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Tuesday, 01 August 2023

  1. रात गहरी है बहुत
  2. मां
  3. शोभा नहीं देता
  4. नारी और धरा
  5. हर सितम बेवफ़ा का 
  6. गांव
  7. योगी बाबा
  8. सफ़र-ए-रूहानियत
  9. मैं कौन हूं मुझे बताना कोई
  10. हसरत हमारी इतनी

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रात गहरी है बहुत

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Shiwani Das
~ शिवानी दास

आज की पोस्ट: 01 August 2023

रात गहरी हैं बहुत 
डर लगता हैं.
कहीं ख़ुद को ही ना खो दूं
सहमी सी सांसे हैं.
दूर आसमां में तारों का मेला हैं,
फिर भी चांद अकेला हैं.

रात गहरी हैं बहुत
डर लगता हैं.
जब ख़ुद से ख़ुद का ही सामना होता हैं,
इन्हीं अंधेरों में कहीं रौशनी की उम्मीद लिए बैठी हूँ.
नींद भी आँखों से कहीं दूर चली गई.
इतना टूट चुकी कि सबसे रूठ गई. 

रात गहरी हैं बहुत 
मग़र अब डर नहीं लगता. 
ख़ुद को खो कर ही सही, 
मैंने अपने श्री कृष्णा! को पाया हैं.

Written By Shiwani Das, Posted on 27.07.2023

मां

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Prakash Pant
~ प्रकाश पंत

आज की पोस्ट: 01 August 2023

यों ही अपना आंचल भिगोती होगी

मां आज भी अकेले रोती होगी।

बेटे की जिद थी,फौज में जाने की

अब मां रात को कम सोती होगी।

वक़्त पर घर जाना सीखो

मां को चिंता होती होगी।

बच्चों ने जब हिसाब  मांगा

सोचो तब मां कितना रोती होगी।

बाबूजी  घर देर से आये

मां को फिर से चिंता होती होगी।

सीमा पर शहीद  हो गया बेटा

मां गर्व से,हँसते- हँसते,रोती होगी।

 

Written By Prakash Pant, Posted on 29.07.2023

शोभा नहीं देता

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Manisha Kumari Jha
~ मनीषा कुमारी

आज की पोस्ट: 01 August 2023

मेरे शहर में आके मुझसे ही जी चुराना तेरा शोभा नही देता  
ऐसे छुप के मेरे  आंगन  का दीदार करना शोभा नही देता।।

यू सपनों में आकर नजरे मिलाना बार बार यूंही तड़पाना,
न मिलने का मुझसे तेरा बहाना बनाना शोभा नही देता।।

पास आऊं तो शरमाते हो दूर जाके यूं प्यार जताना तेरा,
चुपके से मेरे तस्वीर का यू दीदार करना शोभा नहीं देता।।

यूंही मुझसे छूप छुप के मिलने के लिए बुलाना तेरा,
फिर लबों से कुछ न कहना तेरा शोभा नही देता।।

दिल में एक प्यार की ज्योत जलाना फिर उसे खुद ही बुझा देना,
ऐसे इस तरह का तेरा रूसवाई करना शोभा नहीं देता।।

जब पास न हो तो बहुत प्यार करना तेरा,
पास आते ही मुकर जाना शोभा नहीं देता।।

यूंही बार बार प्यार इज़हार करना तेरा,
फिर अचानक से भूल जाना शोभा नही देता।।

हर सावन तेरा यूं तड़पाना शोभा नहीं देना,
वादे करके फिर से यू ही भूल जाना शोभा नहीं देता।।।

 

 

Written By Manisha Kumari Jha, Posted on 29.07.2023

नारी और धरा

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Manoj Bathre
~ मनोज बाथरे चीचली

आज की पोस्ट: 01 August 2023

नारी धरती

तेरे रूप अनेक

तुम से ही है 

हमारे गुण प्रत्येक

उन्हीं का अनुशरण 

करके हम 

आगे बढ़ते

जहां में अपने

किस्से गढ़ते

जिनके सहारे हम 

हो जाते महान 

नारी धरती है

मानों 

सदगुणों की खान।।

Written By Manoj Bathre , Posted on 13.05.2021

 

