हिन्दी बोल India ई-पत्रिका

Thursday, 24 August 2023

  1. खुदगर्जी
  2. मैं हूं हिमाचल
  3. बढ़ते जाओ
  4. धुआं
  5. सूरज
  6. काग़ज़ की नाव

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खुदगर्जी

23SUN08818

Rajiv Dogra
~ राजीव डोगरा 'विमल'

आज की पोस्ट: 24 August 2023

गिर रही है न 
ये जो आसमा से तड़फती बूंदे 
कभी तुम इनसे 
मज़ा लेते हो
तो कभी ये डुबकर 
तुम्हारे अस्तित्व को मज़ा लेती है।

बह रही है न ये नदियाँ
कभी खुद बहती है
अपनी ही मस्ती में
तो कभी तूफ़ान बन 
तुम को बहा
ले जाती है समुंदर में।

बर्फ से ढके है न
जो ये पर्वत
कभी तुम इनका 
आरोहण  करते हो 
तो कभी ये दबा देते हैं 
तुम्हारी जिद्दी शख्सियत को।

Written By Rajiv Dogra, Posted on 18.08.2023

मैं हूं हिमाचल

23SUN08823

Rakesh Thakur
~ राकेश कुमार

आज की पोस्ट: 24 August 2023

मैं हूं हिमाचल

देखे मैंने फटते बादल

क्रोध में उबलते नालों में 

जब जाग गई नदियां।

काटती गई जमीं–जंगल.

बहते पेड़ों संग

दरकते पहाड़, फटती सड़कें,

ढहती इमारतें होती चनाचूर,

दबे–कुचले–कटे–फटे, 

जिंदा–मुर्दा जिंदगियां

मानवीय प्रयासों से

तब मलबे से झांकती हैं बाहर.

रोते बिलखते परिजन।

पानी–बिजली–इंटरनेट–अवरुद्ध यातायात 

तब मानो थम सी गई जिंदगियां.

विकास को विनाश में बदलते 

देर नहीं लगती.

कि तभी.

द्रुत गति से शासन–प्रशासन–जनता भी

संग–संग कदमताल है करती 

जरूरत को जरूरतमंद से मिलाती 

मानो जिन्दगी पटरी अब पटरी पर आ जायेगी.

पर बीच आपदा में जनमानस की

अक्कड़–बक्कड़ भी समझाती है

अभी विकास करना है.

पर्यावरण–संतुलन भी जरूरी है

 मैं हूं हिमाचल 

प्रकृति की गोद में बैठा

है ये प्रकोप प्रकृति का?

किसे दोषी मानते हो इन्सान ?..

त्राहि माम–त्राहि माम हे प्रकृति माई

हैं शरणागत तेरे

अब रक्षा करो.

Written By Rakesh Thakur, Posted on 19.08.2023

बढ़ते जाओ

23SUN08825

Ashish Mishra
~ आशीष कुमार मिश्रा

आज की पोस्ट: 24 August 2023

चलते जाओ, बढ़ते जाओ
रुको कभी न, थको कभी न
मंजिल पर अपनी पहुंच कर दम लो,
दांए बांए, आगे पीछे 
कहीं न भटको, कही न लटको
होकर के कामयाब दिखाओ
चलते जाओ, बढ़ते जाओ।

पहुंचोगे एक दिन मंजिल पर तुम
हंसने वालो को हंसने दो
जलने वालो को जलने दो
किसी के बहकावे मे न आओ
चलते जाओ, बढ़ते जाओ।

जिस दिन पहुंचोगे मंजिल पर तुम
होगी जय जयकार तुम्हारी
करते थे जो उपहास तुम्हारा
वही तुम्हारे गुण गायेंगे
करो इतनी मेहनत की एक दिन
होकर के कामयाब दिखाओ
चलते जाओ, बढ़ते जाओ।

मां बाप की आशा है तुमसे
उनका विश्वास है तुम पर 
झुकने न पाए शीश उनका 
एसा कुछ करके दिखलाओ
चलते जाओ, बढ़ते जाओ।

