तुम देख लेना
एक दिन मेरी कविताओं से
क्रांति पैदा होगी।
एक दिन मेरी कविताये
लोगो के बदलाव का
कारण बनेगी।
जिस दिन लोग गंभीर होकर
मेरी कविताओं को पढ़कर
अकेले में मंथन करेंगे।
उनके सीने में दबी चिंगारियां
सुलगने लगेगी
ओर बदलाव की हवा चलेगी
बस यही से क्रांति की शुरुआत होगी।
तुम देख लेना...
मेरी कविता अगर
एक को भी बदल पाए
एक मे भी अगर क्रांति
पैदा कर पाए
वही मेरा पुरस्कार होगा।
ये जो आज
मेरी कविता सुनकर
तालियाँ बजाते है।
एक कान से सुनकर
दूसरे कान से निकाल देते है।
ओर फिर भूल जाते है।
ये मेरा पुरस्कार नही है।
तुम देख लेना...
एक दिन बिना मूहर्त के
में चला जाऊंगा।
मगर मेरी कविताओं में
सदा में आप लोगो के
बीच रहूंगा
में ना रहूंगा मगर मेरी कविताये
सदा आप लोगो के बीच रहेगी।
उस क्रांति के इंतजार में,
जब आप लोग जागोगे।
बदलाव की बयार चलेगी
ओर धीरे धीरे क्रांति की
आग सुलगेगी।
तुम देख लेना..
पूछो अगर जिन्दगी क्या है मुझसे?
तो जबाब बहुत से दे दूँगा मैं,
पूछो अगर लगाव क्या है मुझसे?
तो नाम बहुत से बता दूँगा मैं,
पूछो अगर चाहत क्या है मुझसे?
तो आकांक्षाएं गिनवा दूँगा मैं,
गर पूछोगो कि मोहोब्बत क्या है?
दिल खोल के फिर दिखला दूँगा मै
पूछो अगर कि विश्वास क्या है मुझसे?
तो माँ-बाप को बता दूँगा मैं,
पूछो अगर कि जायज क्या है मुझसे?
तो हर रिश्ते को निभा दूँगा मैं,
पूछो अगर कि धैर्यता क्या है मुझसे?
तो इन्तजार में तेरे कई पहर बिता दूँगा मैं,
और पूछो अगर कि दोस्ती क्या है मुझसे?
तो तोहफा सबसे अजीज बता दूँगा मैं।
पूछो अगर कि अनुभव क्या है मुझसे?
तो पैरों के छाले दिखा दूँगा मैं,
पूछो अगर कि संघर्ष क्या है मुझसे?
आसूँ तेरी आँख में भी ला दूँगा मैं,
पूछो अगर कि भरोसा क्या है मुझसे?
तो बिन सोचे तेरे साथ चल दूँगा मैं,
पूछो अगर कि सफलता क्या है मुझसे?
तो खुशी से नम नयन दिखा दूँगा मैं।
पूछो अगर कि अपनापन क्या है मुझसे?
तो बिन कारण गले लगा लूँगा मैं,
पूछो अगर कि तिश्नगी क्या है मुझसे?
तो अतीत अपना दिखा दूँगा मैं,
पूछो अगर कि लगन क्या है मुझसे?
तो भोर से गोधूलि का सफर बता दूँगा मैं,
पूछो अगर कि मुस्कुराहट क्या है मुझसे?
तो परिवार की खिलखिलाहट सुना दूँगा मैं।
पूछो अगर कि दिक्कत क्या है मुझसे?
तो नाकामी तेरी गिना दूँगा मैं,
पूछो अगर कि हल क्या है मुझसे?
तो मेहनत का रास्ता दिखा दूँगा मैं,
पूछो अगर कि ईश्वर क्या है मुझसे?
तो सरल,अविरल बता दूँगा मैं,
पूछो अगर कि व्यक्तित्व क्या है मुझसे?
