गिर रही है न
ये जो आसमा से तड़फती बूंदे
कभी तुम इनसे
मज़ा लेते हो
तो कभी ये डुबकर
तुम्हारे अस्तित्व को मज़ा लेती है।
बह रही है न ये नदियाँ
कभी खुद बहती है
अपनी ही मस्ती में
तो कभी तूफ़ान बन
तुम को बहा
ले जाती है समुंदर में।
बर्फ से ढके है न
जो ये पर्वत
कभी तुम इनका
आरोहण करते हो
तो कभी ये दबा देते हैं
तुम्हारी जिद्दी शख्सियत को।
मैं हूं हिमाचल
देखे मैंने फटते बादल
क्रोध में उबलते नालों में
जब जाग गई नदियां।
काटती गई जमीं–जंगल.
बहते पेड़ों संग
दरकते पहाड़, फटती सड़कें,
ढहती इमारतें होती चनाचूर,
दबे–कुचले–कटे–फटे,
जिंदा–मुर्दा जिंदगियां
मानवीय प्रयासों से
तब मलबे से झांकती हैं बाहर.
रोते बिलखते परिजन।
पानी–बिजली–इंटरनेट–अवरुद्ध यातायात
तब मानो थम सी गई जिंदगियां.
विकास को विनाश में बदलते
देर नहीं लगती.
कि तभी.
द्रुत गति से शासन–प्रशासन–जनता भी
संग–संग कदमताल है करती
जरूरत को जरूरतमंद से मिलाती
मानो जिन्दगी पटरी अब पटरी पर आ जायेगी.
पर बीच आपदा में जनमानस की
अक्कड़–बक्कड़ भी समझाती है
अभी विकास करना है.
पर्यावरण–संतुलन भी जरूरी है
मैं हूं हिमाचल
प्रकृति की गोद में बैठा
है ये प्रकोप प्रकृति का?
किसे दोषी मानते हो इन्सान ?..
त्राहि माम–त्राहि माम हे प्रकृति माई
हैं शरणागत तेरे
अब रक्षा करो.
Written By Rakesh Thakur, Posted on 19.08.2023चलते जाओ, बढ़ते जाओ
रुको कभी न, थको कभी न
मंजिल पर अपनी पहुंच कर दम लो,
दांए बांए, आगे पीछे
कहीं न भटको, कही न लटको
होकर के कामयाब दिखाओ
चलते जाओ, बढ़ते जाओ।
पहुंचोगे एक दिन मंजिल पर तुम
हंसने वालो को हंसने दो
जलने वालो को जलने दो
किसी के बहकावे मे न आओ
चलते जाओ, बढ़ते जाओ।
जिस दिन पहुंचोगे मंजिल पर तुम
होगी जय जयकार तुम्हारी
करते थे जो उपहास तुम्हारा
वही तुम्हारे गुण गायेंगे
करो इतनी मेहनत की एक दिन
होकर के कामयाब दिखाओ
चलते जाओ, बढ़ते जाओ।
मां बाप की आशा है तुमसे
उनका विश्वास है तुम पर
झुकने न पाए शीश उनका
एसा कुछ करके दिखलाओ
चलते जाओ, बढ़ते जाओ।
युवाओं को ये क्या हो रहा है
खड़े सड़क पर धुआं उड़ा रहे
ना लाज शर्म बरकरार रही
सरेआम हंसी के पात्र बन रहे
जो समझ रहे धुआं को शान हैं
वे तिरछी नजरों से निहारे जा रहे
जहां तुम हो खड़े जरा देखो दाएं बाएं भी
बचपन भी उन्हीं सड़कों पर घूम रहे
याद नहीं क्या नौजवानों की तड़प
जवानी की थी न्यौछावर उन्हें ही भूलते जा रहे
सोचो जरा उन माता-पिता के बारे में
जी तोड़ मेहनत कर तुम्हें पढ़ने भेज रहे
उम्मीदें लगा कर बैठे बेचारे तुम ही से
क्यों उम्मीदें उनकी धुएं में उड़ा रहे
माना आधुनिकता का चोला पहना है
पर क्यों इसे सिगरेट की चिंगारी से उड़ा रहे
सूरज बने
चंदा बने
और
बने आसमान
काम हम ऐसा करे
सबके लिए हो आसान
विश्व गुरु कहलाए हम
भारत की हो
जग में शान
सूरज बने
चंदा बने
और
बने आसमान
तपन बिना जीवन नहीं
सुख साधन करते
परेशान
आसमान से भी ऊंचा रहे
हमारे तिरंगे की शान
सूरज बने
चंदा बने
और
बने आसमान
सूरज प्रसाद मेरे
पिता श्री का नाम
जिनसे है मेरी पहचान
जिनके थे खुबसूरत अरमान
सूरज की किरणें से
मिलती है ऊर्जा
सुबह शाम
सूरज की गर्मी से
बढ जाता है
धरती का तापमान
विद्युत ऊर्जा गर न हो
तो सूर्य की सोलर ऊर्जा
आती है काम
सूरज बने
चंदा बने
और
बने आसमान
जहां ले जाना
मुश्किल हो बिजली
सूर्य देव की सोलर ऊर्जा
साबित होती है वरदान
ऐसे जहां के दाता
सूर्य देव को मेरा प्रणाम
सूरज बने
चंदा बने
और
बने आसमान
पूरब से पश्चिम तक
उत्तर से दक्षिण तक
सारे विश्व में
जो अपना फैलाए प्रकाश
ऐसे हैं हमारे सूर्य देव
नमन करता है
बाढ़ अभावों की आयी है,
डूबी गली-गली,
दम साधे हम देख रहे
काग़ज़ की नाव चली।
माँझी के हाथों में है
पतवार आँकड़ों की,
है मस्तूल उधर ही इंगिति,
जिधर धाकड़ों की,
लंगर जैसे जमे हुए हैं
नामी बाहुबली।
आँखों में उमड़े-घुमड़े हैं
चिन्ता के बादल,
कोरों पर सागर लहराया
भीगा है आँचल,
अपनेपन का दंश झेलती
क़िस्मत करमजली।
असमंजस में पड़े हुए हम
जीवित शव जैसे,
मत्स्य-न्याय के चलते साँसें
चलें भला कैसे ?
नौकायन करने वालों की
है अदला-बदली ॥
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