हिन्दी बोल India ई-पत्रिका

Wednesday, 16 August 2023

  1. गाँव बदलकर शहर हो रहा
  2. काजल
  3. तकाजा
  4. लिखता रहा बहुत कुछ मैं
  5. अटल इरादों वालें अटल
  6. आजादी के इस दिवस को मनाऊं तो कैसे

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गाँव बदल कर शहर हो रहा।
हवा बदलकर  जहर हो रही।
हो रहा मुश्किल यहाँ पे जीना,
धरा गाँव  की  अहर हो रहा।

गाँव - घरों  के  सौन्दर्यो पर,
आधुनिकता का असर हो रहा।
नदी का पानी,खेत खलिहानी,
धीरे- धीरे सह - पहर हो रहा।

गाँव बदल कर शहर हो रहा।
हवा बदल कर जहर हो रही।
रिश्ते-नातों का मतलब भी,
अब केवल लट बहर हो रहा।

कच्ची गलियों की खुशबू पर,
कंक्रीट सीमेंट असर हो रहा।
जार जार हो रहा है दिल मेरा,
कूचे का क्या ये हसर हो रहा?

चुप्पियाँ बैलों के घुँघरू की,
किस्से गाँव की बयां कर रही,
खेतों में ट्रैक्टर का बसर हो रहा।
कुल्हड़ - सुराही  बेघर हो रहा।

अपने - अपनों  से भी बात करे।
इतनी फुर्सत है, अब कहाँ किसे?
खामोशियों का अब पहर हो रहा।
गाँव बदल कर अब शहर हो रहा।

गाँव की मिट्टी, गाँव की बातें 
लिख लिख रवि मुश्तहर हो रहा।
गाँव बदल कर शहर हो रहा।
हवा बदलकर  जहर हो रही।

Written By Ravi Shankar Sah, Posted on 08.08.2023

काजल

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Prakash Pant
~ प्रकाश पंत

आज की पोस्ट: 16 August 2023

फिर से आंखों फैला काजल 

बहुत रोया कोई कहता  काजल।

रात भर  बरसी है शायद 

आंखों का हाल  बताता  काजल।

कैसे आँख मिलाऊँ उससे 

भीगी आंखे, गीला  काजल।

उसका रंग ना  पूछो हमसे 

काली रात सा काला  काजल।

पूरी रात फिर कोई  रोया 

सुबह देखा तो सुखी आँखें, सूखा काजल।

उसके दर्द को कैसे समझे 

हंसती आँखे, हंसता काजल।

 

 

Written By Prakash Pant, Posted on 09.08.2023

तकाजा

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Manoj Bathre
~ मनोज बाथरे चीचली

आज की पोस्ट: 16 August 2023

वक्त का तकाजा 

जो कहता है

उसका पालन 

हमें अवश्य करना चाहिए

क्योंकि

उसका पालन करने से

हमें कई तरह से लाभ होते हैं

और 

हम बेहतरीन अभिव्यक्ति के साथ

जिंदगी के वो सब 

सुख समृद्धि को पा सकते हैं

जिसकी तलाश हमें 

अपने जीवन में

जीवन भर रहती है।।

 

Written By Manoj Bathre , Posted on 03.06.2021

लिखता रहा बहुत कुछ मैं,
सीखता रहा सबसे खुद में,
कभी अनुभव की पकड़ देखी
तो कभी शब्दों में अकड़ देखी
और बढ़ता रहा मिथ्या और सच में.

समय का शबाब देखा,
मौसम बहुत खराब देखा,
व्यक्तित्व हर लाजबाब देखा,
सपनों को पाया ईश्वर की मूरत में
लिखता रहा बहुत कुछ मैं,
सीखता रहा सबसे खुद में.

बढ़ा तो राह भी मिलती गयी,
उठा तो चाह भी जगती गयी,
दौड़ा तो ख्वाहिश पनपती गयी,
रोशनी खोज ही ली,जीवन की धुंध में
लिखता रहा बहुत कुछ मैं,
सीखता रहा सबसे खुद में.

मुस्कुराया तो मुश्किल कम हुयी,
अधूरी हसरतें फिर मुकम्मल हुयी,
कठोर धारा मन की, निर्मल हुयी,
संघर्ष ने बताया,बहुत कुछ है मुझमें
लिखता रहा बहुत कुछ मैं,
सीखता रहा सबसे खुद में.

अलग हुआ, तो समझ भी आयी,
अकेला चला, तो अक्ल भी आयी,
यहाँ तक पहुँचने में खूब ठोकर खायीं,
टूटकर अक्सर, फिर बना साबुत मैं
लिखता रहा बहुत कुछ मैं,
सीखता रहा सबसे खुद में.

Written By Sumit Singh Pawar, Posted on 08.12.2021

सीधे-सादे थे सरल
भारत के स्वर्णिम कल
पुण्यतिथि पर करूं नमन
थे अटल इरादों वालें अटल

सर्वगुण-संपन्न सफल
सच्चे राष्ट्र-नायक असल
पुण्यतिथि पर करूं नमन
थे अटल इरादों वालें अटल

सोच,शोध थे और पहल
तन-मन से उज्जवल-निर्मल
पुण्यतिथि पर करूं नमन
थे अटल इरादों वालें अटल

हर मुश्किल प्रश्नों के हल
दृष्टि-पुञ्ज थे और अकल
पुण्यतिथि पर करूं नमन
थे अटल इरादों वालें अटल

प्रेरणापुंज हैं ऊर्जा-बल
आदर्श हमारे और संबल
पुण्यतिथि पर करूं नमन
थे अटल इरादों वालें अटल

Written By Narendra Sonkar, Posted on 16.08.2023

आजादी के इस दिवस को मनाऊं तो कैसे,
प्रकृति के प्रक्रोप से सबको बचाऊं तो कैसे?

मलबे में दबे बच्चो, बजुर्गो और नौजवानों के,
मृत देह के साथ तिरंगा लहराऊं तो कैसे?

दिल जार जार हो रहा है ये सब मंजर देखकर,
इंसान जो भगवान को भी दगा दे
उससे वफा की अलख जगाऊं तो कैसे?

Written By Uma Kumari Rana, Posted on 16.08.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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