हिन्दी बोल India ई-पत्रिका

Monday, 07 August 2023

  1. मजबूरी थी
  2. बदला
  3. खुलकर जीयो जिंदगी
  4. तलब
  5. भारत की साधना
  6. गरीब की पुकार

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मजबूरी थी

23THU08765

Prakash Pant
~ प्रकाश पंत

आज की पोस्ट: 07 August 2023

कुछ यूं भी मजबूरी  थी

उससे रखनी दूरी थी।

एक बात जो कह ना पाया मैं

वो बात बहुत ज़रूरी  थी।

दिल के आंगन घना अंधेरा

बाहर चाँदनी पूरी थी।

एक दिन पास आकर बैठ गया वो

और बीच हमारे सदियों की दूरी थी।

काजल लगा हुआ  था उन पर 

फिर भी आँखे अधुरी थी।

Written By Prakash Pant, Posted on 02.08.2023

बदला

23SAT08769

Nandlal Ahi
~ नन्दलाल आही

आज की पोस्ट: 07 August 2023

``जैसा कि सभी जानते है कि आये दिन जरा-जरा सी छोटी-छोटी बात को लेकर लोगों में लड़ाई-झगड़ा और बहस हो जाया करती है उसी को ध्यान में रखते हुए एक छोटा सा मित्रों का किस्सा सुनाने का प्रयास यहाँ कर रहा हुं।``

ये घटना कुछ मित्रों कि है एक समय कि बात है सभी मित्र स्कूल (शाला) से आकर शाम (सांय) को एक साथ खेल के मैदान में खेलने जाया करते थे, एक दिन खेल-खेल में ही एक मित्र से दूसरे मित्र कि (कहा-सुनि) लड़ाई हो गयी, लड़ाई इतनी ज्यादा बढ़ गयी थी कि एक मित्र ने अपने दूसरे मित्र से बदला लेने के लिये ज़मीन पर पड़े छोटे पत्थर उठाकर उनसे अपने मित्र को मारने लगा, भागते-भागते उसका मित्र सभी पत्थरो से बचता-निकलता गया, कोई उसके ऊपर से कोई बाजू से आर-पार होते रहे, एक दो पत्थर उसके पैर पर लग गये, पर वो दौडता रहा, फिर उसने उसे मारने के लिये एक बड़ा सा पत्थर उठाना चाहा, उसका मित्र हँसते हुए बोला यार तू छोटे पत्थर जितने मर्ज़ी मार ले बड़ा तो सच में मुझे लग जायेगा, उसने कहा आज में तुझे नहीं छोडूंगा, आज मै तुझसे बदला लेकर ही रहूंगा, उसका मित्र बोला मुझे चोट लग जायेगी यार क्या कर रहे हो, दौड़ते-दौड़ते हम अपने सभी मित्रों से आगे आ चुके हैँ, अब बहुत हो चुका मैं भी दौड़ते-दौड़ते थक चुका हूँ, मान जाओ, उनसे कहा नहीं, तभी उनसे फिर बड़ा पत्थर ज़मीन पर से उसे मारने के लिये उठा लिया था। 

``(यहाँ पर मै आप सभी का ध्यान केंद्रित करना चाहूंगा कि जरा सी बात पर दोनों मित्रों मे लड़ाई हो गयी। बदला लेने के लिए एकक दूसरे को मारने पर उतारू हो गये।)``

और जैसे ही उसे मारना चाहा उसके हाँथ कि नस पलट गयी, पत्थर हाँथ से छूटकर ज़मीन पर गीर गया, फिर उसका मित्र दौड़कर उसके पास आया भाई-भाई क्या हो गया, उसने कहा यार मेरा  हाँथ....... ! पता नहीं यार क्या हो गया बहुत दर्द कर रहा है, उसके मित्र ने उसका हाँथ जोर से दो-तीन बार पकड़कर झटका तो ईश्वर जाने कि क्या हुआ वो पेहले कि तरह ही ठीक हो गया।  

जब दोनों का क्रोध शांत हो गया तो फिर से एक दूसरे के साथी बन गये। और उसने अपने मित्र को गले से लगा लिया, उससे कहा चलो यार वापस चलें सभी मित्र राह देख रहें होंगे, उसका मित्र मुस्कुराया और उससे कहने लगा कि अब जब दुबारा बदला लेना हो तो मूझे मारने के लिये कोई पहाड़ मत उठा लेना। दोनो जोर से हसते हुए अपने सभी मित्रों के साथ मिल जाते है।  

