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Thursday, 17 August 2023

  1. किसी की होवे मैं तो इज़्ज़ते औलाद करता हूँ
  2. मौत का सौदागर
  3. वादा
  4. घर के रहे न घाट के
  5. मैं हिन्दी
  6. उपरवाले तुझसे शिकायत बहुत है

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किसी की होवे मैं तो इज़्ज़ते औलाद करता हूँ!
मैं अपनी बात रखने के लिए इरशाद करता हूँ!

मेरे दुश्मन ने ये फिर आज बेपर की उड़ाई है,
ग़रीबों पर कहाँ ज़ुल्मो सितम बेदाद करता हूँ!

ख़ुदा जाने ये कैसी कैफियत हो जाती है तारी,
कभी ग़ुस्से से कहता हूँ कभी फरियाद करता हूँ!

मेरे दिल में समाया है वो इक नासूर सा बनकर,
तुम्हारी यादोंं से हर रोज़ दिल नाशाद करता हूँ!

तेरी यादों की चादर से लिपट जाता हूँ रातों को,
मैं रोता हूँ बिलखता हूँ बड़ी फरियाद करता हूँ!

समय से ढंग से अपना मुकम्मल काम हो जाए,
मुक़र्रर पहले अपने काम की मीआद करता हूँ!

मेरा कोई नहीं٫ ख़िदमत तुम्हारी ज़िन्दा रक्खे है,
तुम्हारे नाम अपनी सारी जायदाद करता हूँ!

लकी अब हो गया अपना ज़माना ये डिजीटल है, 
बदी को ख़त्म जड़ से करने की अज़दाद करता हूँ!

Written By Mohammad Sagheer, Posted on 19.02.2022

मौत का सौदागर बन कर
घूम रहा है इधर उधर
बस्ती बस्ती नुक्कड़ नुक्कड़
बच कर जाएं कहाँ किधर

जवानी को कर रहा खोखला
स्कूल कालेज सब जकड़े इसने
गांव अछूते नहीं रहे अब
गली मोहल्ले भी पकड़े इसने

माता पिता में बड़ी लाचारी
कैसे होगी यह दूर बीमारी
दीमक लगी हुई है सारे
बर्बाद कर दिए युवा हमारे

नशा बडे किया करते थे पहले
अब बच्चे भी इसके लिए लड़ रहे हैं
खाने को बेशक कुछ न मिले
चिट्टा खाने के लिए मर रहे हैं

जिम्मेवारी से अपनी हम सब
दूर दूर क्यों भाग रहे है सारे
कहां गए वो संयुक्त परिवार
कहाँ गए संस्कार हमारे

पैसे के लालच में हम सब
नशे में इनको झोंक रहे
अपने ही बच्चों की पीठ में
खंजर क्यों हम भोंक रहे

जहां भी देखो अजब तमाशा
रोज़ दिखाया जाता है
कहीं भागता कहीं छुपता
चिट्टे में पकड़ा जाता है

क्यों मेरे देश में पैसे के लिए
आदमी इतना कैसे गिरता है
युवा चिट्टे की तलाश में
क्यों मारा मारा फिरता है

Written By Ravinder Kumar Sharma, Posted on 30.01.2022

वादा

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Manoj Kumar
~ डॉ. मनोज कुमार "मन"

आज की पोस्ट: 17 August 2023

उनका हरेक वादा बड़े से बड़ा था।
सो हर जन उनके साथ खड़ा था।।

कमर  टूटी  जा  रही  जब  किसान  की।
कीमत क्या रही अब उनकी जबान की।।

वसूलों  की बात  करते-करते वो वाचाल हो गए।
चालक सियार भी शेरों के झुंड में शामिल हो गए।।

अब तो नहीं बात करते हैं वो हमारे-तुम्हारे हिस्से की।
जब-तब कहते हैं वो मन की या किसी गुजरे किस्से की।।

