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Monday, 24 July 2023

  1. सावन आया
  2. वो ये क्यों भूल जाते हैं कि माँ भी एक औरत है
  3. आओ मिलकर एक बदलाव लाएं 
  4. पिता
  5. बालकुंज
  6. मां तो मां होती है
  7. भीतर
  8. मैं खुशियां लिखूं

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सावन आया

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Sunil Kumar
~ सुनील कुमार संदल

आज की पोस्ट: 24 July 2023

सावन आया-सावन आया
संग अपने खुशियां लाया।
 
देख प्रकृति की छटा निराली
तन-मन मेरा हर्षाया 
सावन आया- सावन आया।

बागों में देखो पड़ गए झूले
गाएं सखियां खुशी से झूमें
देख उन्हें मन मेरा ललचाया
सावन आया-सावन आया।

धरती ने ओढ़ी धानी चूनर 
अम्बर ने अमृत बरसाया 
सावन आया- सावन आया।

हाथों में मेहंदी बालों में गजरा 
पैरों में महावर सजाया 
सावन आया- सावन आया।

शिव भोले का पूजन कर
अखंड सौभाग्य सुख पाया 
सावन आया- सावन आया।

Written By Sunil Kumar, Posted on 20.07.2023

वो ये क्यों भूल जाते हैं कि माँ भी एक औरत है!
जिसे कहती रही भाई उसी ने लूटी अस्मत है!

कफन में जेब कब्रों में तिजोरी तो नहीं होती,
किसी के साथ दुनिया से गई कब मालो दौलत है!

फिज़ाओं में यक़ीनन रंग फैले अपनी चाहत के,
हवा में ताज़गी है और दिन भी ख़ूबसूरत है! 

तुम्हीं तो पंच ठहरे थे तो उँगली फिर उठी कैसे,
तुम्हारे फ़ैसलों पर आज मुझको होती हैरत है! 

कहीं कुछ हो न जाए हादसा दिल है उदास अपना,
तबीयत में बवक़्ते शाम से थोड़ी हरारत है! 

कोई भी मसअला चुप बैठने से हल नहीं होता,
दरिंदों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की ज़रूरत है! 

है सूफी संतों की सोचें, इसे अपना लकी तूभी,
इबादत ही मुहब्बत है,मुहब्बत ही इबादत है! 

Written By Mohammad Sagheer, Posted on 18.02.2022

मौसम सुहाना और सावन आने को है 
चुनाव आने वाले हैं, हाथ- पैर जोड़ने वाले साजन आने को है 
देखो! पढ़े- लिखे नौजवानों राजनीति के हाल 
नेता ठाठ- बाठ में रहेंगे, और आम जनता होगी कंगाल 
पढ़ाई करो इतनी की कर सके सवाल 
खामखा किस बात का करना बवाल 
रोजगार देगी सरकारें निकालो मन से ये ख्याल 
जितने के बाद बदलती है ज्यादातर नेता की चाल 

सड़कें बनी, स्कूल खोले और बनाये अस्पताल 
गुणगान अपने- औरों के कार्यों का करते 
नहीं रखते जनता का ख्याल 
ना अस्पताल में चिकित्स्क भरते 
ना ही विद्यालयों में गुरुजनों की भरमार 
बस गुणगान करते रहती है हर सरकार 

अस्पताल, स्कूल बेशक कम हो 
पर सुविधाएं हो हज़ार 
सौ बच्चों पर हो शिक्षक चार 
अस्पताल में यही नियम गर बनाये जाये 
कई बीमार है बचाये जाए 
हॉस्पिटल की दशा सुधारो, या चीखचीख कर पुकारो
नेता जी कभी अपने इलाज़ के लिए भी 
क्षेत्रीय अस्पताल पधारो

गाँव- गाँव बना जा रहा सड़कों का जाल
जंगल, वन काटे जा रहें आएगा कल कोई काल 
जनमानस भी है मतलबी बड़ा 
अपना फायदा देखकर कौन है दूसरों के हक़ के लिए लड़ा
कोने को कोने से जोड़ो 
किनारे को किनारे से ना तोड़ो 
होगा विकसित हर वर्ग एक दिन विश्वास 
इस विश्वास को मत छोड़ो 

अपनी पेंशन, भत्ते सब बढ़ाएंगे 
आम नागरिक को झूठे सपने दिखाएंगे 
सरकारी कर्मचारियों के बढ़ते हैं भत्ते 
पर गरीब दिहाड़ीदार के लिए कौन लड़े 
और किस- किस को लिखें पत्ते 

क्या महंगाई सिर्फ कर्मचारियों और नेताओं के लिए है बढ़ती 
क्यों नहीं फिर आवाम सबके लिए लड़ती 
गरीब धूप में भी लगाता दिहाड़ी 
बस कुछ नज़रें हैं उनके साथ खड़ती

आओ मिलकर एक बदलाव लाएं 
जो सोये हैं युवा उनको जगाएं 
जो हक़ है सबका उसके लिए लड़ें 
कंधे से कंधा मिलाकर साथ सभी खड़ें

क्या चाहता है आम जनमानस 
रोटी, कपड़ा और मकान 
काम धंधा मिले और थोड़ी सी पहचान 
समझे  नहीं जाते  है राजनीती के गलियारों में 
हमेशा रखा जाता है अंधियारे में 

