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Saturday, 12 August 2023

  1. मिठाईवाला (बाल कवितायेँ)
  2. नींद अब नहीं आती
  3. बच्चे अब बच्चे कहां रहे
  4. क्यों कहते हैं भगवान
  5. आओ स्कूल चलें हम
  6. अधूरे अरमान
  7. कुछ झलक प्रेम की
  8. धरती तप रही है
  9. जिसे तुम कविता कहते हो
  10. विश्वास से अनुबन्ध

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(1.) मिठाईवाला

मैं हूँ मिठाईवाला बच्चों
लो, खूब मिठाई खाओ तुम
हिलमिलकर सब नाचो-झूमो
यूँ जमकर मौज उड़ाओ तुम

(2.) लड्डू–मोदक

सुन बच्चे क्या, बोले ढोलक
जी भर खा ले, लड्डू–मोदक
है पूजा में भी मेरी शान
खाएँ मुझको गणपति हनुमान

(3.) बर्फ़ी

खोये से बनती हूँ मैं
लोग कहें मुझको बर्फ़ी
सब मुझको खाना चाहें
खर्चो तुम भी अशर्फ़ी

(3.) पेड़ा

बच्चों वो तो है येड़ा
जो ना खाता है पेड़ा
मुझसे ही सेहत निखरी
मीठा हूँ जैसे मिसरी

(4.) इमरती

दाल उड़द से मैं बनती
फिर चीनी में जा घुलती
बहन जलेबी सी दिखती
मैं हूँ दमदार इमरती

(5.) जलेबी

स्वाद बड़ा मीठा अनमोल
मैदे-ओ-चीनी का घोल
सबसे सस्ता मेरा दाम
गोल जलेबी मेरा नाम

(6.) पतीसा–सोहनपपड़ी

धागे-रुई सा मुझको सबने खींचा
‘सोहनपपड़ी’ कोई कहे ‘पतीसा’
मैदा, बेसन, घी, चीनी से बनता
खाने में मैं भी बर्फ़ी-सा लगता

(7.) रसगुल्ला

छेना, खोया, चाशनी में डूबा
खाके कोई भी, कभी ना ऊबा
पोप-ग्रन्थी खाये, पाण्डे-मुल्ला
जी मिठास भरा, मैं हूँ रसगुल्ला

(8.) गुलाब जामुन

न तनिक भी गुलाब जामुन का गुन
क्यों नाम धरा फिर गुलाब जामुन
मैं हूँ मटमैला काला–सा गोला
स्वादिष्ट हूँ, ये हर बच्चे ने बोला

(9.) मिल्क केक

खोया-चीनी से बना पदार्थ एक
मैं हूँ स्वादिष्ट बड़ा ही मिल्क केक
भूरा दानेदार दिखता हूँ मैं
बर्फ़ी के ही दाम मिलता हूँ मैं

(10.) घेवर

मैदा-दूध खूब घी मेँ तलकर
तैयार करे हलवाई घेवर
रक्षाबन्धन पर बिकता अक्सर
सब भाई-बहना ले जाते घर

(11.) पेठा

आयुर्वेदिक औषधि गुण मुझमें
सस्ता स्वादिष्ट हूँ मैं तो बेटा
ताजमहल यदि तुम घूमने जाओ
तो लाओ प्रसिद्ध आगरा पेठा

