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Thursday, 27 July 2023

  1. महात्मा गौतम बुद्ध
  2. पिता
  3. आओ मिलकर एक बदलाव लाएं 
  4. सीख
  5. बालकुंज
  6. पेड़ों की परछाइयां नहीं रहीं
  7. प्रतिभाएँ अँधेरे में चीख रही हैं
  8. वाणी वन्दना
  9. अब तो मुनिया खूब पढ़ेगी
  10. कारगिल विजय दिवस

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अनेंक विद्वानों को जिसने अपना गुरू बनाया,
वह सिद्धार्थ से महात्मा गौतम बुद्ध कहलाया।
राज काज युद्ध की विद्या एवं शिक्षा भी लिया,
गुरुदेव विश्वामित्र से वेद और उपनिषद् पाया।।

बचपन से ही हृदय में जिनके करुणा भरी थी,
किसी जीव की पीड़ा इनसे देखी न जाती थी।
ईसा से ५६३ वर्ष पहले हुआ था इनका जन्म,
लेकिन जन्म के ७ दिन बाद माॅं चल बसी थी।।

कुश्ती घुड़दौड़ तीर-कमान में था बहुत माहिर,
नहीं था कोई भी रथ हांकने में ‌इनकी बराबर।
जीती बाज़ी भी हार जातें देखकर यें बुरें हाल,
ख़ुशी मिलती जीत दिलाकर चाहें ‌हारे हरबार।।

इनके जन्म के समय हो गयी थी भविष्यवाणी,
सिद्धार्थ से गौतमबुद्ध तक की है ढ़ेरों कहानी।
सत्य को जिसने है जाना बौद्धधर्म उसने माना,
माता महामाया कपिल वस्तु की थी महारानी।।

है अनमोल सभी का जीवन समझाया देशों में,
बौद्ध धर्म को अपनाया आज बहुत विदेशों में।
२६ वग्ग ४२३ श्लोक है बौद्ध धर्म समझानें में,
धम्मपद का वो स्थान है जो रामायण गीता में।।

Written By Ganpat Lal, Posted on 14.05.2022

पिता

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Rupendra Gour
~ रूपेन्द्र गौर

आज की पोस्ट: 27 July 2023

पिता हुआ करते सदा, पीपल बरगद आम।
मिलता इनकी  छाॅंव में, बच्चों  को आराम।।

सुख दुख में संतान का, रखते खूब ख्याल।
घर  में  होने  से पिता, पड़ता नहीं अकाल।।

खुशनसीब होते वही, जिन्हें पिता का साथ।
कोई भी तकलीफ़ हो, काफी सिर पर हाथ।।

जब तक होते साथ वो, होय नहीं एहसास।
उनके जाते  ही  हमें,  हो  जाता  आभास।।

छत समान सबके पिता, होते जब तक साथ।
क्या मजाल  बरसात की, हम पर डाले हाथ।।

आने ना दें विपत्तियाॅं, बच्चों पर हर हाल।
सहते सारे आक्रमण, बनकर के वो ढाल।।

वो  सारे  परिवार  का,  सहते  हरदम  भार।
करते उफ् तक भी नहीं, नहीं कभी लाचार।।

टूटे  से भी टूटते,  नहीं पिता मजबूत।
पिता टूटते जब कभी, ताने मारे पूत।।

Written By Rupendra Gour, Posted on 15.05.2022

मौसम सुहाना और सावन आने को है 
चुनाव आने वाले हैं, हाथ- पैर जोड़ने वाले साजन आने को है 
देखो! पढ़े- लिखे नौजवानों राजनीति के हाल 
नेता ठाठ- बाठ में रहेंगे, और आम जनता होगी कंगाल 
पढ़ाई करो इतनी की कर सके सवाल 
खामखा किस बात का करना बवाल 
रोजगार देगी सरकारें निकालो मन से ये ख्याल 
जितने के बाद बदलती है ज्यादातर नेता की चाल 