Written By Manoj Kumar, Posted on 08.05.2022

आये थे दल बदलकर, पाने उम्दा माल।
घर के रहे न घाट के, कुत्ते जैसा हाल।।

हो सवार दो नाव में, करते थे वो सैर।
घर के रहे न घाट के, पकड़ रहे अब पैर।।

जाने क्या क्या सोचकर, बदली थी सरकार।
घर के रहे न घाट के, महॅंगाई की मार।।

की  नेता की अरदली, फिर भी हुआ न नाम।
घर के रहे न घाट के, चरण चाटना काम।।

ऑंख मींचकर जो सदा, करते थे गुणगान।
घर के रहे न घाट के, वो धोबी के श्वान।।

बीबी ताने मारती, थू थू करे समाज।
घर के रहे न घाट के, पीकर दारूबाज।।

जल्द बड़ा बनने किया, दो नम्बर का काम।
घर के रहे न घाट के, हुए अलग बदनाम।।

अंग्रेजी स्कूल में, पढ़ा रहे दिन रात।
घर के रहे न घाट के, बेटा मारे लात।।

त्याग सभ्यता संस्कृति, करते इंग्लिश बात।
घर के रहे न घाट के, हुए कठिन हालात।।

Written By Rupendra Gour, Posted on 21.05.2022

मैं हिन्दी

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Subhash Kamat
~ सुभाष कामत

आज की पोस्ट: 17 August 2023

मैं हिन्दी
स्त्री हूँ
निश्छल हूँ
सरल हूँ
साहस जुटाकर बोल रही हूँ
अपने ही घर में
घूँट घूँट जी रही हूँ
बेबस लाचार हूँ

मैं जन्मी भारत में हूँ
मैं पली बढ़ी भारत में हूँ
मेरे नामकरण का खिसा भी
ठीक वैसे ही है जैसे
बच्चा हमारे घर जन्मे
और उसका नामकरण पड़ोसी करें

मैं हिन्दी
साहस जुटा कर बोल रही हूँ
देवनागरी मेरी लिपि
बावन वर्णो का मेरा परिवार
ब्रज मैथिली राजस्थानी
अवधी गढ़वाली हरियाणवी
उत्तर दक्षिण
पूरब पश्चिम
सबसे सबको जोड़ा
सबको प्यार से गले लगाया

मिलनी थी जो मुझे अधिकार
इज्ज़त मान और सम्मान
मिली नही अब तक मुझको
अपने ही घर में
इज्ज़त और अधिकार
दूसरों से क्या रखूँ अपेक्षा
है नहीं अपनो को ही
मेरी परवाह

अपनो ही मुझे सताया
अपनो ही मुझे ठुकराया
आप ही बताएं
बयां करूँ किसका किसका नाम

कब तक मैं
यूँ ही चुप रहूंगी?
गूँगी बन बैठी रहूंगी?
सबकुछ होते हुए भी
गुमनाम रहूँगी?
देश की बिंदी थी मैं
दासी बनकर जी रही

Written By Subhash Kamat, Posted on 17.08.2023

उपर वाले तुझसे शिकायत भी बहुत है
पर क्या करु तेरी जरूरत भी बहुत है
जब घिरे थे मुसीबत मे तब तु ही था सहारा
और आज बीच मझधार मे कर दिया बेसहारा
तुझसे लड़ती हु रोती हु चिल्लाती भी बहुत हु
और तेरे हि दम से किस्मत आजमाती बहुत हु
साथ निभाया हर दर्द मे तूने
पर तड़प के वक़्त साथ छोड़ा भी बहुत है
उपर वाले तुझसे शिकायत भी बहुत है।
दिखाए ख्वाब तूने मुझे मैने आँखों मे बसाया
तेरे हर फैसले को सर आँखों पर बिठाया
पता तो तुझको भी था की एक तु हि है हमारा
अपना बना कर के तूने सताया भी बहुत है
तोड़ कर हर ख्वाब मेरे रुलाया भी बहुत है
पर क्या करे तेरी जरूरत भी बहुत है।

Written By Pamita Kumari Yadav, Posted on 17.08.2023

Disclaimer

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