Written By Mahavir Uttaranchali, Posted on 07.03.2023

नींद अब नहीं आती, 
नींद अब नहीं आती, 
दिल में उतर गया कोई,
चांद है मद्धम मद्धम, 
आज संवर गया कोई,
दिल धड़कता है, शब ए, 
हिज्र का मुआमला  है,
आया नहीं अब तलक, 
वादा, कर गया कोई,
आंखों से पी पी कर, 
मैं, मदहोश हो गया यारों, 
पूरा जिस्म ही महकता  है, 
छु कर चला गया कोई, 
बहुत शौक़ था, हो जाये, 
उनसे मुहब्बत मुझको,
रंज और ग़म का तमाशा, 
सरे आम कर गया कोई, 
मारते हैं पत्थर मुझको, 
लोग दीवाना कह करके, 
सारी दुनिया से बेगाना  सच,
मुझको तो कर गया कोई,
यह ज़िन्दगी आख़िर किसी,
तरह तो गुजर ही जाएगी,
वादों से अपने खुद ही दग़ा, 
यारब फिर कर गया कोई,
दरियाए इश्क़ की लहरों में,
मुझको, फंसा कर `` मुश्ताक़ `` 
देखिये किनारा अब मुझसे, 
किस अंदाज़ से कर गया कोई, 

Written By Mushtaque Ahmad Shah, Posted on 22.03.2023

बच्चे अब बच्चे कहां रहे।
वो अब नादान परिंदे नहीं रहे।

बुज़ुर्गों के साथ बैठ।
न अब ज्ञान सीखना चाह रहे।
अब वो सब कुछ ढूंढे इंटरनेट पर।
अरु मोबाइल में झांक रहे।।

न भान रहा उनको अब कुछ।
है अनुभव से ज्यादा ज्ञान नहीं।।
हैं अब गैरों में अपना ढूंढ रहे।
खुद अपनों की पहचान नहीं।।

Written By Shivang Mishra, Posted on 02.04.2023

क्यों कहते है तुझे भगवान,

इसकी आज हुई पहचान,

पहले तो था मैं नादान,

दिन रात करता तेरा अपमान,

लेकिन आज हुई पहचान,,,,,, क्यों कहते 

दिन रात लेता था नाम तेरा,

फिर भी नहीं बनता काम मेरा,

देर तो की अंधेर न कि,

तेरी महिमा आज समझ ली,

रख लिया तूने मेरा मान,,,,,,, क्यों कहते

टूटा नहीं आस मेरा,

छुटा नहीं सांस मेरा,

दुख हुआ नहीं गहरा,

तूने दिया मुझे सहारा,

हमेशा रखा मेरा ध्यान,,,,,,, क्यों कहते

Written By Bharatlal Gautam, Posted on 22.04.2023

हर अंधेरा अज्ञानता का,बन ज्ञान-दीप जलें हम,
भरकर जुनून जज्बातों में,आओ स्कूल चलें हम।

स्वर्णिम हो आने बाली भोर,चलो अथक अविराम
लौटना नही डर विपदाओं से,छोड़ ना देना संग्राम।

बन ज्ञानपुंज का दिव्य सूर्य,रोशन कर जहान यह 
अहो भाग्य मिली मानव देह,हर सारा अज्ञान भय।

क़दम चांद पर रखने का,लेखा तुम्हारी तक़दीर में,
बह रही गंगा स्मृद्धि की,दिखता तुम्हारी तनवीर में।

शिक्षा है दूध शेरनी का,दहाड़ना सबको सिखलाए
उचित-अनुचित की सीख,निष्छलता से दिखलाए।

हार ना जाना हिम्मत कभी,मुट्ठी भर अंधियारों से 
गूंजेगी एक दिन यह कायनात,तेरे ही जयकारों से।

Written By Govind Sarawat Meena, Posted on 11.05.2023

अधूरे अरमान

SWARACHIT6051

Aman Raj
~ अमन राज

आज की पोस्ट: 12 August 2023

संजोया था सब तिल-तिल करके
बिखड़ गए सब अरमान खुदाया ।

जैसे-जैसे धड़क रहा अब दिल
निकल रही मेरी जान खुदाया ।

कल तक जो अपनापन था
अब लगता है एहसान खुदाया ।

फायदे का इक सौदागर मैं
ये जीवन तो है इक नुकसान खुदाया ।

पूछी जाए मेरी भी इंतकाल-ए-आरजू
जारी करो ना इक फरमान खुदाया ।

Written By Aman Raj, Posted on 12.08.2023

कुछ झलक प्रेम की

SWARACHIT6052

Madhav Kumar
~ माधब कुमार

आज की पोस्ट: 12 August 2023

प्रेम का रंग चढ़ा है आसमान,
बदलते सफ़र का रंगीन यात्री।
जीवन के साथी, एक अनमोल वरदान,
जीने का उद्देश्य, प्रेम का पंथी।