Written By Ashish Mishra, Posted on 20.08.2023

धुआं

23TUE08826

Seema Ranga
~ सीमा रंगा इन्द्रा

आज की पोस्ट: 24 August 2023

युवाओं को ये क्या हो रहा है
खड़े सड़क पर धुआं उड़ा रहे

ना लाज शर्म बरकरार रही
सरेआम हंसी के पात्र बन रहे

जो समझ रहे धुआं को शान हैं
वे तिरछी नजरों से निहारे जा रहे

जहां तुम हो खड़े जरा देखो दाएं बाएं भी
बचपन भी उन्हीं सड़कों पर घूम रहे

याद नहीं क्या नौजवानों की तड़प
जवानी की थी न्यौछावर उन्हें ही भूलते जा रहे

सोचो जरा उन माता-पिता के बारे में
जी तोड़ मेहनत कर तुम्हें पढ़ने भेज रहे

उम्मीदें लगा कर बैठे बेचारे तुम ही से
क्यों उम्मीदें उनकी धुएं में उड़ा रहे

माना आधुनिकता का चोला पहना है
पर क्यों इसे सिगरेट की चिंगारी से उड़ा रहे

Written By Seema Ranga, Posted on 21.08.2023

सूरज

SWARACHIT6077

Hariprakash Gupta
~ हरि प्रकाश गुप्ता सरल

आज की पोस्ट: 24 August 2023

सूरज बने
चंदा बने
और
बने आसमान
काम हम ऐसा करे
सबके लिए हो आसान
विश्व गुरु कहलाए हम
भारत की हो
जग में शान
सूरज बने
चंदा बने
और
बने आसमान
तपन बिना जीवन नहीं
सुख साधन करते
परेशान
आसमान से भी ऊंचा रहे
हमारे तिरंगे की शान

सूरज बने
चंदा बने
और
बने आसमान
सूरज प्रसाद मेरे
पिता श्री का नाम
जिनसे है मेरी पहचान
जिनके थे खुबसूरत अरमान
सूरज की किरणें से
मिलती है ऊर्जा
सुबह शाम
सूरज की गर्मी से
बढ जाता है
धरती का तापमान
विद्युत ऊर्जा गर न हो
तो सूर्य की सोलर ऊर्जा
आती है काम

सूरज बने
चंदा बने
और
बने आसमान
जहां ले जाना
मुश्किल हो बिजली
सूर्य देव की सोलर ऊर्जा
साबित होती है वरदान
ऐसे जहां के दाता
सूर्य देव को मेरा प्रणाम
सूरज बने
चंदा बने
और
बने आसमान
पूरब से पश्चिम तक
उत्तर से दक्षिण तक
सारे विश्व में
जो अपना फैलाए प्रकाश
ऐसे हैं हमारे सूर्य देव
नमन करता है

Written By Hariprakash Gupta, Posted on 24.08.2023

काग़ज़ की नाव

SWARACHIT6078

Rajendra Verma
~ राजेंद्र वर्मा

आज की पोस्ट: 24 August 2023

बाढ़ अभावों की आयी है,
डूबी गली-गली,
दम साधे हम देख रहे
काग़ज़ की नाव चली।

माँझी के हाथों में है
पतवार आँकड़ों की,
है मस्तूल उधर ही इंगिति,
जिधर धाकड़ों की,

लंगर जैसे जमे हुए हैं
नामी बाहुबली।

आँखों में उमड़े-घुमड़े हैं
चिन्ता के बादल,
कोरों पर सागर लहराया
भीगा है आँचल,

अपनेपन का दंश झेलती
क़िस्मत करमजली।

असमंजस में पड़े हुए हम
जीवित शव जैसे,
मत्स्य-न्याय के चलते साँसें
चलें भला कैसे ?

नौकायन करने वालों की
है अदला-बदली ॥

Written By Rajendra Verma, Posted on 24.08.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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