हिन्दी बोल India ई-पत्रिका

Wednesday, 23 August 2023

  1. इंसान और मोबाइल
  2. ठोकरें
  3. कवि
  4. बारिश
  5. महात्याग का प्रश्नचिन्ह
  6. आज मेरे नहीं कल तुम्हारे नहीं

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आज ज़माना भी गज़ब ढा रहा है
मोबाइल तक ख़ुद को सीमित कर रहा है
घर में चार लोग, बैठे चार किनारे
एक दूसरे को देखे भी ना..

और चैट पर पूछ रहे इक दूजे का हाल,
वक्त नहीं है, का बहाना लगा कर 
इंसान ख़ुद को इक डिब्बे में बंद कर रहा है..
आज ज़माना भी गज़ब ढा रहा है।

दया ह्रदय में कोई नहीं, ख़ुद तन्हा रह रहा
ख़ाली ख़ुद वास्तों को बनाकर,
फिर सोशल मिडिया पर तन्हाई के स्टेटस लगा रहा है.....
आज ज़माना भी  गज़ब ढा रहा है।

Written By Priti Sharma, Posted on 20.07.2023

ठोकरें

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Dumar Kumar Singh
~ डुमर कुमार सिंह

आज की पोस्ट: 23 August 2023

संवार भी देती है जिंदगी किसी की, 
बचा लेते है बहकने से किसी को
ठोकरे पीड़ा देती है बस कुछ क्षणों का
देता है अलग ही अनुभव ये ठोकरें।

वो कंकर का टुकड़ा बचपन में
जिसने चलना सिखाया वो ठोकर ही था,
पूजने योग्य ना हो पाये पत्थर भी
जब तक ना सहे चोट हथौड़े की।

विद्द्यालय ना कोई पाठशाला ना गुरुकुल
टटोलते है जब मन आत्मा को ``ठोकर``
से बड़ा गुरु नहीं मिलता संसार में।

आजमाइये कभी उनको जिसने ठोकरे खायी हो
टुटा हो जिनका साख, जो खुद टुटा हो
ताज्जुब उसने कितना कुछ सीख लिया
समझ आया खूबसूरत सी दुनिया से 
क्यों खुद को उसने अलग किया।

गुजरता हर क्षण जीवन का 
इसे आप रहस्य जानो
हर मिलता मुसाफिर और बनता हर रिश्ते
प्रकृति का इशारा बताना चाहता है कुछ आपको।

ना लगता गर ``ठोकर`` हम अंजान ही रह जाते
इस खूबसूरत दुनिया का सच
ना जाने फिर कैसे समझ पाते,
शुक्रिया दिल से उन्हें देकर धोखा
जिन्होंने पल में रूबरू किया सांसारिक सच से।

ना मिले गर ठोकरे फिर
जीवन कहाँ समझ आता है,
सँवारने में हर किसी का जीवन सुना है डुमर ``ठोकर`` बड़ा किरदार निभाता है।।

Written By Dumar Kumar Singh, Posted on 08.08.2023

कवि

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Abhishek Jain
~ अभिषेक जैन

आज की पोस्ट: 23 August 2023

कवि कुछ भी नहीं होता

जमाने की नजर में

होता है इक बोझ

जिसे झेलता रहता है

आएं दिनों

सुनता रहता है

उसकी बातें

झेलता रहता है 

शब्द रूपी व्यंग

Written By Abhishek Jain, Posted on 31.07.2023

बारिश

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Suman Singh
~ सुमन सिंह

आज की पोस्ट: 23 August 2023

ढूंढ रही हूं वर्षों से,
ओ एक बारिश।
जिसमे में मेरे दिल का एक हिस्सा बह गया।
ए ओ हिस्सा था,
जो बस मेरा अपना था।
इसमें छोटी छोटी,
ढेरों खुशियां छुपा के रखी थी।
जागती आंखों से देखे सपने सजा के रखी थी।
पंख थे जिसमे,
आसमां में उड़ने के।
इस छोर से उस छोर तक,
उन्मुक्त विचरने के।
बड़े शौक थे मुझको,
अपनो के संग जीने के।
अपनो की खुशियों के बारिश में भीगने के।
फिर बह गया एक दिन ऐसी ही बारिश में,
मेरे दिल का मेरा अपना ओ हिस्सा।
जिसे ढूंढ रही हूं वर्षों से,
ओ एक बारिश
जिसमे में मेरे दिल का एक हिस्सा बह गया।।