सड़कें बनी, स्कूल खोले और बनाये अस्पताल 
गुणगान अपने- औरों के कार्यों का करते 
नहीं रखते जनता का ख्याल 
ना अस्पताल में चिकित्स्क भरते 
ना ही विद्यालयों में गुरुजनों की भरमार 
बस गुणगान करते रहती है हर सरकार 

अस्पताल, स्कूल बेशक कम हो 
पर सुविधाएं हो हज़ार 
सौ बच्चों पर हो शिक्षक चार 
अस्पताल में यही नियम गर बनाये जाये 
कई बीमार है बचाये जाए 
हॉस्पिटल की दशा सुधारो, या चीखचीख कर पुकारो
नेता जी कभी अपने इलाज़ के लिए भी 
क्षेत्रीय अस्पताल पधारो

गाँव- गाँव बना जा रहा सड़कों का जाल
जंगल, वन काटे जा रहें आएगा कल कोई काल 
जनमानस भी है मतलबी बड़ा 
अपना फायदा देखकर कौन है दूसरों के हक़ के लिए लड़ा
कोने को कोने से जोड़ो 
किनारे को किनारे से ना तोड़ो 
होगा विकसित हर वर्ग एक दिन विश्वास 
इस विश्वास को मत छोड़ो 

अपनी पेंशन, भत्ते सब बढ़ाएंगे 
आम नागरिक को झूठे सपने दिखाएंगे 
सरकारी कर्मचारियों के बढ़ते हैं भत्ते 
पर गरीब दिहाड़ीदार के लिए कौन लड़े 
और किस- किस को लिखें पत्ते 

क्या महंगाई सिर्फ कर्मचारियों और नेताओं के लिए है बढ़ती 
क्यों नहीं फिर आवाम सबके लिए लड़ती 
गरीब धूप में भी लगाता दिहाड़ी 
बस कुछ नज़रें हैं उनके साथ खड़ती

आओ मिलकर एक बदलाव लाएं 
जो सोये हैं युवा उनको जगाएं 
जो हक़ है सबका उसके लिए लड़ें 
कंधे से कंधा मिलाकर साथ सभी खड़ें

क्या चाहता है आम जनमानस 
रोटी, कपड़ा और मकान 
काम धंधा मिले और थोड़ी सी पहचान 
समझे  नहीं जाते  है राजनीती के गलियारों में 
हमेशा रखा जाता है अंधियारे में 

हो सक्षम मेरे भारत का हर नागरिक और किसान 
खेत- खलिहान फसलों से लहलाएं
बच्चा- बच्चा शिक्षा का राग गाएं
आओ युवा साथियों ऐसा इक्कीसवीं सदी का भारत बनाएं 

बेटियां भी भर सके ऊंचीं उड़ान 
सिर्फ बेटी होना ही ना हो उनकी पहचान 
पैरों में बेड़ियाँ ना बांधों
डटे रहने दो खेल के मैदानों में 
बेटियों से खुशियां हैं खानदानों में 

निष्पक्ष हो कानून व्यवस्था 
सबको सरंक्षण और सबकी हो रक्षा 
भ्र्ष्टाचार का मिटे नामों निशान
सब मिलजुलकर और ख़ुशी- ख़ुशी रहे 
ऐसा बनाओ ना हिन्दोस्तान 

देखना समय के साथ बदलाव आएगा 
कोई किनारे इस दशा की नाव लगाएगा 
संघर्षों वाला दौर ज़रूर हो साथियों 
कल हिन्दोस्तान विश्व पटल पर छायेगा 

 एक सोच, एक विचार, एक संघर्ष, एक कल्पना, एक बदलाव. 

Written By Khem Chand, Posted on 26.05.2022

सीख

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Lalan Singh
~ ललन प्रसाद सिंह

आज की पोस्ट: 27 July 2023

राधेश्याम बाबू अड़सठ बसंत देख चुके थे.किसी भी शव यात्रा जुलूस या उसके नारे की ध्वनि उन्हें असहज कर जाते थे.उनके जीवन में थोड़ी असहजता इकलौते पुत्र और बहू के बीच संबंधों को लेकर भी रहती थी.