हो सक्षम मेरे भारत का हर नागरिक और किसान 
खेत- खलिहान फसलों से लहलाएं
बच्चा- बच्चा शिक्षा का राग गाएं
आओ युवा साथियों ऐसा इक्कीसवीं सदी का भारत बनाएं 

बेटियां भी भर सके ऊंचीं उड़ान 
सिर्फ बेटी होना ही ना हो उनकी पहचान 
पैरों में बेड़ियाँ ना बांधों
डटे रहने दो खेल के मैदानों में 
बेटियों से खुशियां हैं खानदानों में 

निष्पक्ष हो कानून व्यवस्था 
सबको सरंक्षण और सबकी हो रक्षा 
भ्र्ष्टाचार का मिटे नामों निशान
सब मिलजुलकर और ख़ुशी- ख़ुशी रहे 
ऐसा बनाओ ना हिन्दोस्तान 

देखना समय के साथ बदलाव आएगा 
कोई किनारे इस दशा की नाव लगाएगा 
संघर्षों वाला दौर ज़रूर हो साथियों 
कल हिन्दोस्तान विश्व पटल पर छायेगा 

 एक सोच, एक विचार, एक संघर्ष, एक कल्पना, एक बदलाव. 

Written By Khem Chand, Posted on 26.05.2022

पिता

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Rupendra Gour
~ रूपेन्द्र गौर

आज की पोस्ट: 24 July 2023

पिता हुआ करते सदा, पीपल बरगद आम।
मिलता इनकी  छाॅंव में, बच्चों  को आराम।।

सुख दुख में संतान का, रखते खूब ख्याल।
घर  में  होने  से पिता, पड़ता नहीं अकाल।।

खुशनसीब होते वही, जिन्हें पिता का साथ।
कोई भी तकलीफ़ हो, काफी सिर पर हाथ।।

जब तक होते साथ वो, होय नहीं एहसास।
उनके जाते  ही  हमें,  हो  जाता  आभास।।

छत समान सबके पिता, होते जब तक साथ।
क्या मजाल  बरसात की, हम पर डाले हाथ।।

आने ना दें विपत्तियाॅं, बच्चों पर हर हाल।
सहते सारे आक्रमण, बनकर के वो ढाल।।

वो  सारे  परिवार  का,  सहते  हरदम  भार।
करते उफ् तक भी नहीं, नहीं कभी लाचार।।

टूटे  से भी टूटते,  नहीं पिता मजबूत।
पिता टूटते जब कभी, ताने मारे पूत।।

Written By Rupendra Gour, Posted on 15.05.2022

आकाशवाणी का कार्यक्रम था बालकुंज,

 गुरुवार को चलता था बालकुंज,

रोज सुनता था मैं बालकुंज।

गजब का प्यारा बेहद न्यारा,

हर गुरुवार को सुनता था बालकुंज।

हमारा प्यारा था बालकुंज,

सब बच्चे- बूढ़ों का प्यारा बालकुंज।

बालकुञ्ज भी देता सबको ज्ञान,

जिसपर करता हूं अब भी अभिमान। 

इसलिए तो मेरे लिए बालकुंज बना, 

अतुलनीय प्रेरणास्रोत महान। 

तभी से आया हस्तलेखन में जान, 

और बसा पाया कविता में प्राण। 

Written By Subhash Kumar Kushwaha, Posted on 13.06.2022

मां तो मां होती है
अपने सपने भुलाकर
बच्चों के सपने में खोती है
मां तो मां होती है

बच्चों की खुशियों की खातिर
दिन रात रोती है
मां तो मां होती है

सुलाकर बच्चों को अपने
आंचल के दामन में
खुद तकलीफों के कांटे के
बिस्तर पर सोती है
मां तो मां होती है

बच्चों के हंसी के ख्वाहिश में
अश्कों का समंदर पीती है
मां तो मां होती है

कुर्बान करके अपनी जिंदगी
बच्चों की जिंदगी में
अपनी जिंदगी जीती है
मां तो मां होती है

बच्चों को महफूज करके
उसकी सारी बलाए
अपने सर लेती है
मां तो मां होती है.

Written By Mustak Ali, Posted on 24.07.2023

भीतर

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Rajiv Dogra
~ राजीव डोगरा 'विमल'

आज की पोस्ट: 24 July 2023

मुझे कविता में
नया दौर सीखना है।
मुझे मोहब्बत में
अभी ओर सीखना है।
चिलमलाहट सी होती है
भीतर ही भीतर
नए शब्दों को सीख कर
मुझे नए भावों का आयाम
अभी ओर सीखना है।
दबी हुई बातें हैं कुछ भीतर
जो दबा देती है
सदैव ही अस्मिता को मेरी
निकालकर उनको बाहर
अभी नया जहान जीना
अभी ओर सीखना है।

Written By Rajiv Dogra, Posted on 24.07.2023

मैं खुशियां लिखूं

SWARACHIT5089

Pintu Singh
~ पिंटू सिंह

आज की पोस्ट: 24 July 2023

कविता लिखूं,
गजल लिखूं या
कोई शायरी लिखूं
ईश्वर से बस यहीं मांगता हुँ
की जिसमें सबकी खुशियाँ
और सपनें छिपे हो
मै वैसी कोई डायरी लिखूं,
दर्द लिखूं, धोखा लिखूं,
दुःख और परेशानी लिखूं,
जिसमें किसी एक का भी बुरा ना हो,
हे खुदा में गलती से भी कभी
ना कोई ऐसी कहानी लिखूं

Written By Pintu Singh, Posted on 24.07.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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