Written By Suman Singh, Posted on 18.08.2023

आज गुजरते इसी सफर में, अजब हुआ कुछ विस्मय सा।
शायद मुझसे एक चलता सा, किसी ने था ज्यों प्रश्न किया।।

नजर घुमाई कुछ ना पाया, विचलित सा भी हो गया मन।
क्या हो देखते कहां चले, फिर हुआ कहीं से मुझे श्रवण।।

स्तब्ध ना हो तुम मुझसे यूं, अरे मैं तो तुम्हारा अपना हूं।
ये ना समझना नींद तुम्हें, और उसी नींद का मैं सपना हूं।।

कोई भगत सिंह है कहता मुझे, तो कोई आज़ाद बताता है।
कोई देशप्रेमी सा मुझको देख, बेनाम सा कोई दिखाता है।।

बहुत दिनों से सोचा था, इस पथ में भ्रमण करूं मैं भी।
अपने प्रश्नों का उत्तर पाकर, सुख से रमण करूं मैं भी।।

जो सोचे थे हम क्या सच में, वही रूप है मेरे भारत का।
आज़ादी का जहां बिगुल बजा, क्या हाल है उस इमारत का।।

छोड़ो बाकी बातें तुम, भारत की एकता को तो बताओ।
संघर्ष नहीं था टूटने पाया, भारत की वो हद दिखलाओ।।

नया सुनाओ क्या अब भी, सब लोग याद हमें करते हैं।
ये तो बताओ दुश्मन अब भी, भारत से हर पल डरते हैं।।

सत्तावन से चली लड़ाई, कहीं हम पर घात तो नहीं करी।
भारत मां के सपूतों से क्या, अब भी यह भूमि रहे हरी।।

विश्वास है गोरे अंत तक भी, फूट में सक्षम नहीं होंगे।
दो भाइयों के प्रेम के आगे, हथियार बेहाल पड़े होंगे।।

क्या अब भी कहीं इस मिट्टी से, बहे रक्त की खुशबू आती है।
क्या अब भी कहीं सूरज की, वो लालिमा बहुत ही भाती है।।

क्या अब भी मेरे भारत की वो, सुबह सुहावनी है सबसे।
बोलो शांत सुखमय जीवन की, शुरुआत हुई है कब से।।

क्या अब भी हमारी याद में कहीं, भीग हैं जाते मां के नयन।
तो क्या राखी भी थी रोई, जिसे बांध थी करती अमर बहन।।

एक साथ किए थे शुरु जिसे,  जो महासंग्राम जारी रहा।
जानें उन वीर सपूतों से क्यों, बलिदान मांगती रही धरा।।

अरे बटुकेश्वर जब आए थे, तब मैंने ये प्रश्न दिखाए थे।
पर ना जाने किस कारण से, खुद वो भी मौन बढ़ाए थे।।

हर क्षण के इन पनपते हुए तुम, प्रश्नों के उत्तर ले आना।
अब की बार जो आओगे, तो मेरा प्यारा भारत दिखलाना।।

लाऊंगा मैं जान कर सबके, उत्तर जो भी सब प्रश्न हुए।
वर्षों के कष्ट की औषधि से, बताऊंगा ऐसे जो मन को छुएं।।

चिन्तन मन में आया था कि, वे भी कुछ यूं सोचते होंगे।
हर प्रश्न का हल वे खुद में ही, जाने कबसे खोजते होंगे।।

Written By Abhishek Sharma, Posted on 14.08.2023

एसे लोगों से मुमकिन गुज़ारे नहीं
आज मेरे नहीं कल तुम्हारे नहीं

ख़वाब कोई दिखाए ज़मीं पर रहे
सांस लेने को होते सितारे नहीं

रिश्ता लफ़्ज़ों का कुछ तो क़िताबों से हो
लफ़्ज़ हो पुर यकीं सिर्फ़ नारे नहीं

इन हवाओं के रुख़ पर ही बहकर चले
एसी कश्ती को आसां क़िनारे नहीं

हम मोहब्बत के क़ासिद रहें हैं सदा
ए हुक़ूमत तिरे ही सहारे नहीं

जीत कोशिश की होती हमेशा जनाब
जीतता है कभी जो भी हारे नहीं

शाह नज़रया हमारा बड़ी बात है
ये नज़र कुछ नहीं कुछ नज़ारे नहीं

Written By Shahab Uddin, Posted on 23.08.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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