जो सोचा था, वह हुआ नहीं
जो सोचा नही था, वह हो रहा है
बहुत कुछ पा लिया है,
पर ``कुछ`` खो- सा रहा है
जीवन अजीब सी दोराहे पर आ खड़ी है
न जाने यह कैसी घड़ी है जो,
ख़त्म ही नहीं होता है
आँखें तो सो जाती हैं पर!
अवचेतन मेरा नहीं सोता है
मन में कुछ सपने अधूरे हैं
जो करने मुझे अभी पुरे है
दिल और दिमाग में एक द्वन्द चल रहा है
जिसमें समय अनवरत निकल रहा है
यह अधूरा लक्ष्य मुझे सताए जा रहा है
समय व्यर्थ करने की ग्लानि को बढ़ाये जा रहा है
पर क्या करूँ अब कुछ समझ नहीं आता
कोई दूसरा विकल्प मुझे नजर नहीं आता
मेरा लक्ष्य मेरे सामने खड़ा है
लेकिन उस राह में अवरोध आ पड़ा हैं
मुझे उस अवरोध को हटाना होगा
अपने आप को पुनः जगाना होगा
यह अवरोध शायद मेरा मन ही है
जो अपने लक्ष्य को भूल
अनंत दिशाओं में सोचता जाता
सोचती हूँ अब कुछ सोचूँगी नहीं
क्यूंकि होता वही है जो
कभी सोचा नहीं गया होता
Written By Rashmi Pandey, Posted on 22.08.2023वन्देमातरम् बोलो, मिलकर,भारत माँ की जय जयकार।
चढ़कर दुश्मन के सीने में,मारो खींच खींच तलवार।।
शान्ति चाहते रहे सदा हम,ए करते रहते व्यभिचार।
भारत माँ के वीर सपूतों,घुस कर मारो सरहद पार।।
बहुत सहा है हमने अब तक,अब न सहेंगे अत्याचार।
भूल गए तुम बरस इखत्तर, भूले हो वीरों की मार।।
दौड़ा दौड़ा सीने पर चढ़,करते हैं हम प्रबल प्रहार।
भारत माँ के वीर सपूतों,घुस कर मारो सरहद पार।।
कह बजरंगी लाल सदा ही, मेंरे ऐसे रहे विचार।
इन पापी दुष्टों नीचों को,मारो बरछी और कटार।।
शान्ति कभी मत माँगो इनसे,ए आतंकी हैं गद्दार।
भारत माँ के वीर सपूतों घुस कर मारो सरहद पार।।
जिस तरह धरती पर
तपती धूप के बाद
ठंडक लिए बरसात आती है
उसी तरह
हमारी जिंदगी में भी
उतार चढ़ाव के साथ
अनेक तरह के
कष्ट और परेशानियों का दौर
आता जाता रहता है
पर इससे हमें
घबराना नहीं चाहिए
बल्कि उनका
दृढ़ संकल्प के साथ
मुकाबला करने का प्रयास
सुनिश्चित करें ताकि हम
उन पर विजय पा सकें।।
Written By Manoj Bathre , Posted on 03.06.2021
ख़ुश्बू कोई भी आए तो लगता है कि तुम हो
बेवक़्त घटा छाए तो लगता है कि तुम हो
सपना कोई उलझाए तो लगता है कि तुम हो
नींदों से जगा जाए तो लगता है कि तुम हो
जलता है दिया कोई वहाँ पार नदी के
परछाई सी लहराए तो लगता है कि तुम हो
तुमने तो मुझे जान का दुश्मन भी कहा है
दुश्मन जो नज़र आए तो लगता है कि तुम हो
फूलों को कभी गीत कोई गा के सुनाकर
भौंरा कोई भरमाए तो लगता है कि तुम हो
बाग़ों में कभी घूमते ख़ामोश रहे हैं
पत्ता भी ख़ड़क जाए तो लगता है कि तुम हो
`आनन्द` सिवा आपके कोई न यहाँ है
बेमोल बिका जाए तो लगता है कि तुम हो
Written By Anand Kishore, Posted on 04.06.2021
सुनो! दिकु,
अनोखे से झुमके तुम्हारे
पल पल याद आते है
आज भी उनकी झणकार का
मेरे कानों में एहसास कराते है
जब चूमना चाहता हूँ उन को स्वप्न में
ना जाने ये कहाँ भाग जाते है
कभी कभी तो बाज़ार में जब उनका रूप देखता हूँ
तब यह बदमाश मुजे बड़ा रुलाते है
मुजे चुप कराने के लिए ये
तुम्हारी हंसी को मेरे ख्यालों में ले आते है
अपनी अदाओं की चमक से
ये फिर से मुजे मनाते है
अनोखे से झुमके तुम्हारे
मुजे हरपल याद आते है
शतक लगे जिस वर्ष हमारा
देश की आजादी का
हो हर उस कारण से देश आजाद
जो कारण है देश की बर्बादी का।
है अशिक्षा वो पहला कारण
जिससे दूर अभी है बहुजन
आवादी का बढ़ता स्वरूप भी
है चिंता का कारण।
रोजगार ना होना युवा वर्ग को
मन अशांत करता है
आतंक और अलगाव के राह पर
फिर ये आगे बढ़ता है।
नेताओं की स्वार्थपरक
राजनीति भी है एक कारण
मुफ्त रेवड़ियों के वादे पर
हो रहा चारित्रिक अवमूल्यन।
जात-पात में बंटा समाज
धर्मांधता में क्यूँ लड़ता है
ऐसे कुछ कारण से ही
नही देश आगे बढ़ता है।
प्रदूषण भी है बड़ी चुनौती
पार पाना ही होगा
वैकल्पिक ईंधन व्यवस्था पर
कसकर जोर लगाना होगा।
मिले अगर आजादी इनसे
स्वतंत्रता का अर्थ निखरेगा
विश्व के मानचित्र पर भारत
सूरज के भाँती दमकेगा।
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