प्रेम और विश्वास का प्रतीक,
स्नेह और दुलार बड़ा ही नीक,
अदभुत अनोखा अटूट बंधन,
मस्तक पर धारित तिल चंदन,
जैसे आकाश और गगन,
वैसे भाई और बहन,
जैसे धूप और छाया,
वैसे अदृश्य प्रेम की माया,
सारे जग में सबसे सच्चा,
धागा जिसमें सबसे कच्चा,
पर कच्चा है कमजोर नहीं,
और टूट जाए वो डोर नहीं,
रक्षा के सूत्र से जिसे पिरोया,
पवन धागों में जिसे संजोया,
रक्षा का संकल्प है जिसमें,
तोड़ दे वो दम है किसमें,
सावन का अनुपम त्योहार,
होता भाई बहन का प्यार,
हर भाई का आज है कहना,
खुश रहना वो मेरी बहना,
संकल्प आज दुहराते है,
तुझे सशक्त सबल बनाएंगे,
फौलाद जैसे जीवट बनाएंगे,
ताकि पकड़ न सके कोई तेरा हाथ,
ऐसे दूंगा सदा ही तेरा साथ,
मगर विपरीत परिस्थितियों में,
जब अपनी रक्षा तू खुद करेगी,
धारा तुझपे नाज करेगी,
संकल्प पूरा होगा हमारा,
देखेगा संसार ये सारा,
बहन का आशीष भाई का प्यार,
ऐसा अनुपम है यह त्योहार,
रक्षा का जिसमें गहरा बंधन,
कहलाता है वो रक्षाबंधन।।
श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को,
आता रक्षाबंधन का त्यौहार।
राखी बांध भाइयों को बहिनें,
पाती खुशियों का उपहार।...
सजे रंग-बिरंगी राखियों से,
छोटे-बड़े सभी हाट बाजार।
फ़ैला गली-मौहल्ले घर बाहर,
नन्हें-मुन्नों में अद्भुत हर्ष अपार।
हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक,
एकता संग खुशियों का आधार।
श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को,
आता रक्षाबंधन का त्यौहार।...
थाल सजा कुमकुम अक्षत रोली से,
हर्षित चित्त बहना गाती मंगलाचार।
लगा भाल तिलक रक्षासूत्र बांधती,
होता सकारात्मक ऊर्जा का संचार।
पावन पवित्र शुभ संकल्प उत्सव का,
रहता वर्षपर्यन्त भाईयों को इंतजार।
श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को,
आता रक्षाबंधन का त्यौहार।
एक-दूजे के हम नक्श हम,
देख-देख धरा इठलाती है ।।
जब भी जाती हो छोड़ तन्हा,
बहना याद तुम्हारी आती है ।।
छोटी-छोटी बातों पर पल-पल
जाती हो हमसे तुम नाराज़ ।।
मना ही लेतें है कर विनय हम
गढ़कर कोई मनगढ़ंत राज ।।
आता जब राखी का त्यौहार
भर देती कलाई राखियों से ।।
आशीषों के थाल सजाकर
देती भर ह्रदय पाखियों से ।।
फले-फूले आंगना भैय्या का
आये न तिलभर कोई कमी ।।
सह न पाती संताप अनुज के
देख नयनों में विपदा की नमी ।।
बहिन के रिश्ते से अमूल्य
नही जग में रिश्ता कोई औऱ ।।
जिस घर जन्म बहना का हुआ
आती सम्रद्धि की नूतन भौर ।।
बहिनों के त्याग,समर्पण से ही
सृष्टि पर भाई आबाद हुए !!