आज भी सुबह वे धूप सेवन हेतु बालकोनी में पत्नी के साथ बैठे थे,तभी सामने की गलियारे से बाजे-गाजे और `राम नाम सत्य है` की तेज स्वर कानों में पड़ी.वे उठकर अंदर वाले कमरे में घुस कर दरवाजा बंद कर लिया.

उनकी पत्नी काफी नीडर और विनम्र स्वभाव की थीं. वे बोलने लगीं, ``अरे ये तो सत्य है ही कि सबको एक दिन जाना है, फिर इससे डर कैसा?``कहते हुए एक गहरी सांस लीं तथा अपने आप को ऊर्जस्वित कीं.बालकनी में कपड़े डाल रही बहू ने उन्हें टोका, ``बाबूजी को ये सब बातें घबराहट में डाल देती हैं फिर भी आप ........नऽ...!....तभी तो वो उठ कर कमरे में चले गए.``बहू बोली.

``ऐसा नहीं है बेटा!वो हमारी बातों का जवाब देने से कटते हैं.इसी लिए वो ऐसा करते हैं.`` सास ने बहू का दिल रखने तथा कुछ सीख देती हुई बोलीं.

``जो जवानी में एक-दुसरे पर प्यार लुटाते हैं,उनका बुढ़ापा हम लोगों की तरह नोक-झोंक में आराम से कट जाती है.और जो जीवन की शुरुआत को ही कठिनाइयों और अभावों में रखते हैं उनके जीवन के अंतिम क्षणों में आराम एवं चैन की गारंटी का कोई भरोसा नहीं होता.`` बात ही बात में उसकी बूढ़ी सास बड़ी बात कह गयीं.

उनकी सीख में बहू को अपने जीवन की सच्चाइयों की झलक दिख गई.

Written By Lalan Singh, Posted on 02.06.2022

आकाशवाणी का कार्यक्रम था बालकुंज,

 गुरुवार को चलता था बालकुंज,

रोज सुनता था मैं बालकुंज।

गजब का प्यारा बेहद न्यारा,

हर गुरुवार को सुनता था बालकुंज।

हमारा प्यारा था बालकुंज,

सब बच्चे- बूढ़ों का प्यारा बालकुंज।

बालकुञ्ज भी देता सबको ज्ञान,

जिसपर करता हूं अब भी अभिमान। 

इसलिए तो मेरे लिए बालकुंज बना, 

अतुलनीय प्रेरणास्रोत महान। 

तभी से आया हस्तलेखन में जान, 

और बसा पाया कविता में प्राण। 

Written By Subhash Kumar Kushwaha, Posted on 13.06.2022

पेड़ों की परछाइयां नहीं रहीं
घर ऊंचे, ऊंचाइयां नहीं रहीं

बुराई का आलम यूं हो गया
अच्छों!अच्छाइयां नहीं रहीं

दखल फोन का ऐसा बढ़ा है
कहीं भी तन्हाइयां नहीं रहीं

Written By Kundan Singh, Posted on 27.07.2023

यह दुनिया अँधेरी कोठरियों में बदल रही है
लोग अँधे हो रहे हैं
किसी को कुछ दिखाई नहीं दे रहा है
राजतंत्र और लोकतंत्र के फासले मिट रहे हैं
राजा और नेता का अर्थ गड़बड़ हो रहा है
हम एक आश्चर्यजनक दुनिया के हिस्से बनते जा रहे हैं
दिल्ली की सड़कों-सी घुमावदार जिंदगी भुलभूलैया में तब्दील हो रही है
गाँव विरान होते जा रहे हैं
रिश्तों की वेल पर फफूँद लग चुके हैं
नीबू की हरि पत्तियाँ काँटें बन गई हैं
अब सूरज चोरी-छुपे उगता है
नदियाँ अपनी गुस्सा महानगरों पर उतार रही हैं
यह आश्चर्य कतई नहीं है कि वह ऐसा क्यों कर रही हैं
दुनिया की सारी सभ्यताएँ नदियों के तट पर बसी हैं
अब मन अकुला रहा है
नालंदा का खंड़हर अब घीर चुका है
विद्यार्थियों की जगह सैलानियों ने ले ली है
अब हर विश्वविद्यालय मुर्दाघरों में तब्दील हो जाएगा
क्योंकि अँधेरा हो रहा है
और उस अँधेरे में धर्म-ध्वाजा के वाहक कहकहे लगा रहे हैं
प्रतिभाएँ चीख रही हैं
चुड़ैलें उन्मुक्त हो साँस ले रही हैं
और अँधेरे में लोगों के दम घूट रहे हैं!

