सुनो! अपने मित्रो की सूची में
मेरा नाम अंतिम पंक्ति में रखना
मेरे नाम के बाद कोई नाम ना हो।
भगवान ना करे कभी तुम्हें
कोई परेशानी घेर ले,और
दूर-दूर तक कोई उम्मीद की
किरण नज़र ना आये।
जब सब अपनो को
तुम परख लो।
तब तुम बेझिझक हक से
मुझको याद करना।
अपनी अंतिम उम्मीद के साथ
मुझको याद करना।
मेरा वादा है
एक दोस्त का दूसरे दोस्त से
तुम को मैं कभी
निराश नहीं करूंगा।
तुम्हारी तकलीफों, परेशानियों को
अस्त कर, मैं तुम्हें
नया सवेरा, नई किरण देने का
प्रयास करूंगा, पूरा पूरा प्रयास करूंगा।
कुछ अरसा विश्राम करके
धरती और पौधों के प्यार
की खट्टी-मीठी यादें लिए
निकल चला हूँ,
फिर से उसी मंजिल की ओर
जो अब जरूरत-सी बन गई है.
हाँ, जरूरतें बदलती भले रहती हों
पर जरूरतें बनी जरूर रहती हैं
और शायद सभी उन जरूरतों की
पूर्ति की जद्दोजहद में लगे रहते हैं.
शायद हर पल और शायद जीवनभर.
जितने अटूट रहे परिवार,
उतने टूट रहे परिवार।
बाजारों की चकाचौंध में,
पीछे छूट रहे परिवार।
पश्चिम वाली परिपाटी में,
जमकर डूब रहे परिवार।
जैसे फूटा करते दाने,
वैसे फूट रहे परिवार।
रिश्तों को रख ताक में,
बेजा रूठ रहे परिवार।
देखा-देखी में नित पीते,
कड़वा घूंट रहे परिवार।
अपने हाथों से स्वयं का,
गला घोंट रहे परिवार।
मार संबंधों को ठोकर,
मजे लूट रहे परिवार।
आज नहीं नामोंनिशां है,
जो जो ठूंठ रहे परिवार।
आज भारत जैसे विकासशील देशों में एक और नये व्यापार का जन्म हुआ है. जिसमें धनकुबेरों द्वारा मानव और मानवता की करोड़ों में बोली लगने लगी है. बोली के बाद उसकी रातों-रात सोसायटी में उच्च स्तरीय मानक स्थापित होते हैं. और वह इतना बड़ा बन जाता है कि उनके आगे अब बड़े-बड़े हैसियत वाले बौने सिद्ध होने लगते हैं. अचानक शहर और गांव की गलियों में बच्चे-बूढ़े तक की जुवान पर उस क्रिकेटर के नाम की चर्चा होने लगती है, जिसे कल आईपीएल के लगने वाली बोली में उच्च भाव लगाए गये हैं। सारे न्यूज चैनल और अखबार दिन-रात छक कर गाथा गाने में लगे हैं.
नगर के नगरपालिका मैदान पर खेलने वाला....... इक्कीस साल के युवा खिलाड़ी, सुपर स्टार बना.
अब क्रिकेट से विकर्षित लोगों में गहरी कुंठा के बीज तेजी से अंकुरित हुए हैं.
नम आँखों के कोर को आँचल से पोछ लेती है
अब यही घर है मेरा मै जाऊ कहा ये सोच लेती है
भींगती तो है रोज पलके और दिल भी भारी है
त्याग और तपस्या का दूसरा नाम ही नारी है
बनी ये अनपूर्णा सी मगर दुत्कारी जाती है
नवरात्र की पूजा के बाद जैसे देवी बहा दी जाती है
इसके गीले आँचल मे जाने कितने राज छुपे है
कभी खुद के आंसु पोछती है कभी किसी के दुख से भिगोती है
दिन पसीने से नहाती है रात आंसू से तकिया भिगोती है
एक चांद पर जा रही एक दबायी जाती है
कही आसमान को छूती है कही जलाई जाती है
कही सीता बना कर अग्नि परीक्षा दिलाई जाती है
अगले जन्म न नारी बनाना ये दुआ करती है
नम आँखों के कोर से आँचल को पोछ लेती है
अब तो जीना है यहाँ मै जाऊ कहा सोचती रहती है
हम निकल पड़े है प्रण करके
अपना तन मन अर्पण करके
अम्बर से उपर जाना है
एक भारत नया बनाना है
जवान लेकर किसान लेकर
उनका त्याग, बलिदान लेकर
ज्ञान लेकर विज्ञान लेकर
उन्नति का पहचान लेकर
चाँद को भी छु जाना है
एक भारत नया बनाना है
एक हाथ में कलम
एक हाथ में किताब
भारत को समृद्ध बनाने हेतु
हम सब को लेकर ख्वाब
हर एक को सामने आना है
एक भारत नया बनाना है
राम -रहिम की वही भूमी
जिस पर निछावर हो जाये ये प्राण
हमे चलना है उसी राह पर
करके इस मिट्टी को प्रणाम
पुनः वही संस्कृति लाना है
एक भारत नया बनाना है
गुजरात से लेकर अरुणाचल
काश्मीर से जोड़कर कन्याकुमारी
हम सब इसके सपुत है
वो है माँ भारत हमारी
आज हर एक को अपना र्भज निभाना है
एक भारत नया बनाना है
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