तो सम्मान का आईना दिखा दूँगा मैं।
लेता है सबक जो अपने गुज़रे हुए कल से
रुकता नहीं वो आगे बढ़ता जाता है
रोता रहता है जो अतीत को याद करके
वह जिंदगी में कुछ नहीं कर पाता है
यादें ज़िन्दगी भर पीछा नहीं छोड़ती
कभी कभी मन को करती हैं बेचैन
गुज़रा वक्त वापिस नहीं आ सकता कभी
याद आती है तो बरसने लग जाते हैं नैन
लौट कर कोई आ नहीं सकता वापिस
जो चला गया छोड़ कर एक बार
भूल कैसे सकता है कोई उसको
यादों का उसकी लगा रहता अम्बार
अतीत में कभी झांक कर देखें तो
यादों के कितने ही अनगिनत गोले हैं
राख ऊपर से नज़र आती है लेकिन
भीतर न जाने कितने सुलगते शोले हैं
अतीत को बहुत याद जो करेगा
तो छीन लेगा चैन बहुत दुख पायेगा
ज़ख्म जो सूख रहा था धीरे धीरे
कुरेदोगे तो नासूर बन जायेगा
अब कहाँ मिलती हैं
वो मिट्टी के चूल्हे पर
माँ के हाथ की बनी
घी से तर-बतर रोटियाँ
जो भूख को मिटाती नहीं बढ़ाती थीं
लकड़ियों की आँच में पककर
जो स्वाद को बढ़ाती थी
ऊपर से माँ की ये नसीहत
खाओगे नहीं तो कमाओगे कैसे
और कमाओगे नहीं तो खाओगे कैसे
इस बात से पेट में एक दो रोटी की
और जगह बना जाती थी
चूल्हे के आसपास बिखरी लकड़ियों को
माँ एक लकड़ी, चिमटे या फूंकनी से
एक ओर हटाती थी
अपने पास बिठा
थाली परोसती थी
ना कोई डायनिंग टेबल
और ना कोई चौंचलें
इन्हीं सब बातों से थे
बुलंद हमारे हौसलें
कलम चलती ही गई लेकिन स्याही खत्म ही नही हुई,
चेहरे पर झुर्रियां और ऑंसूओं की लाईन सी बन गई।
लोगों ने कहा क्या होगा लिखनें से पर हाथ रुकें नही,
जब रूपए आने लगें तो हमारी तकदीर ही बदल गई।।
अब वही लोग कहते क्या कमाल का लिखते है भाई,
बच्चें बुड्ढे जवान का उत्साह बढ़ता है रचना सुनते ही।
मान गऐ कविराज आपकों और आपकी लेखनी को,
नव उमंग और नव जोश भर जाता है रचना पढ़ते ही।।
कब बोलना क्या बोलना इसका सदा ध्यान है रखना,
फीके नही पड़े ज़िंदगी के रंग हमेशा मुस्कराते रहना।
ताक़त की ज़रुरत बुराई करने के समय ही पड़ती है,
लेकिन अन्न के कण व आनंद के क्षण व्यर्थ न करना।।
यही मेरी कलम कभी-कभी गणित के हिसाब करती,
तो कभी भूगोल और इतिहासों को बखूबी समझाती।
विज्ञान और जनरल नॉलेज का ज्ञान भी सबको देती,
हु-ब-हू खूबसूरत चित्र भी हमारी यही कलम बनाती।।
आज तक कलम की ताकत को कोई समझ न पाया,
बचा देती है फांसी के फंदों से जब-जब कलम चला।
एक आशा का दीया जलाया है इसी कलम ने हमारा,
जिसने भी चलाया इस कलम को उसका हुआ भला।।
उसकी खुशी में मेरी खुशी
उसके गम में मेरा साथ हैं
वो दूर हैं तो क्या हुआ?
पर दिल से मेरे पास हैं
स्वयं के क्रोध पर नियंत्रण मुझे आता हैं
बढ़े उसकी मर्यादा निज स्वार्थ न मुझको भाता हैं
गैर की खुशियों की खातिर
अपनी खुशी का दान देती
जो मुझे अपमान देता फिर भी उसको मान देती
उसकी मेरी यारी का क्या ही प्रमाण दूँ
आने वाली आपदा से उसको परित्राण दूँ
हर घड़ी हर पल वो मेरे लिए खास हैं
वो दूर हैं तो क्या हुआ?