निस्फ रातों में पागल के जैसा रहा 
यूँ ही ख़्वाबों को अक्सर मैं बुनता रहा

मैं तड़पता रहा सोचकर बस यही
रंग महबूब का क्यूँ बदलता रहा

मैं सूरज की मानिन्द आठों पहर
अपनी ही आग में रोज़ जलता रहा

क्या बताऊँ गुज़रती रही मुझपे क्या
हर सफ़र साथ शोलों के करता रहा

खो गया हूँ तसव्वुर में माज़ी के यूँ
फूल यादों के तन्हा मैं चुनता रहा

ये वहम था मेरा या हक़ीक़त कोई
इक दबी चीख रातों में सुनता रहा

साँस चलती रही ये अलग बात थी
हर सितम बेवफ़ा का मैं सहता रहा

लफ़्ज़ काग़ज़ पे लिक्खे नहीं जा सके
दिल तड़पता रहा मैं बिलखता रहा

पार `आनन्द` सहरा किया इस तरह
तिश्नगी के सहारे मैं चलता रहा

Written By Anand Kishore, Posted on 02.06.2021

गांव

SWARACHIT6016

 Rohit Yadav
~ रोहित यादव

आज की पोस्ट: 01 August 2023

गांव के हरे भरे खेत
बूढ़े नीम की ढंडी छांव,
चहचहाती चिड़िया
कू-कू करती कोयल
खिलखिलाती किरण
चिलचिलाती धूप, जलते पांव
घने पेड़ों के नीचे आराम करता गांव,
अलसाई शाम
खेलते बच्चे उडती धूल,
बज रही घंटियां छिप रहे हैं
रास्ते जल रहें हैं
चूल्हे पास बैठै बच्चे,
तनी चादरों में सिमट गया गांव
प्रेम से सोता
प्रेम से जीता है
आज भी गांव।।

Written By Rohit Yadav, Posted on 01.08.2023


बहुत दिन के बाद विवाह का निमंत्रणा आया था। उसी दिन बचानक नेपाल बन्द हो गया। इसिलीए मै कलेज जा न सकी। मुझे नेपाल बन्द का अर्थ नही सूझ रहा। मैने माँ से पुछा। नेपाल बन्द क्यो करते है? माँ इन राजनैतिक पार्टीयो ने। सत्ता हासिल करने के लिए माँ बोली। सूर्य ने भी आना बन्द कर दिया तो? हाँ तो जल्दी जाओ शादी मे। बाते बनाती रहती है माँ ने किचन से जोर से कहा।


जल्दी आना माँ की आवाज आई। मै फटाफट शादी के लिए निकल गई। गर्मी के दिन पसीने छुट रहे थे सभी के। लेकिन पार्टी प्यालेस मे सबकी शान शौकात देखने लायक थी और सभी सज धज के आए थे।


शादी की रौनक वहा पर खुब जम रही थी। मैने दुल्हन के रङीन हाथो मे उपहार थमाए। दुल्लन बहुत सुन्दर लग रही थी। दुल्हन के आगे दुल्हा फिका लग रहा था। वो दुबला, पतला और छोटे कद का था। शायद शादी की जोडीयां भगवान नही लोग बनाते होगें। इसिलिए इतना बेमेल। मैने मन से कहा।


नजदिक मे देवी माँ का मन्दिर था मै उसी ओर चली गइ। मन्दिर के दिवार काठका और उस पर बहुत अच्छे से खुदे हुए भित्र कला से भरीपुर्ण दिख रहा था। मै मन्दिर के चारो ओर घुमी। मन्दिर के नजदीक मे एक चौका था। वहाँ पर बहुत सारी मख्खियाँ भिनभिना रही थी। वहां एक वृद्धा बैठा था। मैने पुछा यहाँ पर इतने मख्खियाँ क्यो? यहाँ रोज बली चढती माँ के नाम। माँ अपने बच्चो की रगत खाती क्या? अपने मन से कहा मैने। रगत की गन्ध ने मुझे वहाँ रुकने न दिया।

मन्दिर के उस पार सुन्दर वन दिख रहा था। मै उसी ओर चली गइ। वन के बीच मे सीढी। और निचे बह रही नदी। एक पुल आर पार के लिए मौजूद था। इन्तिजार कर रहा था वो लोगों का। नदी मे महिलाएँ कपडे धो रही थी। मैने पुछी ये सिढियाँ कहाँ तक जाती है? उन मे से एक बोली। वहाँ एक योगी बाबा रहते है। सीढी वही जाती है। वहाँ बहुत सारे लोग आते है उनका प्रवचन सुनने। आप दस मिनट मे पहुच जायोगी। वो बहुत ध्यानी और ज्ञानी योगी बाबा है लोग ऐसे ही कहते है।

सिढीयो के आर पार बहुत पौधें जगमगा रहे थे। प्रकृती की परम सुन्दरता मे सिमटे हुए मै आश्रम पहुँच गइ। योगी बाबा वीडियो कल मे मग्न थे। महिलाकी आवाज सुनाइ दे रही थी जोर से। वन के बीच मे वो आश्रम के चारो ओर से वृक्ष ने रौनक बना रखे थे। पंछियो की मीठी आवाज गूंजज रही थी। कोयल की सुमधुर आवाज मे सुन्दर गीत बज रहे थे। सूर्य भी डुबने की तयारी मे थे। वन की वृक्ष ने सूर्यकी किरण अपने अन्दर सिमटकर रखे थे। सूर्य की चमक से ज्यादा वन की सुन्दरता चमक रही थी।

मै आश्रम के पीछे गइ। पुरी कुटीया प्लास्टिक और कपडो की पर्दो से घेरे हुए थे। मै पर्दा उठाकर देखी वहाँ खुल्ला किचन था। किचन के छोटे, बढे मैले डिब्बाए पर नुन, तेल, हल्दी प्रष्ट दिखाई दे रहे थे। किचन के बगल मे दुसरा पर्दा लटक रहा था। मै उसे भी उठाकर देखी। वो बेडरुम जैसा था। खटिया के उपर मच्छरदानी के अलवा वो रुम मैला और किचड से भरा लग रहा था।