(यहाँ मैं ये कहना चाहूंगा कि क्रोध - लड़ाई ही हर समस्या का समाधान नहीं है, धैर्य रखकर हमें एक दूसरे कि बातों को समझना चाहिये और उस समस्या का समाधान करना चाहिये।) 

Written By Nandlal Ahi, Posted on 04.08.2023

खुलकर जीयो जिंदगी

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Majida Khan
~ माजिदा खान

आज की पोस्ट: 07 August 2023

पिंजरे में बंद परिंदे से पूछो
 कीमत आजादी की।

किसी प्यासे से पूछो
 कीमत पानी की।

रातों जागे हुए से 
पूछो कीमत नींद की।

गरीब से पूछो 
कीमत रोटी की।

बेरोजगार से पूछो 
कीमत रोजगार की।

वियोग में बिछड़े प्रेमी-प्रेमिका से पूछो
कीमत मिलन की।

विधवा से पूछो 
कीमत सुहाग की।

खुलकर जीयो जिंदगी
एक दिन‌ जाना तो है।

जो होगा होकर रहेगा
वक्त है गुजरना तो है।

मत गँवाओ पास मौजूद हीरे को
दूर के चमकते पत्थर की खातिर।

खुलकर जीयो जिंदगी
एक दिन‌ जाना तो है।

जो होगा होकर रहेगा
वक्त है गुजरना तो है।

Written By Majida Khan, Posted on 06.08.2023

तलब

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Rajiv Dogra
~ राजीव डोगरा 'विमल'

आज की पोस्ट: 07 August 2023

बीते हुए वक्त कभी लौट आना
मुझे फिर से 
हंसना खिलखिलाना है।

बीते हुए वक्त कभी लौट आना
मुझे फिर से 
मस्ती भरे लम्हों को जीना है।

बीते हुए वक्त कभी लौट आना
मुझे फिर
थक हारकर मां की गोद में सोना है।

बीते हुए वक्त कभी लौट आना
मुझे फिर
अधूरी मोहब्बत का किस्सा सुनाना है।

बीते हुए वक्त कभी लौट आना
मुझे फिर से 
अपने यारों के साथ ही जीना है।

बीते हुए वक्त कभी लौट आना
मुझे फिर
बीता हुआ हर लम्हा जीना है।

Written By Rajiv Dogra, Posted on 06.08.2023

भारत की साधना
सात सुरों की साधना,
राष्ट्र क्रांति का घोष हो,
नादमय स्वर लहरियां,
जैसे रण में सांगा और प्रताप हो,
शांति की परिभाषा लेकर,
बुद्ध और महावीर सा तेज हो,
निस्तेज हुए अब दृश्य अदृश्य,
एक पल भटके अर्जुन से,
क्यों न रण में गीता का संवाद हो
आबदार कलम में सुर को बांधे,
संकल्प की यज्ञ आहुति में
अखंड भारत का ख़्वाब हों ।।

Written By Chandraveer Garg, Posted on 07.08.2023

गरीब की पुकार

SWARACHIT6040

Shailendra Yadav
~ शैलेंद्र यादव

आज की पोस्ट: 07 August 2023

दीनहीन काल , दुष्काल बनाता।
लिए हस्त मटका , पेट को सताता।।
खड़े रईस द्वार पर,अमीरी गरीबी को बताता
लिए हस्त मटका,पेट को सताता।।
फटे परिधान देख,रईस गरीब को हटाता।
दो वक्त की रोटी ,पेट को सताता।।
वो राम की खिचड़ी, रहीम का खीर खाकर बताता।
भूखा है साहब ,मजहब समझ नहीं आता।।
कोमल हस्त ,लेखनी कलम नहीं पाता।
अमीरी कूड़े थैले को लेकर ,पेट को चलाता।।
लाइन लंबी थी साहब, सुबह से रात हो गई।
अपना हक पाने का समय था।लेकिन सहब से बात हो गई।।

Written By Shailendra Yadav, Posted on 07.08.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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