पर दिल से मेरे पास हैं
छोड़ा नही उसने मुझे खुद मैं ही उसे छोड़ दी
उसकी निगाहों को उसके लक्ष्य की ओर मोड़ दी
आती अगर मैं बीच में तो उसका नाता टूट जाता
अपने लक्ष्य को खो देता अपनी मंजिल से छूट जाता
पायेगा अपनी मंजिल को वो
यही मुझको आश हैं
वो दूर हैं तो क्या हुआ?
पर दिल से मेरे पास हैं
दिन-भर बोलती स्त्रियां भी होती हैं मौन
चीख समेटे भीतर जाने कितने
सैलाबों का जंजावात लिए
कहां कह पाती है अपने भीतर
छिपी चुप्पी की पीङा का असहनीय दर्द
समर्पण की इच्छा लिए
वो तैरती हैं खोखले समन्दर में
अपने एकाकीपन को भरती है
चाहरदीवारी में
गुम हुए सपनों की आवाजें उसे
डगमगाने की कोशिश में लगे हमेशा नाकाम से रहते हैं
जहां उन्हें अपने मात्र कर्तव्यों का बोध होता है
स्त्रियों के पेट में कोई बात नहीं पचती का मुहावरा
चरितार्थ होता है उसके मुकद्दर पर
तुम अन्दाजा नहीं लगा सकते
हमेशा बक-बक करने वाली
स्त्रियां भी नौ महीने गर्भ में पालती नन्हीं सी जान से
मौन वार्तालाप करती हैं जो लम्हों को
सहज बनाने का तरीका होता है उसके लिए
तो कभी-कभार पूछ लिया करिये ना इनके दिल का हाल
जहां बातों का अम्बार लगा है बाहर निकलने को आतुर वो
कई बरसों से चुप्पी साधे है
फिर एक दिन उस चुप्पी के प्रहार को सहने का
कलेजा भला कहां से लाओगे
श्री बालाजी की मूर्ति को निहारते
मुस्कुराते भक्त की
खुशियां हो जाती दोगुनी
विश्वास हो जाता
अब हो जाएगा सभी समस्याओं का निदान
जीवन भर समस्याओं से जूझते और
सामना करता भक्त
थक हार जाता
उसके सपने औऱ उम्मीदों की
बोनी उड़ान से
सपने बिखर जाते
समस्याओं के आगे
उसकी उड़ान
बोनी हो जाती
सूरज से
आर्थिकता के पंख जल जो जाते
कर्ज की तेज आंधी
भक्त के जीवन की उड़ान में
भक्त की समस्या
बढ़ा जाती थी
अब
श्री बालाजी से
प्रार्थना करके
भक्त फिर से उड़ान भरता
जीवन मे चहुओर
खुशियां छा जाती
सनातन धर्म का सूरज
प्रकाश की सुखद ऊर्जा से
संसार के सभी भक्तों के
जीवन से अंधकार
हटा जाता है
तब मालूम होती
ऐसी श्रेष्ठ होती है
श्री बालाजी की महिमा।
दिन-प्रतिदिन,
तेरी आदत मुझको लगी जा रही है।
तुझे पाया नहीं अबतक,
तुझे खोने का डर सताया जा रहा है।
मेरे हाथों से छीनकर,
मुश्किल से ये जिंदगी चली जा रही है।
तेरे आने से,
दिल मेरा, अब उसको भुलाए जा रहा है।
कुछ हुआ है अलग,
तेरे आने से, बताए जा रहा है।
एक बार फिर से,
मुझको जीना, सिखाया जा रहा है।
मैं करूं ख़्वाहिश आज की
मिल जाए मुहब्बत ,
मुझे आपकी।
मैं करूं ख़्वाहिश आराम की
मिल जाए जिंदगी,
मुझे किसी काम की।
मैं करूं ख़्वाहिश राम की
मिल जाए मुहब्बत,
मुझे राधे-श्याम की।
मैं करूं ख़्वाहिश रात की
मिल जाए तन्हाई,
मुझे शाम की।
मैं करूं ख़्वाहिश ज्ञान की
मिल जाए सिद्धि,
मुझे महाज्ञान की।
कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।