किसी की होवे मैं तो इज़्ज़ते औलाद करता हूँ!
मैं अपनी बात रखने के लिए इरशाद करता हूँ!
मेरे दुश्मन ने ये फिर आज बेपर की उड़ाई है,
ग़रीबों पर कहाँ ज़ुल्मो सितम बेदाद करता हूँ!
ख़ुदा जाने ये कैसी कैफियत हो जाती है तारी,
कभी ग़ुस्से से कहता हूँ कभी फरियाद करता हूँ!
मेरे दिल में समाया है वो इक नासूर सा बनकर,
तुम्हारी यादोंं से हर रोज़ दिल नाशाद करता हूँ!
तेरी यादों की चादर से लिपट जाता हूँ रातों को,
मैं रोता हूँ बिलखता हूँ बड़ी फरियाद करता हूँ!
समय से ढंग से अपना मुकम्मल काम हो जाए,
मुक़र्रर पहले अपने काम की मीआद करता हूँ!
मेरा कोई नहीं٫ ख़िदमत तुम्हारी ज़िन्दा रक्खे है,
तुम्हारे नाम अपनी सारी जायदाद करता हूँ!
लकी अब हो गया अपना ज़माना ये डिजीटल है,
बदी को ख़त्म जड़ से करने की अज़दाद करता हूँ!
मौत का सौदागर बन कर
घूम रहा है इधर उधर
बस्ती बस्ती नुक्कड़ नुक्कड़
बच कर जाएं कहाँ किधर
जवानी को कर रहा खोखला
स्कूल कालेज सब जकड़े इसने
गांव अछूते नहीं रहे अब
गली मोहल्ले भी पकड़े इसने
माता पिता में बड़ी लाचारी
कैसे होगी यह दूर बीमारी
दीमक लगी हुई है सारे
बर्बाद कर दिए युवा हमारे
नशा बडे किया करते थे पहले
अब बच्चे भी इसके लिए लड़ रहे हैं
खाने को बेशक कुछ न मिले
चिट्टा खाने के लिए मर रहे हैं
जिम्मेवारी से अपनी हम सब
दूर दूर क्यों भाग रहे है सारे
कहां गए वो संयुक्त परिवार
कहाँ गए संस्कार हमारे
पैसे के लालच में हम सब
नशे में इनको झोंक रहे
अपने ही बच्चों की पीठ में
खंजर क्यों हम भोंक रहे
जहां भी देखो अजब तमाशा
रोज़ दिखाया जाता है
कहीं भागता कहीं छुपता
चिट्टे में पकड़ा जाता है
क्यों मेरे देश में पैसे के लिए
आदमी इतना कैसे गिरता है
युवा चिट्टे की तलाश में
क्यों मारा मारा फिरता है
उनका हरेक वादा बड़े से बड़ा था।
सो हर जन उनके साथ खड़ा था।।
कमर टूटी जा रही जब किसान की।
कीमत क्या रही अब उनकी जबान की।।
वसूलों की बात करते-करते वो वाचाल हो गए।
चालक सियार भी शेरों के झुंड में शामिल हो गए।।
अब तो नहीं बात करते हैं वो हमारे-तुम्हारे हिस्से की।
जब-तब कहते हैं वो मन की या किसी गुजरे किस्से की।।
आये थे दल बदलकर, पाने उम्दा माल।
घर के रहे न घाट के, कुत्ते जैसा हाल।।
हो सवार दो नाव में, करते थे वो सैर।
घर के रहे न घाट के, पकड़ रहे अब पैर।।
जाने क्या क्या सोचकर, बदली थी सरकार।
घर के रहे न घाट के, महॅंगाई की मार।।
की नेता की अरदली, फिर भी हुआ न नाम।
घर के रहे न घाट के, चरण चाटना काम।।
ऑंख मींचकर जो सदा, करते थे गुणगान।
घर के रहे न घाट के, वो धोबी के श्वान।।
बीबी ताने मारती, थू थू करे समाज।
घर के रहे न घाट के, पीकर दारूबाज।।
जल्द बड़ा बनने किया, दो नम्बर का काम।
घर के रहे न घाट के, हुए अलग बदनाम।।
अंग्रेजी स्कूल में, पढ़ा रहे दिन रात।
घर के रहे न घाट के, बेटा मारे लात।।
त्याग सभ्यता संस्कृति, करते इंग्लिश बात।
घर के रहे न घाट के, हुए कठिन हालात।।
मैं हिन्दी
स्त्री हूँ
निश्छल हूँ
सरल हूँ
साहस जुटाकर बोल रही हूँ
अपने ही घर में
घूँट घूँट जी रही हूँ
बेबस लाचार हूँ
मैं जन्मी भारत में हूँ
मैं पली बढ़ी भारत में हूँ
मेरे नामकरण का खिसा भी
ठीक वैसे ही है जैसे
बच्चा हमारे घर जन्मे
और उसका नामकरण पड़ोसी करें
मैं हिन्दी
साहस जुटा कर बोल रही हूँ
देवनागरी मेरी लिपि
बावन वर्णो का मेरा परिवार
ब्रज मैथिली राजस्थानी
अवधी गढ़वाली हरियाणवी
उत्तर दक्षिण
पूरब पश्चिम
सबसे सबको जोड़ा
सबको प्यार से गले लगाया
मिलनी थी जो मुझे अधिकार
इज्ज़त मान और सम्मान
मिली नही अब तक मुझको
अपने ही घर में
इज्ज़त और अधिकार
दूसरों से क्या रखूँ अपेक्षा
है नहीं अपनो को ही
मेरी परवाह
अपनो ही मुझे सताया
अपनो ही मुझे ठुकराया
आप ही बताएं
बयां करूँ किसका किसका नाम
कब तक मैं
यूँ ही चुप रहूंगी?
गूँगी बन बैठी रहूंगी?
सबकुछ होते हुए भी
गुमनाम रहूँगी?
देश की बिंदी थी मैं
दासी बनकर जी रही
उपर वाले तुझसे शिकायत भी बहुत है
पर क्या करु तेरी जरूरत भी बहुत है
जब घिरे थे मुसीबत मे तब तु ही था सहारा
और आज बीच मझधार मे कर दिया बेसहारा
तुझसे लड़ती हु रोती हु चिल्लाती भी बहुत हु
और तेरे हि दम से किस्मत आजमाती बहुत हु
साथ निभाया हर दर्द मे तूने
पर तड़प के वक़्त साथ छोड़ा भी बहुत है
उपर वाले तुझसे शिकायत भी बहुत है।
दिखाए ख्वाब तूने मुझे मैने आँखों मे बसाया
तेरे हर फैसले को सर आँखों पर बिठाया
पता तो तुझको भी था की एक तु हि है हमारा
अपना बना कर के तूने सताया भी बहुत है
तोड़ कर हर ख्वाब मेरे रुलाया भी बहुत है
पर क्या करे तेरी जरूरत भी बहुत है।
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