कुटीया की बायें तरफ मैले पानी की बोतल थे। गन्दा पानी ‍बहुत दिनो से पडे हुए लग रहे थे। एसी पानी कैसे पीते होगें योगी बाबा? अभाव ही अभाव है यहाँ पर कैसे ध्यान लगता होगा? इन्हे तो कुछ पैसे सहयोग करना चाहिए। मैने अपने मन से कहा। जब योगी बाबा के सामने आई तो अभी भी वीडीयो कल मे ब्यस्त थे। मैने उन के चेहेरे पर निहाला वो साठी साल के लग रहे थे। कहाँ से आयी हो? यही नजदिक से मैने कहा। ध्यान के लिए किस समय उपयुक्त? बाबा मैने पुछा। जिस समय भि ध्यान कर सकते है। बोलते, खाते, चलते। घर परिवार त्यागना जरुरी है? ध्यान के लिए मैने पुछा। हम घर परिवार के रहकर ध्यान कर सकते हैं।

फिर आप क्यो आए हो? वन मे। मैने पुछा तो वो बोले। प्रकृती की अनुपम आनन्द मे डुबने आया हुँ। मुझे भी प्रकृती की सुन्दरता लुभाती है बाबा मैने कहा। योगी बाबा अपने बैठे हुए चकटी को छोडकर मेरे नजदिक आए और बोले बहुत सुन्दर हो तुम। सूरज पुरी तरह डूब गया था। वनो के वृक्ष और झाँडियो ने अध्याँरा के छिटके छिटक रहे थे। योगी बाबा ने अचानक मेरे बायाँ हाथ पकडे और कहा आज इधर ही रहो तुम। बहुत मजा आएगा। उन के आँखो मे मेरी आँखो ने बिष के प्याले भरे हुए देखे। मै एक पल भी वहां ठहर न सकी। मेरे पुरे शरीर मे कम्पन हुई। मै वहाँ से भाग पडी। मै खाली पैर सीढीयों से दौडती चली गई। योगी बाबा मेरे पीछे पीछे आ रहे थे। मै सीढीयो पर तेजी के साथ दौड रही थी। ए लडकी रुक जा , उनकी आवाज मेरे कानो से आरपार हो कर गुजर रही थी।

Written By Saraswati Sharma, Posted on 01.08.2023

हकीकत ए पर्दा धीरे से उठता है,
रस्मों रिवाजों के पहरे से इंसान जकड़ता हैं,
जंग न लग जाए रिश्तों की कड़ी को,
वक्त की नाजुक घड़ियों में परखना पड़ता है,
जो बिफर जाते हर बात पर साहेब,
साझा रिश्तों में खींचना पड़ता है,
सच - झूठ तर्कों से परे हैं,
विवेक मरने पर रिश्तों में उलझना पड़ता हैं,
छोड़ गलियारे इन शरणार्थियों के,
आबदार ए हुकूमत खुदा की जान,
चले छोड़ बसेरा खुदा की मान।।

Written By Chandraveer Garg, Posted on 01.08.2023

मैं कौन हूं मुझे बताना कोई
गर जिंदा हूं तो जगाना कोई।।

बहुत जी लिए बेखबर होकर
मगर अब न चलेगा बहना कोई।।

बहके न कभी मंजिल की रास्ता
अपनी मस्ती में है ऐसा दीवाना कोई।।

लिखी जा रही इतिहास कल की
जिसकी रचेगी अफसाना कोई।।

गलत को गलत कह सके जो
न होकर भी होंगे उनके फसाना कोई।।

जिंदा होने से मर जाना ही ठीक है
जब न दे सके जिंदा होने का प्रमाना कोई।।

खड़े है बनकर एक सवाल "निगम"
जिंदगी से कैसे करते हैं बहना कोई ।।

Written By Sanjeet Kumar Nigam, Posted on 01.08.2023

हसरत हमारी इतनी

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Namita Gupta
~ नमिता "प्रकाश"

आज की पोस्ट: 01 August 2023

चाहतों की ख्वाहिश है तुम और मुस्कुराओं।
बुलबुल सी चहकती रहो, भंवरों सा गुनगुनाओं।।

हसरत हमारी इतनी, मेरा दिल हो आशियाना,
गुलबहार बनकर, इस गुलशन में तुम लहराओं।

ख्वाहिशों की महक ने, बुन ली जो तुमने रौनक,
चेहरे पर चमकती शबनम, को आफताब बनाओं ।

जज्बात परिंदा वो खुशबू को भी पहचान लेता,
एहसास से बंधे हम, प्यार के गीत सुनाओ ।

धड़कनें भी कहती, पढ़ ली वह सब किताबें,
उल्फत के आईने में, मैं रूठूं तुम मनाओ ।

मन में लगन है सच्ची, एक डोर से बंधे हम,
यह रात है मिलन की, इसे खुशनुमां बनाओं।

Written By Namita Gupta, Posted on 01.08.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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