एक नही दो-दो कुलों के
स्वर्ण महल शादाब हुए ।।
तोड़ना न दिल बहिन का
देती है आशीषों की छांव।।
उस घर रहती खुशयाली
जिस घर पड़े पावन पाँव।
भाई -बहिन के बंधन से
बढ़कर न कोई बंधन है ।।
खुलें है द्वार सभी घर के
``बहना`` आना अभिनंदन है ।।
आज रक्षाबंधन का त्योंहार है
बहन को भाई का भाई को बहन का इंतज़ार है
जगमग करती दीप, कुमकुम, और मिठाई से
भरी बहन की थाली भी तैयार है।
आज रक्षाबंधन का त्योंहार है।
बस एक दिन का ये त्योंहार
ताज़ा कर देती वर्षो की यादें
बचपन की वो अल्हड़पन
हर वक़्त है जिसकी याद सताते
बांध एक राखी बहन भाई की कलाई में
जन्मों की सौप देती बहन
जिम्मेदारी रक्षा की भाई को।
स्नेह की मूरत बहन को भाई का इंतज़ार है
जग में बहन सा शुभचिंतक कहाँ
उल्लास भरे भाई बहन के मन को अब सब्र कहाँ
पहनायें बिना राखी भाई को
कलाई सुनी देख भाई की
आँखे भर आती उनकी
बांधे बिना राखी भाई को
बहन को अब चैन कहाँ।
ऐसे बेफिक्र रहती बहन जब भाई साथ हो
जैसे बेफिक्र रहता नन्हा सा वो बच्चा
जब माँ बाप उनके साथ हो
भाई बहन का ये अटूट प्रेम सा
प्रेम हुआ ना दूजा कहीं
डुमर इस अनमोल धागा (राखी) का मोल
बस भाई बहन ही समझे यहाँ।
ना मांगू मैं उपहार, ना मांगू में धन,
मैं तो मांगू भैया बस इतनी वचन,
मेरी राखी की लाज रखना जन्म -जन्म
मैं जब भी बुलाऊं,तुम आ जाना,
हर संकट में भैया, मुझको बचाना,
मेरी राखी मांगे बस इतनी वचन
ना मांगू सोना चांदी, ना मांगू उपहार,
ये मिल जाते हैं भैया बीच बाजार,
जो बाजार में न मिले देना ओ प्रेम रतन
आ तिलक लगा दूं,तेरे माथ में,
आ रक्षासूत्र बांधू तेरे हाथ में,
आरती उतारके करूं तेरा अभिनंदन
Written By Bharatlal Gautam, Posted on 29.08.2023आया त्यौहार
छाई खुशी अपार
ये व्यवहार
...
आया त्यौहार
सज रहे है व्दार
करो व्यापार
...
आया त्यौहार
मन नाचे है मोर
ये चितचोर।।
Written By Manoj Bathre , Posted on 29.08.2023छम छम बरस रही है,
यादों की बदरी।
इस बार भी रक्षा बंधन मे।।
धुला धुला सा है आंखों का आंगन।
इस बार भी रक्षा बंधन मे।।
सालों बीत गया,
ज़ख्म ठीक से भरा नहीं।
यादें तेरी घिर आई फिर से,
इस बार भी रक्षा बंधन मे।।
दे रहे बधाई सब,
हर बहना देख रही है रस्ता।
मेरा आंगन रह गया रीता,
इस बार भी रक्षा बंधन मे।।
बारह साल से राखी मैंने छुआ नहीं,
देख के ही भर आती है आंखें।
तू तो आता नहीं बस आती हैं तेरी यादें।।
फिर घिर आई है तेरे यादों की बदरी,
मेरे मन के आंगन मे।
बरस बरस के थकी नहीं,
इस बार भी रक्षा बंधन मे।।
धुला धुला सा है आंखों का आंगन,
इस बार भी रक्षा बंधन मे।।
इस बार भी रक्षा बंधन मे।।
राखी साल में एक बार आती है,
आपसी गिले शिकवे सारे मिटाती है,
बहन भाई को प्यार से गले लगाती है,
भाई बहन के प्यार को कैसे,
कच्चे धागों की पक्की डोर को बाजुओं पर पहनाती है।
अक्सर बहने शादी के बाद पराई सी हो जाती हैं,
अपने घर संसार में ही खोई रेहतीं है,
लेकिन आता है जब राखी का प्यारा सा त्योहार,
तो जरूर अपने भाई के घर राखी बांधने दौड़ी चली आती हैं।
अपने भाई से मिलकर बहुत प्यार जतातीं हैं,
हो कोई गर गिला शिकवा तो
उसको भी मिठाई खिला कर दूर कर जातीं हैं,
भाई भी इस दिन बहन को प्यारे से उपहार देते हैं,
घर में आई बहना को खूब पकवान खिलाते हैं,
ऐसे हर साल भाई बहन राखी का त्योहार मनाते है।
जब बहन भाई की कलाई पर प्यारी सी राखी की डोर बांधती है,
भाई भी हर हाल में उसकी रक्षा करने की कसम खाते हैं,
भाई बहन दोनों एक दूजे की रक्षा कसम को निभाते हैं,
हर वर्ष फिर से ये प्यारा सा भाई बहन का त्योहार मनाते हैं।
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