय

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Kailash Chandra Salvi
~ कैलाश चंद्र सालवी

आज की पोस्ट: 01 September 2023

क्या है, चाय।
तेज़ ठंड में में लबों पर ठहरी हल्की गर्माहट है चाय।
बरसती बारिश में मन की इच्छा है चाय।
सर्दी हो या गर्मी या फिर वर्षा,हर दिन की शाम है, चाय।
ऑफिस हो या घर हर तनाव का इलाज है, चाय।

आज़ स्कूल में एक छात्र ने चाय का कप देते वक्त
कहा क्यों पीते है,इतनी चाय।
मैंने कहा जब लोग मेरे हारने का पैगाम दे रहे थे,
तब जुनून की लाठी थी, चाय।
डॉक्टर हो या दुकानदार या फिर मजदूर
बिना पिए नही रहता है, चाय।
हमारे मेवाड़ में वैवाहिक सम्बन्धों की प्रगाढ़ पहचान है, चाय।

चाय है, तो सारे काम अपने है,
चाय है, तो सारे रिश्ते अपनें है।
चाय के बिन सारे सम्बन्ध फीके है।
चाय है, तो दिमाग की बत्ती है।
बिन चाय के आंखो नींद और उबासी है।

सच कहूं तो अगर कोई हमारे किये काम से खुश हो,
हमारी प्रबल इच्छा पूछे खुशी से पूरी करने की,
तो कसम से हम एक कप चाय मांगेगे।
हमारी सफलता की पहली सीढ़ी है, चाय।
हमारे दिमाग की ताज़ग है चाय।

Written By Kailash Chandra Salvi, Posted on 26.08.2023

 

दर्द-ए-उल्फ़त की कहानी हो गयी 
उम्रभर को इक निशानी हो गयी

ज़िन्दगी कितनी सुहानी हो गयी
दिल पे उनकी हुक्मरानी हो गयी 

बात उनसे कुछ रुमानी हो गयी
लाज से वो पानी-पानी हो गयी 

दफ़अतन देखा उन्हे जो सामने
दिल में अपने शादमानी हो गयी 

उनसे क्या बिछड़े कि मेरी आँख फिर
आंसुओं की राजधानी हो गयी 

रफ़्ता-रफ़्ता वक़्त गुज़रा है मगर
टीस थी छोटी  सयानी हो गयी 

अब किसी को भी यक़ीं आया नहीं
बात वो इतनी पुरानी हो गयी 

रौशनी भी तीरगी का क़त्ल कर 
सबके दिल की राजरानी हो गयी

बात भी `आनन्द` करता अब नहीं
उसकी हस्ती जानी-मानी हो गयी

 

Written By Anand Kishore, Posted on 05.06.2021

मेरी माँ

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Anup Kumar
~ अनुप कुमार

आज की पोस्ट: 01 September 2023

मेरी प्यारी प्यारी माँ,
मेरा तू संसार है।
मेरी दुनिया तेरी चरणों में,
तू ही मेरा प्यार है।।

सुबह-शाम हर पल, एक पल,
मेरा ख्याल तू रखती माँ।
मेरी जिद, मेरे नखड़े को,
प्यार से हल कर देती माँ।

तेरे आंचल में छुपने पर,
भय छू मंतर हो जाता है।
ममता की बदरी सा मुझको,
यही सच्चा घर लगता है।

तेरे दुलार से मम्मी मैं तो,
जैसे राजा बन जाता हूँ।
सदा रहूं तेरे कदमों में,
मैं यही प्रार्थना करता हूं।।

Written By Anup Kumar, Posted on 01.09.2023

मेरी पहली मुलाकात

SWARACHIT6090

Avneesh Kumar
~ अवनीश कुमार

आज की पोस्ट: 01 September 2023

सुनो,
तुम्हें कुछ अलग बताता हूं,
छिपा हुआ एक हाल सुनाता हूं,
अपने हिस्से का एक किस्सा कहता हूं,
प्रथम मिलन का उससे वाकया कहता हूं,
बचपन से एक आदत बड़ी बुरी थी,
जिसका स्वाद जीभ पर था, बस वो पानी पुरी थी,
एक सांझ जब जीभ में हुई चटखार,
फटी हुई निक्कर में रुपिया लिए दुई चार,
धीरे से जा पहुंचा उस बतासे वाले के पास,
मन में थी बस कुछ बतासे खाने की आस,
एक बतासा हाथ लिया,
दूजा मुंह के अंदर,
इतने में एक मध्यम मधुरिम
आवाज मेरे कर्ण द्वार से अंदर,
भईया, दस के बतासे मुझे खिलाना,
जिसमें तीखा खट्टा खूब मिलाना,
इतना सुनकर,
मेरे हाथ से बतासा छूटा,
जो मुख में था, वो बेबस फूटा,
बतासा अंदर, पानी बाहर,
अंतर्मन में हाहाकार,
कुछ रुककर,
खुद को ठीक संभाला,
मेरे सम्मुख,
हाय,ये मुखड़ा इतना भोला-भाला,
मेरी नजरें उस पर टिकी पड़ी थीं,
पर वो तो बेसुध सी अड़ी खड़ी थी,
मैं उसको बरबस निहार रहा था,
प्रथम बार किसीको इतना ताड़ रहा था,
खत्म हुआ सिलसिला बतासे खाने का,
शायद उसका भी मन था अब घर जाने का,
इधर बतासे वाला एक खेल, खेल गया,
उसने बोला, मैं खड़े-खड़े बीस के पेल गया,
थोड़ा झिझक कर,
उसके हाथ रुपिया रखे दूई चार,
शर्मा कर थोड़ा, बोला उससे,
बाकी कर ले यार उधार,
हाथ देख ये रेजगारी,
उसने मेरे मुंह पर मारी,
कोई सिक्का आंख लगा,
कोई नाक लगा था,
इतने में शायद,
किसी के अंदर कोई इंसान जगा था,
फिर से सुनी मैंने प्यार भरी वो बोली,
शरम-बरम सब छोड़ फिर मैंने आंखें खोली,
सुनो,
तुम्हारे हिस्से का बचा हुआ मैं चुकाती हूं,
इसके बाद मैं फिर अपने घर जाती हूं,
और हां,
ये कोई कर रही अहसान नहीं हूं,
इतनी भी कोई मैं महान नहीं हूं,
मेरा एक नंबर ये अपने दिमाग में लिख लेना,
घर जाते ही मेरा ऑनलाइन पेमेंट अभी कर देना,
ऑनलाइन ये फॉनलाइन का मुझको ज्ञान नहीं था,
मैं जड़त्व था, उसने क्या किया,
मुझे बिल्कुल भान नहीं था,
आज पहली बार कोई इतना डांट रहा थी,
मानो कोई स्वर्ग अप्सरा अपना प्यार बांट रही थी,
इस प्रकार, पहली मुलाकात में नंबर मिल गया था,
नंबर की क्या बात कहें, बस उससे दिल मिल गया था!!

Written By Avneesh Kumar, Posted on 01.09.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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