Written By Hareram Singh, Posted on 27.07.2023

वाणी वन्दना

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Jagdish Sharma
~ जगदीश शर्मा 'सहज'

आज की पोस्ट: 27 July 2023

वर दे वर दे वर दे
माँ, ज्ञान सुधा भर दे ।

वाणी कर दे पावन
साहस से भर दे मन
पथ पर फैला है तम
अज्ञानी बालक हम
वरदा, शुभ मति देकर
मन को निर्मल कर दे।

उर का परिताप मिटा
सुख का आभास जगा
जन-जन को संबल दे
गौरवशाली कल दे
हे हंसवाहिनी माँ
यति, गति, लय, मधुस्वर दे ।

कर दे बल को अक्षय
कलुषित कर्मों का क्षय
मेधा कर दे नूतन
भावों का हो स्यन्दन
कविता में प्राण जगा
वर्णों का सागर दे ।

Written By Jagdish Sharma, Posted on 27.07.2023

चौके-चक्की की खटपट में
चकला-बेलन की लटपट से
चूल्हे की वह जली कढ़ाई
काथे से अब नहीं घिसेगी
अब तो मुनिया खूब पढ़ेगी

रोटी गोल बनाती कल तक
अब वह कलम चलाएगी
बेटी बेटा बन सकती है
बाबा को समझाएगी
शिक्षा से उसकी भी अपनी
एक नई पहचान बनेगी
अब तो मुनिया खूब पढ़ेगी

मटमैले हाथों से इक दिन
दुनियाँ को चमकायेगी
हाथों में वह पहन चूड़ियां
अंतरिक्ष तक जाएगी
अब दहेज के दावानल में
कोई बिटिया नहीं जलेगी
अब तो मुनिया खूब पढ़ेगी

पाँव जमाकर वह धरती पे
आसमान तक जाएगी
देश-विदेश कही हो अपना
वह परचम लहरायेगी
महाप्रलय हो विपदाओं का
पर मेहनत से नही डरेगी
अब तो मुनिया खूब पढ़ेगी

बिटिया चौबारे में बाबा
तुलसी की चौपाई है
बिटिया सगुन सुदेवस मङ्गल
खुशियों की शहनाई है
बिटिया कली मोगरे की है
आँगन में हर दिन महकेगी
अब तो मुनिया खूब पढ़ेगी

Written By Varsha Garima, Posted on 27.07.2023

है गर्व हमें, अभिमान हमें
कारगिल के वीर जवानों पर,
किस्से उनकी शहादत के
आज रहते हर जुबानों पर!

अदम्य साहस भर भुजा में
लड़ गए हर तूफ़ानों से,
आसमां तक जय हिन्द गूंजा
हौसलों की उड़ानों से!

दी थी मात दुश्मन को
उनकी हर एक चाल पर,
अपने लहू का तिलक लगाया
भारत माँ के भाल पर!

रहें सुरक्षित सरहदें अपनी
गंवाई जान हजारों ने,
लहराया तिरंगा चोटी पर
वतन के पहरेदारों ने!

सलाम उन वीर शहीदों को
जो खा गए गोली सीनों पर,
अमर रहेगी गौरव गाथा
इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर!

Written By Sushil Yadav, Posted on 27.07.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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