प्रेम की बारिश से फूल खिलते हैं,
खुशियाँ बिखरतीं हर दिल पर।
सपनों की ऊँचाइयों पर चढ़ते हैं,
प्रेम के सागर में खो जाने का अभिमान।

जो दिलों को जोड़ देता है साथ,
ज़िंदगी को बनाता है मिसाल।
बिना बातों के भी हो जाता है बात,
प्रेम की भाषा, अनकही जुबां।

राहों में मिल जाती है वो मुस्कान,
जिंदगी रौंगतें भर जाती है।
चाहत के सागर में डूब जाती है ज़िंदगी,
प्रेम की लहरों में भटक जाती है।

जब धड़कन बन जाती है मिलन की धुन,
दरिया भी ख़ुद को भूल जाता है।
प्रेम के आगे सब झुक जाते हैं,
ख़ुद को भी भूलकर वो झुक जाता है।

प्रेम की मिठास बन जाती है यादों में,
ज़िंदगी की कहानी सजाती है।
चाहत के रंग में रंग जाती है दुनिया,
प्रेम की आँधी सबको बहलाती है।

प्रेम की बाँहों में खो जाती हैं ख्वाहिशें,
सबको अपना बनाती है।
ज़िंदगी की हर राह में साथ रहती हैं,
प्रेम की मिसाल खुदा बन जाती है।

Written By Madhav Kumar, Posted on 12.08.2023

धरती तप रही है

SWARACHIT6053

Hareram Singh
~ डॉ. हरेराम सिंह

आज की पोस्ट: 12 August 2023

तप रही है धरती
आसमान में बादल भी नहीं हैं.

जल रही है धू-धू देह
झूलस गया है एक-एक पेड़

बारिश की जरूरत है
आसमान की ओर निहारते
गुजर रहा है दिन.

तप रही है धरती
गरमी को सहन कर रहा
यह नंगा पहाड़ भी

जिंदा रहना है
तो बारिश जरूरी है

मर जाएँगे हम सभी
रो रहे हैं पंछी
बगल के बाग सब
गमलों का फूल
सूख गया है
और धरती तप रही है.

Written By Hareram Singh, Posted on 12.08.2023

बिल्कुल ही एक मजदूर की तरह
जब खुद को जोड़ा हूं
झिंझोड़ा हूं
दिन रात
आंखों को फोड़ा हूं
निचोड़ा हूं
तब जाकर कहीं कुछ पंक्तियां लिख पाया हूं
जिसे तुम कविता कहते हो
दरअसल यह कविता नही
मेरी आंखों का छिना हुआ सुकून है
परिश्रम है; पसीना है; खून है.

Written By Narendra Sonkar, Posted on 12.08.2023

जब किया विश्वास से अनुबन्ध मैंने,
बन गयी हर शक्ति मेरी
सहचरी है।

जग भले कहता रहे, यह देह क्षर है,
किन्तु मेरी दृष्टि औरों से इतर है,
स्वार्थ पर प्रतिबन्ध जब मैंने लगाया,
काल ने मुझमें नवल
उर्जा भरी है।

प्राण-जागृति को पवन चलने लगा है,
टिमटिमाता दीप फिर जलने लगा है,
स्निग्धता छायी हुई वातावरण में,
खिल उठी अन्तःकरण में
मंजरी है।

रश्मियाँ-ही रश्मियाँ हैं हर दिशा में,
इन्द्रधनु जैसे निकल आया निशा में,
चन्द्रिका से कब रखा सम्बन्ध मैंने,
किन्तु छलकी जा रही
मधुगागरी है।।

Written By Rajendra Verma, Posted on 12.08.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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